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वह संकेत जिससे कहा जा सकता है कि जनता अखिलेश यादव का मौका दे सकती है

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2022 विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) चुनावी रणभूमि में पूरी तैयारी के साथ उतर चुके हैं. एक तरफ जहां अखिलेश यादव जाति आधार वाली छोटी पार्टियों से हाथ मिला कर सियासी समीकरणों को मजबूत कर रहे हैं. तो वही दूसरे दलों से जनाधार वाले नेताओं की एंट्री के लिए भी समाजवादी पार्टी के दरवाजे खोल दिए हैं.
अखिलेश यादव कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी की बजाए जाति आधार वाली छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन को अहमियत दे रहे हैं. जिनकी ओबीसी जातियों में पकड़ मजबूत है. पूर्वांचल में राजभर कुर्मी और नोनिया समाज के वोटों को साधने रखने के लिए अखिलेश यादव ने ओमप्रकाश राजभर की पार्टी से गठबंधन किया है. तो वहीं संजय चौहान की जनवादी पार्टी और कृष्णा पटेल की अपना दल के साथ गठबंधन किया है.
ब्रिज के इलाके में मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, मौर्य, सैनी वोटरों को जोड़ने के लिए अखिलेश यादव ने केशव देव मौर्य की महान दल के साथ गठबंधन किया है. जबकि पश्चिमी यूपी में जाट समाज के वोटों के लिए जयंत चौधरी की आरएलडी के साथ हाथ मिला रखा है. इसके अलावा भी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष ने तमाम छोटी पार्टियों के साथ तालमेल बिठा रहे हैं.
अखिलेश यादव की रणनीति इस बार 40% वोटों को हासिल करने की है. जिसके लिए तमाम छोटे-छोटे दलों को अपने साथ जोड़ रहे हैं. इसी फॉर्मूले पर बीजेपी 2017 में 15 साल के बाद सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही थी. 2022 के चुनाव से ठीक पहले अखिलेश यादव ने दूसरे दलों के नेताओं की एंट्री के लिए समाजवादी पार्टी के दरवाजे भी खोल दिए हैं.
रामअचल राजभर से लेकर लालजी वर्मा, आरएस कुशवाहा, कादिर राणा, त्रिभुवन दत्त, केके गौतम जैसे बड़े नेताओं को अपने साथ मिलाया है जो समाजवादी पार्टी से थे. पिछले 3 महीनों में अखिलेश यादव ने विपक्षी दलों के करीब 200 बड़े नेताओं की समाजवादी पार्टी में एंट्री कराई है. इस तरह अखिलेश यादव यह संदेश देने में कामयाब रहे हैं कि, बीजेपी का विकल्प सिर्फ सपा ही बन सकती है.
इसके अलावा सीतापुर से बीजेपी के मौजूदा विधायक को भी समाजवादी पार्टी में शामिल करा लिया है. उत्तर प्रदेश के चुनाव में अभी वक्त है. लेकिन अखिलेश यादव अभी से ही अपने सहयोगी दलों के साथ रैलियां कर चुनावी हवा बनाने में जुट गए हैं. गाजीपुर और मऊ में ओमप्रकाश राजभर की भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी की रैली के मंच पर अखिलेश यादव हुंकार भरते दिखे. तो लखनऊ में डॉक्टर संजय चौहान की जनवाद सोशलिस्ट पार्टी की जनक्रांति महारैली को भी संबोधित किया.
अब अखिलेश यादव 7 दिसंबर को पश्चिमी यूपी के मेरठ में जयंत चौधरी के साथ चुनावी अभियान की शुरुआत करने वाले हैं. इतना ही नहीं महान दल के केशव देव मौर्य के साथ भी मैनपुरी और लखनऊ में सपा प्रमुख अखिलेश यादव कार्यक्रम कर चुके हैं. सहयोगी दलों के नेताओं के साथ मंच साझा करने के पीछे रणनीति यह है कि, कार्यकर्ताओं में बेहतर तालमेल बने. ताकि चुनाव में एक दूसरे के वोट आसानी से ट्रांसफर हो सके.
अखिलेश यादव बखूबी समझ रहे हैं कि पश्चिमी यूपी की सियासत में जाट और मुस्लिम वोटरों की निर्णायक भूमिका है, जो किसी भी राजनीतिक दल का खेल बनाने और बिगाड़ने के लिए काफी है. 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे से जाट और मुस्लिम एक दूसरे के खिलाफ हुए तो बीजेपी ने पश्चिमी यूपी में विपक्ष का सफाया कर दिया था. किसान आंदोलन के चलते जाट मुस्लिम एक साथ आए हैं. जिन्हें साधने के लिए अखिलेश यादव ने जाट समाज के नेता और आरजेडी के अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ गठबंधन किया है.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव 2022 के चुनाव में बहुत सधी हुई रणनीति के साथ आगे बढ़ रहे हैं. उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को किसी तरह से ध्रुवीकरण करने का मौका अखिलेश यादव नहीं दे रहे हैं. समाजवादी पार्टी को मुस्लिम परस्त होने के आरोपों से बचाने के लिए अखिलेश यादव सधी हुई रणनीति अपना रहे हैं. इसके लिए वह अभी तक न तो चाचा शिवपाल यादव को अहमियत दे रहे हैं ना ही असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को.
अखिलेश यादव यह भली-भांति जान रहे हैं कि 2022 के चुनावी संग्राम में मुस्लिम और यादव वोट कहीं नहीं जा रहा है. इसलिए शिवपाल के लाख कहने के बाद भी अखिलेश ने उनकी पार्टी के साथ किसी तरह का कोई समझौता अभी तक नहीं किया है. सिर्फ इतना ही कहा है कि सत्ता में आने पर चाचा को पूरा सम्मान दिया जाएगा. जबकि ओवैसी को लेकर किसी तरह की कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं.
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