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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव और Mayawati, क्या उलटफेर कर सकती हैं?

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections) की आहट सुनाई देने लगी है. तमाम राजनीतिक दल अपने समीकरण साधना शुरू कर चुके हैं. बीजेपी से लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी तक तथा बहुजन समाज पार्टी तक चुनाव के मद्देनजर अपनी रणनीति बनाने में जुट चुकी है.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का जो इतिहास रहा है पिछले कुछ दशक का, उसमें समाजवादी पार्टी (SP) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) बारी-बारी से सत्ता में आती रही है. कभी मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) तो कभी मायावती (Mayawati) या फिर अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) मुख्यमंत्री बनते रहे हैं. उत्तर प्रदेश की जनता जाति के आधार पर, धर्म के आधार पर इन दोनों पार्टियों को बारी बारी मौका देती रही है. इस बीच बीजेपी भी उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब रही है और 2017 में तो बीजेपी को उत्तर प्रदेश की जनता ने प्रचंड बहुमत दिया था.
क्या मायावती (Mayawati) फिर समीकरण साधने में कामयाब होगी?
मायावती की राजनीति दलित वोट बैंक के आधार पर चलती रही है. मायावती का एक निश्चित वोट बैंक है वह उन्हें मिलता रहता है. चाहे मायावती को चुनाव में कामयाबी मिले या ना मिले लेकिन वह वोट बैंक मायावती के साथ हमेशा खड़ा रहता है. मायावती इसी वोट बैंक के आधार पर उत्तर प्रदेश की कई बार मुख्यमंत्री भी बनी है और इस बार भी मायावती यही उम्मीद पाले हुए हैं कि, मायावती का जो वोट बैंक है उसके आधार पर और बाकी ब्राह्मण और मुस्लिम वोट बैंक का कुछ हिस्सा अगर उन्हें मिल जाता है तो वह फिर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब होंगे.
2014 के बाद देश की राजनीति में बदलाव हुआ है. इसके साथ-साथ सामाजिक स्थिति में भी बड़े स्तर पर परिवर्तन देखने को मिला है. हिंदू मुस्लिम के आधार पर लोगों में नफरत बढ़ी है. ऐसा नहीं कहा जा सकता कि सिर्फ हिंदुओं के अंदर ही नफरत दिखाई दे रही है या बढ़ी है, मुस्लिमों के अंदर भी दूसरे धर्म के प्रति नफरत बढ़ी है. हां यह कहा जा सकता है कि यह अभी तक किसी पटल पर दिखाई नहीं दिया. चाहे वह सोशल मीडिया हो या फिर जमीनी स्तर.
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी और उनकी विचारधारा उनकी सोच का समर्थन करने वाले मुसलमान कहीं से भी बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा का समर्थन करने वाले हिंदुओं से कम नहीं है. बस ओवैसी की पार्टी को कहीं सरकार बनाने का मौका नहीं मिला है, इसलिए इनकी जो विचारधारा है और इनकी विचारधारा के जो समर्थक हैं, वह कहीं उस तरीके से तांडव नहीं कर पाए हैं, जिस तरीके से कुछ लोग सनातन धर्म को बदनाम करते हुए एक पार्टी विशेष की राजनीतिक जमीन को मजबूत करने के लिए जय श्री राम का नारा लगाकर गरीब और कमजोर लोगों पर अपना टशन दिखा रहे हैं.
मायावती इस उम्मीद में है कि उत्तर प्रदेश का मुस्लिम वर्ग कहीं से भी ओवैसी को वोट नहीं देगा. क्योंकि वह बिहार और बंगाल के नतीजे देख चुका है, और ओवैसी की जहरीली विचारधारा से भी वाकिफ है जो सिर्फ एक धर्म के नाम पर राजनीति करते हैं. मायावती को यह उम्मीद है कि जो मुस्लिम वर्ग नहीं चाहता कि बीजेपी की सरकार बने वह समाजवादी पार्टी के गुंडाराज से भी वाकिफ है. इसलिए वह एकजुट होकर मायावती को वोट देगा. दलित मुस्लिम के कॉन्बिनेशन और ब्राह्मणों के थोड़े बहुत समर्थन से मायावती सरकार बना ले जाएंगी ऐसी उम्मीद पाले हुए हैं.
मायावती की उम्मीदें पूरी होंगी?
2014 के बाद पूरे देश में धार्मिक नफरत बढ़ी है. उत्तर प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है और 2017 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से तो उत्तर प्रदेश में ऐसी घटनाओं की मानो बाढ़ आ गई है. उत्तर प्रदेश में सरकार के खिलाफ, सरकार की असफलताओं के खिलाफ, सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों तक को छोड़ा नहीं गया है, उनके ऊपर भी कई तरह की धाराएं लगाकर उन्हें जेल के अंदर डाला गया है. विरोधियों की संपत्ति कुर्की करने तोड़ने और आंदोलन करने वालों को कुचलने में ही सारी ऊर्जा खत्म की है उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था ने. और बस इसी आधार पर उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त है ऐसा प्रचारित किया गया है.
मायावती की सरकार में कानून व्यवस्था की स्थिति थोड़ी ठीक थी बिल्कुल इस बात में सच्चाई है. लेकिन अगर उत्तर प्रदेश की जनता 2022 के विधानसभा चुनाव में मायावती को वोट देने की सोचेगी तो आखिर उसका आधार क्या होगा? 2012-2014 के बाद और 2017 विधानसभा चुनाव के बीच क्या कभी उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर उत्तर प्रदेश की बदहाली को लेकर मायावती और उनकी पार्टी ने सड़कों पर सत्ता के खिलाफ संघर्ष किया?
2017 के बाद क्या मायावती और उनकी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर, उत्तर प्रदेश सरकार की नीतियों को लेकर, लगातार दबाई जा रही जनता की आवाज को मजबूती देने को लेकर, पत्रकारों के खिलाफ हो रहे हमले को लेकर, पत्रकारों को जेलों में डाला जा रहा है इसको लेकर, दलितों पर लगातार बढ़ रहे उत्पीड़न को लेकर उत्तर प्रदेश में बच्चों और महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को लेकर, महामारी के दौरान ऑक्सीजन की किल्लत से हुई मौतों को लेकर या फिर विकास के नाम पर हुए घोटालों को लेकर कोई विरोध प्रदर्शन किया, आंदोलन किया या फिर गिरफ्तारियां दी? लिस्ट लंबी है, जब विपक्ष की एक बड़ी नेता होने के कारण और उत्तर प्रदेश की कई बार मुख्यमंत्री रहने के कारण, मायावती को जनता के हक के लिए सत्ता के विरुद्ध सड़कों पर उतरना चाहिए था लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
2014 के बाद तो अधिकतर मामलों में यही देखा गया है कि, मायावती मोदी सरकार की नीतियों का समर्थन करते हुए दिखाई दी है. धारा 370 के मुद्दे पर भी मायावती ने मोदी सरकार का समर्थन किया था. जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा खत्म होने पर मायावती ने मोदी सरकार के विरुद्ध एक शब्द नहीं बोला. महीनों तक जम्मू कश्मीर की जनता अपने मौलिक अधिकारों से वंचित रहीरहे, मायावती ने एक शब्द नहीं बोला. उत्तर प्रदेश के मामलों पर भी मायावती का यही स्टैंड रहा है. मायावती जनता के साथ ना होकर, अधिकतर मामलों में सरकार के विरुद्ध आवाज बुलंद करके सड़कों पर उतरकर जनता का साथ देने के बजाय सलाह देती हुई नजर आई हैं.
महंगाई से उत्तर प्रदेश की जनता भी त्रस्त है. बेरोजगारी भी अपने चरम पर है. मायावती का जब शासन था उस समय भी मायावती ने उत्तर प्रदेश के अंदर ही रोजगार पैदा करने के लिए ऐसा कुछ किया नहीं कि, उत्तर प्रदेश की जनता को रोजगार की तलाश करने के लिए दूसरे राज्यों में ना जाना पड़े. अब वह वक्त गया जब मायावती 5 साल विपक्ष में रहने के बाद भी, चुनाव के समय चुनावी रैलियां करके सत्ता में वापसी कर लेती थी. चंद्रशेखर की पार्टी भी चुनाव लड़ेगी तो जाहिर है दलित वोट बैंक इन दोनों पार्टियों में बट जाएगा. मायावती की राह इतनी आसान नहीं है.
2019 के विधानसभा चुनाव में मायावती की पार्टी ने अखिलेश यादव की पार्टी से गठबंधन किया. अखिलेश यादव की पार्टी से गठबंधन का फायदा अखिलेश यादव की पार्टी को ना होते हुए मायावती को अधिक हुआ, उनकी पार्टी को अधिक हुआ और लोकसभा में मायावती को उम्मीद से बढ़कर सीटें मिली उत्तर प्रदेश में. लेकिन चुनाव के बाद मायावती ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोड़ दिया. मायावती की राजनीति को शायद उत्तर प्रदेश की जनता और जो उनका अपना वोट बैंक है, वह भी बहुत ही बारीकी से देख रहा है. इसलिए मायावती कुछ बड़ा चमत्कार उत्तर प्रदेश चुनाव में कर सकती हैं, इसकी संभावनाएं क्षीण है.
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