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जरूरत है कांग्रेस को बदल देने की, जरूरत है कांग्रेस में नए लोगों के आने की?

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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कुछ वक्त पहले कहा था कि जिनको डर लगता है वह लोग पार्टी छोड़कर आरएसएस में चले जाएं और जो लोग डरते नहीं हैं, उन्हें हम अपनी पार्टी में लाएंगे, उनका हमारी पार्टी में स्वागत है. कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) और जिग्नेश मेवानी ने जहां एक ओर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Congress) ज्वाइन किया वहीं दूसरी ओर कई युवा नेता पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी छोड़कर बीजेपी तथा अन्य क्षेत्रीय पार्टियों का दामन थामते नजर आए.
ऐसे में कांग्रेस के अंदर से भी और बाहर से भी कई आवाजें उठ रही हैं कि अपने लोगों को कॉन्ग्रेस अपने साथ नहीं रख पा रही है और जो दूसरे लोग हैं उनको पार्टी में लाकर यह कहने की कोशिश की जा रही है कि कांग्रेस वापसी करेगी कांग्रेस मजबूत होगी.
ऐसे में सवाल कई हैं जो महत्वपूर्ण हैं
पिछले दिनों ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia), जितिन प्रसाद (Jitin Prasad) और सुष्मिता देव (Sushmita dev) जैसे कई युवा नेता कांग्रेस पार्टी का दामन छोड़ कर चले गए. इन सबके बीच कांग्रेस को क्रिटिसाइज भी किया गया. इन नेताओं के कांग्रेस छोड़ने से कांग्रेस के आलोचकों को और बीजेपी को इसके साथ साथ मीडिया को मौका मिल गया कांग्रेस को कमजोर बताने का, राहुल गांधी के नेतृत्व को खारिज करने का. ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता की राजनीतिक विरासत के दम पर कांग्रेस पार्टी में आए थे और कांग्रेस पार्टी में उन्हें भरपूर सम्मान भी मिला.
15 साल तक लगातार बीजेपी मध्य प्रदेश में सरकार में रही. ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद भी अपने आप को कांग्रेस का बड़ा नेता समझते थे, स्टार समझते थे और दूसरे भी उनके लिए यही समझते थे. लेकिन अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया इतने ही बड़े नेता थे कि किसी भी चुनाव परिणाम को, किसी भी प्रदेश की सत्ता को अपने दम पर बदल सकते थे अपनी लोकप्रियता के दम पर, तो फिर उनके रहते हुए बीजेपी 15 साल तक लगातार बड़े बहुमत के साथ मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज कैसे रही?
सच तो यही है कि ग्वालियर चंबल क्षेत्र के कुछ इलाकों को छोड़ दिया जाए तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का मध्यप्रदेश के अंदर भी कोई खास वजूद नहीं है, यह पिछले कई विधानसभा चुनाव जो मध्य प्रदेश के हुए हैं उसमें नजर भी आया है. 2019 का लोकसभा चुनाव तो सिंधिया खुद हार गए थे अपनी सीट नहीं बचा पाए थे. ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस में रहते हुए मुख्यमंत्री बनना था लेकिन मध्यप्रदेश में मौजूद कई दिग्गज भाजपा नेताओं के रहते हुए क्या कभी वह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भाजपा की तरफ से बन पाएंगे?
जितिन प्रसाद ने भाजपा ज्वाइन की तब मीडिया द्वारा सभी को पता चला कि वह एक कद्दावर ब्राह्मण नेता थे लेकिन उसके पहले तो वह कई विधानसभा और लोकसभा चुनाव हार चुके थे और बड़े बहुमत से हारे थे. कांग्रेस छोड़कर अगर किसी नेता द्वारा बीजेपी ज्वाइन कर लिया जाता है तो मीडिया द्वारा और बीजेपी के नेताओं द्वारा यह कहते हुए सुना जा सकता है कि कांग्रेस के कद्दावर और बड़े नेता ने छोड़ी पार्टी. लेकिन उसका पिछला इतिहास नहीं बताया जाता है कि, उसने कांग्रेस में रहते हुए खुद के दम पर कांग्रेस को कितना मजबूत किया था या नहीं किया था?
खुद के दम पर कोई चुनाव जिताया था या नहीं? अपनी विधानसभा और लोकसभा खुद जीती थी या नहीं जीती थी? आसपास की कितनी सीटों पर असर था? सच तो यही है कि गांधी परिवार ने कई ऐसे नेताओं को अपने साथ रख कर, उन्हें तवज्जो देकर, बड़ी बड़ी जिम्मेदारियां देकर इतना बड़ा बना दिया जो वह जमीनी तौर पर कभी थे ही नहीं और आज जब वह इस बेस पर दूसरी पार्टी को ज्वाइन करते हैं कि, वह राहुल गांधी के करीबी हैं तो मीडिया को और बीजेपी को कांग्रेस का दुष्प्रचार करने का मौका मिलता है.
दरअसल हकीकत क्या है?
साधारण शब्दों में और जमीनी हकीकत को देखते हुए अगर टिप्पणी की जाए तो हकीकत यही है कि जिन नेताओं ने पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी को छोड़ा है उनका जमीन पर कोई भी आधार नहीं है. कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार द्वारा दिए गए सम्मान और अपने पूर्वजों की राजनीतिक विरासत के अलावा उनके पास खुद की तैयार की हुई कोई ऐसी विरासत नहीं है, जिसे वह दिखा सके, बता सके.
गांधी परिवार का करीबी नेता है इसी आधार पर बीजेपी उन नेताओं को अपनी पार्टी के अंदर शामिल करवाती है और मीडिया द्वारा कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश की जाती है. दरअसल कांग्रेस के अंदर अभी भी ऐसे नेता भरे हुए हैं जो आने वाले वक्त में पार्टी को छोड़ सकते हैं और उनके नाम के सहारे भी कांग्रेस को कमजोर दिखाने की कोशिश की जाएगी, यह बताने की कोशिश की जाएगी कि कांग्रेस डूबता जहाज है, जिसे लोग छोड़ रहे हैं. लेकिन वह लोग भी ऐसे ही हैं जो अपने दम पर कोई चुनाव जीता नहीं सकते.
जो गए या जाने वाले हैं, ऐसे नेताओं की जरूरत कांग्रेस को थी ही नहीं. आने वालों को स्वागत करना चाहिए?
जो नेता पिछले कुछ सालों में कांग्रेस को छोड़कर जा चुके हैं दरअसल यह नेता विचारधारा के लिए ईमानदार थे ही नहीं. गांधी परिवार के समर्पण से इनको वास्ता था ही नहीं. यह सिर्फ कांग्रेस में रहकर बड़े पदों की लालसा रखने वाले लोग थे. ज्योतिरादित्य सिंधिया हो या फिर जितिन प्रसाद या फिर इनके जैसे दूसरे, इन्होंने कभी उस दुष्प्रचार को मुंहतोड़ जवाब नहीं दिया, जो दुष्प्रचार मीडिया द्वारा गांधी परिवार के प्रति किया जाता है, कांग्रेस के प्रति किया जाता है, कांग्रेस के महान नेताओं के प्रति किया जाता है.
राहुल गांधी की छवि किस हद तक मीडिया के सहारे बीजेपी और आरएसएस ने खराब करने की कोशिश की. लेकिन क्या कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया को मीडिया पर और आरएसएस पर खुलकर हमला करते किसी ने देखा था? राहुल गांधी की छवि जब खराब करने की शुरुआत बीजेपी और आरएसएस ने की थी उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद जैसे लोग कांग्रेस की ही सरकार में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कैबिनेट मंत्री हुआ करते थे. राहुल गांधी तो सरकार में किसी पद पर थे ही नहीं. ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद जैसे लोगों ने भाजपा और आरएसएस द्वारा चली जा रही इस चाल को रोकने के लिए अपनी तरफ से किया क्या था?
मीडिया द्वारा लगातार राहुल गांधी पर हमले हुए. बीजेपी के नेताओं द्वारा गांधी परिवार पर पर्सनल अटैक किए गए, लेकिन क्या कभी कांग्रेस छोड़कर जा चुके नेताओं ने कांग्रेस में रहते हुए राहुल के बचाव में बीजेपी नेताओं और मीडिया पर अंकुश लगे, इसके लिए अपनी तरफ से कोई प्रयास किया? दरअसल जो नेता पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं या अभी भी जाने वाले हैं, उन लोगों ने हमेशा अपना खुद का प्रचार किया, उनकी छवि जनता के बीच बनी रहे या मीडिया में उनका प्रचार प्रसार होता रहे इसके लिए उन नेताओं ने मीडिया से सांठगांठ की और राहुल गांधी की छवि से समझौता किया. मीडिया पर उन नेताओं ने कभी खुलकर नहीं बोला, क्योंकि उनकी छवि पर तो कोई फर्क पड़ नहीं रहा था. बदनाम तो राहुल गांधी और गांधी परिवार और कांग्रेस हो रहे थे.
बीजेपी और आरएसएस ने मीडिया के साथ मिलकर जब गांधी परिवार, देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और इस देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों की छवि खराब करने की कोशिश की, उस वक्त ही अगर अपने आपको दिग्गज समझने वाले वह नेता जो पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं या जाने वाले हैं, उन्होंने मीडिया पर खुलकर बोला होता, मीडिया की आलोचना की होती, अपनी तरफ से लीगल एक्शन लिया होता तो शायद आज बीजेपी मीडिया के साथ मिलकर इतनी कामयाब नहीं हुई होती. लेकिन उन्होंने मीडिया घरानों से अपनी पर्सनल दोस्ती बनी रहे, पत्रकारों से पर्सनल रिश्ते बने रहे, इसके बदले में राहुल गांधी की छवि से समझौता किया.
कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की छवि से समझौता किया, कांग्रेस की साख से समझौता किया. अब कुछ नए लोग कांग्रेस में आ रहे हैं, जुड़ रहे हैं तो भी मीडिया को उन लोगों की विचारधारा से तकलीफ है. लेकिन सवाल तो यही है कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद तथा सुष्मिता देव जैसे नेताओं की विचारधारा पर प्रश्नचिन्ह मीडिया द्वारा क्यों नहीं खड़े किए, गए जब उन्होंने बीजेपी ज्वाइन की? दरअसल कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवानी जैसे जितने भी युवा नेता है उन सभी का स्वागत होना चाहिए और प्रयास होना चाहिए कि वह कांग्रेस पार्टी की सदस्यता लें.
क्योंकि यह नेता खुलकर Media के खिलाफ बोलने का माद्दा रखते हैं. अगर यह नेता मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना मुखर होकर किसी भी मंच से करते हैं और मीडिया इनका साथ ना देते हुए, जनता का साथ ना देते हुए मोदी सरकार का बचाव करते हुए उल्टा इनसे ही सवाल करता है तो यह इसकी कूवत रखते हैं कि, अपने सवालों से अपने तेवरों से मीडिया का मुंह इस तरह बंद करा दें कि अगली बार मीडिया मोदी सरकार का बचाव करने से पहले और इनसे सवाल करने से पहले, कांग्रेस से सवाल करने से पहले, राहुल गांधी की इमेज खराब करने से पहले 100 बार सोचे.
जो युवा नेता अब कांग्रेस पार्टी में शामिल हो रहे हैं वह संघर्ष से निकले हुए हैं. उनके पास कोई बड़ी राजनीतिक विरासत नहीं थी. वह मीडिया से आंख से आंख मिलाकर बात करने से डरने वाले नहीं है. वह इस सोच में पड़ने वाले नहीं हैं कि अगर मीडिया हमारी आलोचना करेगी तो हमारे पास सुविधाओं का अभाव हो जाएगा, हमारा प्रचार-प्रसार नहीं होगा. यह युवा नेता जलती आग में कूदने का माद्दा रखते हैं. इसलिए ऐसे युवा नेताओं की जरूरत कांग्रेस को है जो बीजेपी और आरएसएस के साथ-साथ मीडिया के खिलाफ भी मुखर हो.
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