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राजस्थान के 4.50 लाख शिक्षकों के साथ तबादलों की राजनीतिक का यह है पूरा खेल

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सीकर. प्रदेश के सबसे बड़े शिक्षा महकमे में तबादला नीति की कवायद फिर से शुरू हो गई है। चुनावी दौर में सबसे बड़े मुद्दे के तौर पर गंूजने वाली तबादला नीति के पिटारे में इस बार बहुत कुछ अलग है। पिछली बार भाजपा सरकार ने प्रदेश के चार साढ़े लाख से अधिक शिक्षकों को तबादला नीति को लेकर खूब वाही-वाही लूटी थी। लेकिन सरकार चली गई लेकिन यह नीति खाली झुनझुना ही साबित हुई। अब गहलोत सरकार ने पहली बाद तबादला नीति के लिए कमेटी गठित की है। शिक्षा राज्य मंत्री गोविन्द सिंह डोटासरा ने इसके लिए कमेटी भी गठित कर दी है। कमेटी विभिन्न राज्यों की नीतियों का अध्ययन कर सरकार को रिपोर्ट देगी। ऐसे में प्रदेश के साढ़े चार लाख से अधिक शिक्षा विभाग के कर्मचारियों की निगाह अब इस रिपोर्ट पर टिकी हुई है। राजस्थान पत्रिका ने विभिन्न राज्यों की तबादला नीतियों को खंगाला तो यह तस्वीर सामने आई। कांग्रेस सरकार की तबादला नीति को राजस्थान पत्रिका में खास रिपोर्ट।

देश के किस राज्य में तबादलों को लेकर क्या नीति
हरियाणा: 2017 से ऑनलाइन तबादले
हरियाणा में अप्रैल 2015 से मध्य 2017 तक सभी एमएलए और प्रतिनिधियों, अफसरों से सुझाव मांग कर खट्टर सरकार ने ऑनलाइन ट्रांसफर पॉलिसी 2017 जारी की। इसके बाद से पात्र होने पर कोई भी कर्मचारी अपने ट्रांसफर के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकता है।
————————-उत्तरप्रदेश: पांच जिलों के विकल्प के आधार पर तबादले
उत्तर प्रदेश में जून 2016 को शिक्षकों के लिए अंतर जनपदीय स्थानांतरण नीति जारी की गई। वही शिक्षक आवेदन कर सकते हैं जिनके शुरुआती जिले में तीन साल पूरे कर लिए हो। दूसरे जिले में जाने वाले शिक्षक उस जिले की वरिष्ठता सूची में सबसे जूनियर मानने का प्रावधान है। तबादले के लिए आवेदन सिर्फ ऑनलाइन ही किए जाते हैं। हर शिक्षक को पांच जिलों का विकल्प देना होता है। पद खाली होने पर ही उन्हें वरीयता क्रम में लगाया जाता है। दिव्यांग तथा असाध्य रोगों जैसे कैंसर, लिवर या किडनी फेल होने, लकवाग्रस्त या बाइपास सर्जरी कराने वाले शिक्षकों और विधवाओं को तबादले में प्राथमिकता दी जाती है।

पंजाब: 15 अंकों के आधार पर तबादले

पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह ने नई तबादला नीति के जुलाई 2019 में जारी की। पॉलिसी में अध्यापकों की परफार्मेंस के लिए कुल 250 में से 90 अंक मुहैया करवाए गए। इसमें अध्यापकों के नतीजे, सालाना गुप्त रिपोर्ट आदि हैं। 15 अंक उन अध्यापकों को मुहैया करवाए गए, जिनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं।

दिल्ली: सिर्फ अगस्त महीने में होते हैं तबादले
शिक्षकों के लिए नई तबादला नीति यहां लागू हो चुकी है। इसके तहत वर्ष में एक ही बार 31 अगस्त को तबादले होंगे। इतना ही नहीं, इसके लिए आवेदन भी ऑनलाइन ही होंगे। नई तबादला नीति में शिक्षकों को लिए यह सबसे अच्?छी बात है कि अब जहां घर होगा वहीं नौकरी होगी। मतलब किसी शिक्षक ने दूसरे स्थान पर अपना घर खरीद लिया है तो उसे उसके घर के पास के स्?कूल में तबादले में वरीयता मिलेगी। इसमें तीन साल की परफॉरमेंस रिपोर्ट भी लगानी होगी। एक स्कूल में एक परिवार के दो सदस्य नहीं हो सकते है, ऐसे कई प्रावधान किए गए हैं। वहीं, कन्या विद्यालय में किसी पुरुष शिक्षक का तबादला भी नहीं किया जाएगा। शादी होने पर शिक्षिका को मिलेगी वरीयता नई नीति से ऐसी शिक्षिकाओं को लाभ मिलेगा, जिनकी शादी के बाद घर बदल गया है।

आंध्रप्रदेश: कभी नहीं लेनी पड़ती न्यायालय की शरण
यहां के शिक्षकों को तबादला नीति की वजह से कभी भी न्यायालय की शरण नहीं लेनी पड़ती है। महिला, दिव्यांग, सम्मानित शिक्षकों के साथ 11 श्रेणियों के शिक्षकों को तबादलों में प्राथमिकता है। प्रोवेशन काल में तबादले नहीं होते है। इसके बाद रिक्त पदों की वरीयता के हिसाब से तबादले किए जाने का प्रावधान है।

न्यायालय: 2014 में दिए आदेश, सरकार बनाए तबादला नीति
तबादलों से नाराज कई कर्मचारियों ने वर्ष 2014 में न्यायालय की शरण ली थी। इस दौरान उच्च न्यायालय ने सरकार को तबादला नीति लाने का निर्णय दिया था। इसके बाद भाजपा की सरकार ने तबादला नीति जरूर बनाई लेकिन वह लागू नही हो सकी।

किस साल में क्या हुआ:

1994: पूर्व शिक्षा सचिव की अध्यक्षता में 1994 में कमेटी बनी। इस समिति ने प्रारूप बना दिया। लेकिन रिपोर्ट लागू नही हो सकी।
1997-98: नीति लाने को कवायद हुई लेकिन हुआ कुछ नहीं। इस साल तबादला को लेकर अलग से निर्देश जरूर जारी किए गए।
2005: शिक्षकों के तबादलों में राहत देने के लिए दिशा-निर्देश जारी हुए।
2015-18: तबादलों के लिए मंत्री मण्डलीय समिति के साथ अन्य कमेटी बनाई। लेकिन प्रारूप लागू नहीं हो सका।

अब ऐसे समझे तबादला नीति का पूरा गणित:

कब हुआ आदेश जारी:शिक्षा विभाग की शासन सचिव मंजू राजपाल ने तीन जनवरी को तबादला नीति का प्रारूप बनाने के लिए कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी सेवानिवृत्त आईएएस ओंकार सिंह की अध्यक्षता में काम करेगी।कितने दिन में रिपोर्ट: कमेटी को एक महीने का समय दिया गया है। यह कमेटी सरकार को तबादला नीति का प्रारूप बनाकर देगी। संभावना है कि तीन फरवरी तक कमेटी सरकार को रिपोर्ट देगी।

किन राज्यों का अध्ययन:
कमेटी दिल्ली, पंजाब व आन्ध्रप्रदेश सहित अन्य राज्यों की तबादला नीति का अध्ययन करेगी। कमेटी खास तौर पर यह पता करेगी कि इन राज्यों में कितने सालों में और किन मापदंडों के हिसाब से शिक्षकों के तबादले हो रहे हैं।प्रारूप बनने के बाद: प्रारूप बनने के बाद सरकार इसको विधानसभा में पेश करेगी। संभावना है कि मार्च में पहली बार तबादला नीति की घोषणा हो।

यदि दावा सही तो: अगले तबादले नीति के आधार पर
यदि सरकार का दावा सही साबित हुआ तो मार्च तक इसे मंजूर मिल सकती है। ऐसे में यह माना जा सकता है कि गर्मियों में संभावित तबादले इस नीति के हिसाब से ही होंगे।

भाजपा पांच साल कहती रही, हम करेंगे दिखाएंगे: डोटासरा
कांग्रेस सरकार तबादलों में पारदर्शिता लाने के लिए शुरुआत से ही नवाचार कर रही है। पहली बार शिक्षकों के ऑनलाइन पैर्टन के आधार पर तबादले किए गए। शिक्षकों को राहत देने के लिए तबादला नीति बनाई जाएगी। इसके लिए कमेटी गठित कर दी है। यह कमेटी विभिन्न राज्यों का अध्ययन कर रिपोर्ट पेश करेगी। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर प्रारूप बनाने का काम किया जाएगा। कमेटी को एक महीने का समय दिया गया है। भाजपा पूरे पांच साल तक तबादला नीति के नाम पर शिक्षकों को गुमराह करती रही। हम शिक्षकों की मदद से नई तबादला नीति लेकर आएंगे।

हमने पॉलिसी बना ली थी, लेकिन लागू नहीं कर सके: देवनानी
हमने शिक्षकों के लिए तबादला नीति बना ली थी। लेकिन सरकार चली जाने की वजह से यह लागू नहीं हो सकी। कांग्रेस सरकार को पुरानी तबादला नीति को ही आगे बढ़ाने का काम करना चाहिए। यदि कांग्रेस ऐसा नहीं करती है तो फिर नए सिरे से तैयारी में काफी समय लगेगा। तबादला नीति सभी पक्षों के सुझाव लेकर बनानी चाहिए और यह स्थायी होनी चाहिए। लेकिन कांग्रेस की काफी तबादलों में पारदिर्शता लाने की नीति ही नहीं रही।

चुनौती: राजनैतिक तालमेल
कांग्रेस सरकार की सबसे बड़ी चुनौती राजनैतिक तालमेल की रहेगी। पिछली भाजपा सरकार के समय कुछ भाजपा विधायकों ने ही विरोध किया था। सूत्रों की मानें तो उस समय विधायकों ने तर्क दिया था कि यदि इस पॉलिसी के हिसाब से तबादले होंगे तो फिर वह कार्यकर्ताओं को कैसे संतुष्ट कर सकेंगे। अब यही चुनौती कांग्रेस की रहेगी। यदि मुख्यमंत्री व शिक्षामंत्री मजबूती राजनैतिक इच्छा शक्ति दिखाए तो यह लागू हो सकती है।

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