कांग्रेस (Congress) के कुछ नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करवाने के बाद तृणमूल कांग्रेस (TMC) जमीन पर नजर नहीं आ रही है. विपक्षी एकता को कमजोर करने की तरफ कदम बढ़ाते हुए तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस से दूरी बढ़ाने का एक और फैसला ले लिया है.
विपक्षी एकता में इस वक्त दरार साफ नजर आ रही है. इसकी मिसाल संसद के शीतकालीन सत्र के पहले होने वाली विपक्षी दलों की बैठक से पहले ही मिल चुकी है.
कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोमवार को सभी विपक्षी दलों की एक बैठक बुलाई है. जिसमें सदन के अंदर सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों में तालमेल पर विचार विमर्श किया जाना है. लेकिन तृणमूल कांग्रेस के लोग इस बैठक में शामिल नहीं होंगे.
कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने पहले कहा था कि विपक्षी दलों की एकता की वजह से ही मानसून सत्र में इन दलों ने मिलकर बेहतर काम किया था और सरकार को कई मुद्दों पर घेरने में कामयाब भी हुए थे. इसके पहले कांग्रेस ने तृणमूल पर आरोप लगाया था कि वह कांग्रेस को कमजोर कर बीजेपी को मजबूत कर रही है.
तृणमूल कांग्रेस की तरफ से इसका खंडन आया था और कहा गया था कि कांग्रेस की अपनी कमजोरियों की वजह से ऐसा हो रहा है और टीएमसी ने पश्चिम बंगाल चुनाव में बीजेपी के खिलाफ मोर्चा संभाला था और उसे शिकस्त दी थी.
तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के बीच दूरियां इस वजह से भी बढ़ी है कि बीते दिनों मेघालय के 17 में से 12 कांग्रेस के विधायकों ने पार्टी छोड़ दी और तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन कर ली. इससे तृणमूल मेघालय की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बन गई है. जबकि उसका वहां कोई आधार है ही नहीं. जनता का सपोर्ट है ही नहीं.
ममता बनर्जी अभी 3 दिन तक दिल्ली में रहने के बावजूद सोनिया गांधी से मिलने नहीं गई. इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कह दिया कि वह हर बार दिल्ली आने पर कांग्रेस अध्यक्ष से भला क्यों मिले? जबकि यह सभी को पता है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी को हराने के लिए अंदरूनी तौर पर कांग्रेस ने तृणमूल का समर्थन किया था. राहुल गांधी से लेकर किसी भी बड़े कांग्रेसी नेता ने पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार नहीं किया.
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