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यह मोदी सरकार और संघ की राजनीति के लिए खतरे की शुरुआत है.

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संघ और मोदी भारत को जिस हिंदू राष्ट्र का स्वरूप देने की मंशा रखते हैं, उसका एहसास आमजन को हो चुका है. विश्वविद्यालयों से लेकर सड़क तक देश भर में लोग धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं.

मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून के जरिए इस देश का एक बार फिर बंटवारा कर दिया है. हमने और आपने 1947 का बंटवारा नहीं देखा. परंतु जो कुछ पढ़ा और सुना वह यही है कि केवल मुसलमानों के लिए धर्म के आधार पर मोहम्मद अली जिन्ना ने भारतीय उपमहाद्वीप के दो टुकड़े कर दिए थे. इस समय नए नागरिकता कानून का जो स्वरूप है वह भी धर्म के आधार पर ही देश को खुले तौर पर हिंदू और मुस्लिम नागरिक के रूप में बांटकर पुनः देश को एक नए बंटवारे के छोर पर धकेल रहा है. पता नहीं, मोदी-शाह-भागवत की तिकड़ी जिन्ना से प्रेरित है या सावरकर से, लेकिन यह स्पष्ट है कि स्वयं नरेंद्र मोदी केवल हिंदू वोट बैंक की राजनीति के कारण किस तरह से देश में बंटवारे की खुली राजनीति कर रहे हैं. जरा स्वयं देखिए, मोदीजी ने झारखंड में विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान एक रैली को संबोधित करते हुए क्या कहा मैं आज कांग्रेस और उनके जितने चेले-चपाटे हैं, जितने उनके साथी दल हैं, उनको आज खुलेआम चुनौती देता हूं, अगर उनमें हिम्मत है, तो खुलकर घोषणा करें कि वे पाकिस्तान के हर नागरिक को नागरिकता देने को तैयार हैं.

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क्या किसी प्रधानमंत्री को यह शोभा देता है कि वह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को चेले-चपाटे कहकर संबोधित करें? खैर, मोदीजी तो सड़क छाप भाषा के आदी हैं. उनसे कुछ और अपेक्षा भी नहीं की जा सकती है. दूसरी बात, क्या झारखंड चुनाव जीतने के लिए वह खुलकर हिंदू-मुस्लिम बंटवारे के बीज नहीं बो रहे हैं? वह खुलेआम भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तानी की संज्ञा दे रहे हैं? क्या यह बंटवारे की खुली राजनीति नहीं है? क्या इस प्रकार नरेंद्र मोदी देश को जिन्ना की तरह पुनः नरक में नहीं धकेल रहे? उनकी मंशा देश को नरक ही बनाने की दिखाई पड़ रही है. नागरिकता के इस नए नियम ने देश को नरक ही बना दिया. देश के नौजवान और छात्र सड़कों पर हैं. जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से लेकर अलीगढ़, बनारस और दर्जनों विश्वविद्यालयों में आग लग चुकी है. पुलिस ने जिस बर्बरता से जामिया मिल्लिया और अलीगढ़ विश्वविद्यालयों में खुलकर छात्रों और महिलाओं तक की पिटाई की है वैसी बर्बरता जल्दी दिखने वाली नहीं है.

जाहिर है कि सारे देश का छात्र और नौजवान बिलबिला उठा है. केवल दिल्ली में ही नहीं अपितु सारे देश में छात्र और नौजवान सड़कों पर थे. एक नागरिकता कानून ने इस देश को नरक बना दिया. केवल देश ही नहीं विदेशों में भी 19 विश्वविद्यालयों से जामिया मिल्लिया के साथ सहानुभूति में प्रदर्शन होने के समाचार थे. दुनिया की प्रसिद्ध और सदियों पुरानी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी तक जामिया के साथ खड़ी थी. अब जरा बताइए कि विदेशों में भारत की क्या छवि बन रही है? भारत जैसा आधुनिक देश पाकिस्तान के समान जब धर्म की राजनीति करेगा तो फिर हमारा क्या सम्मान रह जाएगा और इस हंगामे में कौन सा देश हमारे यहां पूंजी लगाने को तैयार होगा?

नागरिकता के इस संशोधित कानून ने देश को कितने स्तर पर क्षतिग्रस्त किया है वह अभी किसी की समझ में पूरी तरह से नहीं आ रहा है. जैसा कहा गया है कि इस कानून ने देश के बंटवारे के बीज बो दिए हैं. इस कानून के खिलाफ असम और उत्तर पूर्वी राज्यों में जो आग लगी है वह विश्वविद्यालयों में होने वाले आंदोलनों से कहीं ज्यादा खतरनाक है. इन राज्यों को यह प्रतीत हो रहा है कि यह कानून उनकी पहचान और सभ्यता पर एक प्रहार है. जब किसी एक पूरी आबादी वाले इलाके को अपनी पहचान और सभ्यता पर खतरा मंडराता नजर आता है तो वह फिर उसके संरक्षण के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है. इस कानून से असम और उत्तर-पूर्व के उप-राष्ट्रवाद को ठेस पहुंची है.

यह एक खतरनाक स्थिति है, ये हमारी सीमाओं से लगे राज्य हैं. चीन और न जाने और कौन-कौन से देश भारत की अखंडता पर कब से निगाह रखे हैं. क्या ऐसी भारत विरोधी शक्तियों को यह कानून शह नहीं दे रहा है? दबी जुबान अभी से इन क्षेत्रों से भारत विरोधी स्वर सुनाई देने लगे हैं और तो और बंगाल में सोशल मीडिया पर भारत विरोधी चर्चा आरंभ हो गई है.

भारत का अस्तित्व ही ‘अनेकता में एकता’ के सिद्धांत पर निर्भर है. यदि भारतीय उप-राष्ट्रीयता पर किसी एक पहचान का मुलम्मा चढ़ाने का प्रयास हुआ तो यह देश टूट ही नहीं सकता, अपितु इसके कितने और बंटवारे हो जाएं कहना मुश्किल है, हमारे पूर्वज और हमारे संविधान लेखक बड़े विचारों के पूर्वज थे जिन्होंने भारतीय आत्मा को समझकर इस देश की विविधता को एक राष्ट्रीय धागे में पिरोया था. यह कानून उस धागे को तोड़ सकता है और फिर क्या हो वह स्पष्ट है

लेकिन संघ, मोदी और भागवत एक धर्म, एक भाषा तथा एक सभ्यता के नशे में चूर भारत को जिस हिंदू राष्ट्र का स्वरूप देने की मंशा रखते हैं वह देश की अखंडता के लिए संगीन खतरा बन चुकी है. देशवासियों को इस बात का अहसास भी हो गया है, तभी तो विश्वविद्यालयों से लेकर सड़कों तक भारत के कोने-कोने में आम जनता धरना प्रदर्शन कर रही है.

भारतीय युवाओं में इस समय जो आक्रोश है ऐसा आक्रोश निकट अतीत में देखने को नहीं मिला और यह आक्रोश मोदी सरकार और संघ की राजनीति के लिए अब एक बड़ा खतरा बन सकता है. इतिहास साक्षी है कि छात्रों ने अमेरिका जैसे साम्राज्यवादी देश की सरकार का तख्ता पलट दिया था. अमेरिका में सन 1970 के दशक का वियतनाम युद्ध विरोधी छात्र आंदोलन आज भी दुनिया को याद है. इसी प्रकार सन 1960 के दशक में पेरिस के छात्रों का विद्रोह और लातिन अमेरिका के छात्रों ने किस प्रकार वहां सरकारों का तख्ता पलटा वह भी कोई बहुत पुरानी बात नहीं है. मोदी, शाह और भागवत का अहंकार अब जिस चरम सीमा पर पहुंच चुका है उसके पश्चात इस समय छात्रों के गुस्से का जो लावा फूटा है वह फूटना ही था. इसलिए जामिया एक शुरुआत है जो मोदी सरकार के खिलाफ एक बड़े संघर्ष का स्वरूप लेने को तैयार है. परंतु यह संघर्ष एक कठिन संघर्ष हो सकता है, क्योंकि भाजपा और संघ दोनों ने सत्ता के हर अंग पर अपना कब्जा जमा लिया है और वे इस समय सत्ता के अहंकार में चूर हैं. वे मोदी विरोधी संघर्ष को किसी भी तरह कुचलने को तैयार हैं.अतः इस संघर्ष को चलाने के लिए बहुत सतर्क रहने की आवश्यकता है.

बीजेपी का ब्रह्मास्त्र सांप्रदायिकता है.अतः सबसे पहले इस मोदी विरोधी आंदोलन को हिंदू-मुस्लिम बंटवारे से तोड़ने की भरपूर कोशिश होगी. छात्रों और आम नागरिकों को इस खतरे से सचेत करने की भरपूर आवश्यकता है. जामिया के आंदोलन के साथ जैसे सारे देश के छात्र जुड़े, बस उसी डोर को बांधे रखने की आवश्यकता है.

यह केवल मुसलमानों का मामला नहीं है. इस कानून ने भारतीय संविधान कीआत्मा पर प्रहार किया है. अतः हर भारतीय नागरिक को मिलजुल कर यह संघर्ष करना होगा. फिर संविधान की सुरक्षा के लिए तमाम मोदी विरोधी राजनीतिक दलों को अपने सारे मतभेद भुलकर कांग्रेस के नेतृत्व में एकजुट होकर केवल इस नागरिकता कानून को ही नहीं अपितु पूरी मोदी सरकार को ध्वस्त करना होगा. इस ऐतबार से जामिया तो एक अंगड़ाई है, आगे अभी और लड़ाई है और ऐसा लग रहा है कि देश ने इस लड़ाई के लिए कमर कस ली है. आगे-आगे देखिए होता है क्या.

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Thought of Nation राष्ट्र के विचार

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