चुनाव नजदीक आते ही तमाम तरह के राजनीतिक सर्वे (Political survey) मीडिया चैनलों पर देखने को मिल जाते हैं. सर्वे के प्रति मीडिया की दिलचस्पी 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद काफ़ी बढ़ी है. लेकिन आजकल जो सर्वे आ रहे हैं उस पर जनता कम ही भरोसा कर रही है. लेकिन जो सर्वे 2014 के पहले आते थे वह राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों की सांसे रोक देते थे. 2014 लोकसभा चुनाव से पहले जो सर्वे आते थे उसका इंतजार जनता और राजनीतिक पार्टियां पहले से ही करती थी.
लेकिन आजकल मीडिया में जो सर्वे दिखाए जा रहे हैं उसको जनता तुरंत खारिज कर देती है. ऐसा दो कारणों से होता होगा. या तो जनता के मन मुताबिक सर्वे नहीं होंगे या फिर जनता को पूरा भरोसा हो चुका है कि, यह सर्वे पूरे प्लान के तहत एक राजनीतिक पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए दिखाए जा रहे हैं. मीडिया में जो आजकल सर्वे दिखाए जा रहे हैं, उसमें कई बार ऐसा देखने को मिल जाता है कि जो आंकड़े प्रस्तुत किए जाते हैं उन आंकड़ों को अगर जोड़ दिया जाए तो उसमें कई बार काफी गलतियां नजर आ जाती है. मीडिया की तरफ से आंकड़े बढ़े हुए नजर आने लगते हैं. ऐसा सिर्फ तभी होता है जब जमीन पर उतर कर सर्वे न किया गया हो, जल्दबाजी में बनाया गया सर पर हो.
पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव हो या फिर कर्नाटक का या फिर मध्यप्रदेश और राजस्थान, इन चारों जगहों पर चुनावी नतीजों के बाद बीजेपी हार गई थी. लेकिन इन चारों जगहों पर तमाम मीडिया चैनलों ने अपने सर्वे में बीजेपी को भारी जीत दिखाई थी. पश्चिम बंगाल में तो तमाम मीडिया चैनलों ने विधानसभा चुनाव के काफी पहले से ही बीजेपी को प्रचंड बहुमत दे दिया था अपने तमाम सर्वे मे. लेकिन नतीजा क्या हुआ? बीजेपी बुरी तरीके से हार गई. सर्वे पर जनता भरोसा इसलिए भी करने के लिए तैयार नहीं है कि, मीडिया के सर्वे लगातार गलत साबित हो रहे हैं. इसके अलावा 90% मीडिया एकतरफा खबरें दिखाती है और जिन के पक्ष में मीडिया खबरें दिखाती है सर्वे में उन्हीं की प्रचंड जीत भी दिखाती है. इसलिए भी मीडिया से जनता का भरोसा उठता जा रहा है और तमाम जो सर्वे दिखाए जाते हैं उनको जनता तुरंत खारिज भी कर देती है.
जैसे ही मौजूदा सत्ताधारी पार्टी बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी मुद्दे पर घिरे हुए दिखाई देते हैं, मीडिया के अंदर तुरंत विपक्षी पार्टियों और मौजूदा सत्ता की तुलना करते हुए सर्वे दिखाएं जाने लगते हैं. प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ दिखाया जाने लगता है. और मीडिया के जरिए जनता को दिखाने की कोशिश होती है कि, विपक्ष जनता के जिन मुद्दों को उठा रहा है उससे जनता के बीच प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है या फिर अधिक कमी नहीं आई है.
मीडिया के सर्वे में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता हमेशा 70% से ऊपर ही दिखाई जाती है और बाकी के 30% में दूसरे नेताओं को बांट दिया जाता है और यह बताने की कोशिश होती है कि जनता के बीच अभी भी देश के सबसे लोकप्रिय नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बने हुए हैं. मीडिया में बताया जाता है सर्वे का सैंपल साइज. पहले तो सैंपल साइज देखकर हंसी आती है और फिर यह सवाल उठता है कि, क्या यह सैंपल साइज भी जनता के बीच का है या फिर सोशल मीडिया का या फिर बीजेपी के कार्यालय से आया है?
कुल मिलाकर सत्ताधारी पार्टी का प्रचार करने की होड़ सत्ताधारी पार्टी से अधिक मीडिया के बीच लगी हुई है. और यह करते हुए मीडिया ने अपनी विश्वसनीयता पर सवालिया निशान खड़े कर लिए हैं. अब मीडिया के सर्वे पर कोई भी भरोसा करने के लिए तैयार नहीं है. क्योंकि सर्वे के जरिए मीडिया बीजेपी का प्रचार करती है और जनता के बीच विपक्ष को खत्म करने की या फिर दरकिनार करने की कोशिश करती है. चुनाव आयोग को चुनाव से पहले लगातार दिखाए जाने वाले सर्वे पर रोक लगानी चाहिए. क्योंकि यही जनता की मांग है और तमाम विपक्षी पार्टियां भी यही चाहती हैं.
पांच राज्यों में चुनाव है तो 4 राज्यों में पहले ही बीजेपी को जीत दिखा दी जाती है सर्वे के माध्यम से और एक किसी राज्य में किसी विपक्ष की एक पार्टी की जीत दिखा दी जाती है. इसका असर जनता के बीच होता है. यह ठीक वैसा ही है जैसे बीजेपी अपना प्रचार जमीन पर या फिर सोशल मीडिया के जरिए करती है और मीडिया बीजेपी का प्रचार टीवी पर बैठकर करती है. बीजेपी चुनावी रैलियों में और सोशल मीडिया के माध्यम से विपक्ष पर निशाना साधती है और मीडिया टीवी पर बैठकर विपक्ष को बदनाम करती है, सर्वे के जरिए कम दिखाने की कोशिश करती है या फिर खत्म दिखाने की कोशिश करती है.
जो पत्रकार टीवी चैनलों पर बैठकर सर्वे दिखाते हैं, वही पत्रकार हमेशा सोशल मीडिया के जरिए बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए दिखाई देते हैं और प्रचार करते हुए दिखाई देते हैं और जब यही लोग बीजेपी के पक्ष में उनकी जीत सर्वे के माध्यम से दिखाएंगे तो फिर जनता भरोसा कैसे करेगी? यही पत्रकार विपक्ष को सोशल मीडिया पर बदनाम करते हैं और सर्वे के माध्यम से विपक्ष को हारता हुआ दिखाएंगे तो जनता भरोसा कैसे करेगी सर्वे पर?
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सर्वे के बारे में बात जरूर होनी चाहिए क्योंकि यह सीधा जनता से जुड़ा मुद्दा है
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