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कानूनी रूप से होना चाहिए राजस्थान मुद्दे का हल, इसे लेकर कांग्रेस के अंदर क्या है राय?

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राजस्थान में जारी सियासी संकट के बीच सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में मामले को लेकर कांग्रेस विभाजित है. सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई से ठीक एक दिन पहले सूत्रों ने यह जानकारी दी है.
सूत्रों ने बताया कि पार्टी में इसे लेकर एक राय नहीं है. पार्टी का एक वर्ग चाहता है कि याचिका को कोर्ट से वापस लेकर इसका राजनीतिक तरीके से हल किया जाना चाहिए. सूत्रों ने बताया कि इन नेताओं का मानना है कि संकट को राजनीतिक रूप से निपटाया जाना चाहिए. वहीं, पार्टी का दूसरा वर्ग इसका हल कोर्ट में ही चाहता है.
बीते हफ्ते सचिन पायलट के नेतृत्व में बागी खेमे ने राजस्थान हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और उन्हें वहां से अस्थायी राहत मिली थी. इसके बाद कांग्रेस याचिका दायर कर हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. शीर्ष अदालत इस मुद्दे पर कल सुनवाई करेगी.
उधर, तमाम अटकलों और विवादों के बीच राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने राज्यपाल के पास नया प्रस्ताव भेजा है. विधानसभा सत्र बुलाने के लिए भेजा गया ये नया प्रस्ताव कोरोना संकट को लेकर है. खास बात ये है कि इसमें विश्वास मत को लेकर कोई बात नहीं कही गई है. अशोक गहलोत चाहते हैं कि 31 तारीख से नया सत्र बुलाया जाए.
आपको बता दें कि अब से पहले गहलोत सोमवार को विधानसभा सत्र  बुलाने पर अड़े थे, जबकि राज्यपाल इस पर विचार के लिए और वक़्त चाहते थे. कल पूरे दिन और देर रात तक इसको लेकर बयानबाजी का दौर भी जारी रहा.
क्या है पूरा मामला?
यह पूरा विवाद सचिन पायलट की बगावत से शुरू हुआ. उनके साथ 18 विधायक हैं. कांग्रेस विधायक दल की बैठकों में इनके भाग न लेने पर पार्टी ने इनकी सदस्यता रद्द करने की अपील स्पीकर को की थी. स्पीकर सीपी जोशी ने 19 विधायकों को कारण बताओ नोटिस भेजा तो वे हाईकोर्ट चले गए. हाईकोर्ट ने भी सभी पक्षों को सुना और कह दिया कि स्पीकर उन 19 विधायकों पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकते.
इस बीच, स्पीकर जोशी सुप्रीम कोर्ट गए, जिसने हाईकोर्ट को फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. हाईकोर्ट का फैसला आ चुका है, जिसका सोमवार को रिव्यू सुप्रीम कोर्ट में होगा यानी उसके बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी. दूसरी ओर, हाईकोर्ट का फैसला आते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा सत्र बुलाने की जिद पकड़ ली. इस संबंध में राजभवन भेजे गए कैबिनेट नोट में राज्यपाल कलराज मिश्र ने छह आपत्तियां उठाई तो विधायकों के साथ पांच घंटे तक राजभवन में धरना दिया.
राज्यपाल क्या निर्वाचित सरकार के फैसले पलट सकते हैं?
नहीं. तमाम सीनियर एडवोकेट और संविधान एक्सपर्ट कह रहे हैं कि राज्यपाल को संविधान में इतनी शक्ति नहीं है कि वह किसी भी निर्वाचित सरकार के फैसले को खारिज करें. सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले भी यही इशारा कर रहे हैं कि राज्यपाल को देर-सबेर विधानसभा सत्र बुलाना ही होगा. गहलोत सरकार ने भी इसी वजह से दूसरा कैबिनेट नोट तैयार कर लिया है.
तो क्या राज्यपाल को कोई अधिकार नहीं है? संविधान क्या कहता है?
विधानसभा सत्र बुलाने, उसका अवसान करने और सदन को भंग करने के राज्यपाल के अधिकारों का जिक्र संविधान के दो प्रावधानों में है. आर्टिकल 174 के तहत राज्यपाल निर्धारित वक्त और स्थान पर विधानसभा सत्र बुला सकता है. आर्टिकल 174 (2) (ए) कहता है कि सरकार समय-समय पर सदन का अवसान कर सकते हैं. वहीं, आर्टिकल 174 (2) (बी) राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का अधिकार देता है.
दूसरी ओर, आर्टिकल 163 कहता है कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करेगा. लेकिन यदि संविधान के लिए आवश्यक है तो वह बिना सलाह के भी अपने विवेक पर फैसले ले सकता है. मद्रास हाईकोर्ट ने 1973 में राज्यपाल के विवेकाधिकार से जुड़े प्रश्न पर कहा था कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह और सुझाव पर काम करने को बाध्य है.
सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल के विवेकाधिकार पर क्या कहता है?
इस संबंध में 2016 में नबम रेबिया केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अरुणाचल में संवैधानिक संकट खड़ा हो गया था. इसमें कहा गया था कि राज्यपाल सिर्फ मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करेगा. अरुणाचल में 20 बागी कांग्रेस विधायकों, 11 भाजपा विधायकों और एक निर्दलीय के संयुक्त अनुरोध पर राज्यपाल ने 14 जनवरी 2016 के बजाय 15 दिसंबर 2015 को ही सत्र बुला लिया था.
यह विधायक स्पीकर और सरकार से खुश नहीं थे. उस समय रेबिया ही अरुणाचल प्रदेश के स्पीकर थे. तब उन्होंने राज्यपाल के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी. इस केस में कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि राज्यपाल के पास यह भरोसा करने के कारण है कि मंत्रिपरिषद सदन का विश्वास खो चुकी है तो फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया जा सकता है.
यह तो हो गई कानूनी बातें, कोरोना के डरे के बाद भी गहलोत क्यों अड़े हैं?
दरअसल, कहानी शुरू हुई थी गहलोत और पायलट के टकराव से. गहलोत जनता के सामने साबित करना चाहते हैं कि सचिन पायलट कमजोर नेता हैं और वह ही राज्य में कांग्रेस के बडे़ नेता हैं. दूसरा, पायलट समेत 19 विधायकों को अयोग्य ठहराने की एक कोशिश नाकाम रही है. अब सत्र होता है तो पायलट खेमे को व्हिप का पालन करना होगा, यानी गहलोत खेमे को दूसरा मौका मिलेगा.
वैसे, गहलोत सरकार पर फिलहाल कोई संकट नहीं दिख रहा. सचिन पायलट गुट के 19 विधायकों को छोड़ भी दें तो भी इस समय गहलोत के साथ 200 के सदन में 102 विधायक दिख रहे हैं.
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