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जनता सब जानती है, इस शब्द का मजाक बना दिया है.

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देश में इस वक्त हिंदुत्व की राजनीति अपने शिखर पर है या यूं कहें कि मीडिया के सहयोग से जनता का ब्रेनवाश भरपूर किया गया है.
सत्ताधारी पार्टी के नेता हिंदुत्व की राजनीति करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं. वही असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) भी एक धर्म को आधार बनाकर राजनीति करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं या यूं कहें कि मुस्लिम परस्त राजनीति का नेतृत्व करने की चाहत पाले हुए हैं.
कोई मंदिर की राजनीति कर रहा है तो कोई मस्जिद की राजनीति कर रहा है. कोई हिंदू की राजनीति कर रहा है तो कोई मुस्लिम की राजनीति कर रहा है. वहीं कुछ क्षेत्रीय दल लंबे समय से जातीय वोट बैंक की राजनीति करते आ रहे हैं, जिसमें वह लंबे समय तक सफल भी रहे और अभी भी कुछ मात्रा में कहीं-कहीं सफल है. लेकिन जातीय समीकरण को बिठाकर राजनीति करने वाले दलों के दिन अब लद चुके हैं.
जाति आधारित राजनीति पर हिंदुत्व की राजनीति भारी पड़ रही है. देश में किसी भी पार्टी के नेता से सत्ताधारी पार्टी या फिर विपक्ष की पार्टी के बारे में या विपक्ष की पार्टी या फिर सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के बारे में अगर कुछ पूछा जाता है तो वह अपनी बात रखते हैं और बात के अंत में यह कहते हुए सुनाई पड़ते हैं कि “जनता है सब जानती है.” विपक्षी पार्टी के नेताओं से भी अगर मौजूदा सत्ताधारी पार्टी के बारे में, मौजूदा सत्ताधारी पार्टी की नीतियों के बारे में सवाल किया जाता है तो वह मौजूदा सत्ताधारी पार्टी की नीतियों की आलोचना करते हैं, मौजूदा प्रधानमंत्री की आलोचना करते हुए दिखाई देते हैं और कहते हैं कि जनता थक चुकी है भाजपा (BJP) से और भाजपा के नेताओं से और प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) के बड़बोले बयानों से.
विपक्षी पार्टी के नेताओं का हमेशा कहना रहता है कि “जनता सब जानती है.” जनता इस सरकार से ऊब चुकी है, परेशान हो चुकी है. लेकिन सवाल यही उठता है कि अगर जनता सतर्क है, जनता सब जानती है, जनता ऊब चुकी है भाजपा की नीतियों से, प्रधानमंत्री मोदी के बयानों से जनता पक चुकी है, प्रधानमंत्री मोदी का बड़बोला पर राश नहीं आ रहा है जनता को, तो फिर भाजपा आखिर जीत कैसे रही है, एक के बाद एक राज्यों में विपक्ष हार क्यों रहा है?
इस सवाल का जवाब यही है कि, जनता सच में सब कुछ जानती है. जो भाजपा का समर्थन कर रही है वह भी और जो विपक्ष का समर्थन कर रही है वह भी. लेकिन जो विपक्ष के साथ जनता खड़ी है वह सब कुछ जानते हुए भी एकजुट नहीं है. उसका समर्थन अलग-अलग पार्टियों को है, अलग-अलग नेताओं को है. कुछ अपनी जाति के नेताओं का समर्थन कर रहे हैं तो कुछ दूसरी जाति के नेताओं का विरोध.
भाजपा का विरोध कर रही जनता जो कुछ भी जानती हो, लेकिन वह जानते हुए भी सतर्क नहीं है. क्योंकि वह बिखरी हुई है जाति और धर्म से ऊपर अभी भी उठना नहीं चाहती है. जब भी चुनाव आता है तो विपक्षी पार्टी और सत्ताधारी पार्टी के नेता आपको यह कहते हुए दिखाई देंगे की “जनता सब कुछ जानती है.” अगर जनता सब कुछ जानती है तो फिर वह एकजुट क्यों नहीं है? अगर देश की सारी जनता यह जानती है कि, भाजपा की नीतियां देश के हित में नहीं है. महंगाई को कंट्रोल करने का कोई प्लान नहीं है भाजपा के पास. रोजगार पैदा करने के अवसर भाजपा नहीं बना पा रही है, छोटे उद्योगों को डूबने से भाजपा नहीं बचा पा रही है.
वोट देने और समर्थन करने का आधार?
तो फिर जो जनता भाजपा के समर्थन में खड़ी है वह क्या जानती है? क्या वह सिर्फ इतना ही नहीं जानती कि हमें धर्म के आधार पर वोट देना है? जाति के आधार पर वोट देना है? उसके मन में यह नहीं बैठा दिया गया है कि अगर भाजपा सरकार में नहीं रहेगी तो हिंदुत्व खतरे में आ जाएगा? हिंदू खतरे में आ जाएगा? बात बस इतनी सी है कि जो जनता भाजपा के समर्थन में है, प्रधानमंत्री मोदी के समर्थन में है, उसको इतना पता है कि या यूं कहें कि उसके दिमाग में यह बैठा दिया गया है कि, अगर प्रधानमंत्री मोदी नहीं जीतेंगे, भाजपा की सरकार नहीं रहेगी तो हिंदुत्व खतरे में आ जाएगा, देश पर मुसलमानों का राज हो जाएगा. जनता के दिमाग में बिठा दिया गया है कि भाजपा की सरकार है तो सेना मजबूत है देश मजबूत है.
उसके दिमाग में यह बैठा दिया गया है कि भाजपा की सरकार में हिंदुत्व की सरकार है, भाजपा ने और प्रधानमंत्री मोदी ने हिंदुत्व को बचा कर रखा हुआ है. मौजूदा सत्ताधारी पार्टी के समर्थन मे जो जनता है, उसको इतना पता है कि अगर कांग्रेस की सरकार आ जाएगी या कांग्रेस की गठबंधन की सरकार आ जाएगी तो देश मे हिंदुत्व खतरे में आ जाएगा, मुसलमानों का राज आ जाएगा. जो भाजपा के विरोध में जानता है, उसको यह पता है कि मेरी जाति, मेरे धर्म के नेता को मुझे जिताना है, और सबसे बड़ी बात वह भाजपा का हो फिर जाती मायने नहीं रखती. क्यों कि उनके मन में बिठाया गया है कि भाजपा है तो धर्म है.
इसके अलावा ओवैसी के समर्थकों को पता है या यु कहे उनके मन में बिठा दिया गया है कि मुसलमानो को उनका हक़ दिलाना है और ओवैसी ही यह काम कर सकते है. उनको यह लगता है की 70 सल में उनके लिए कुछ नहीं हुआ, इसलिए ओवैसी को जिताना है. हक क्या है वह ओवैसी के समर्थकों को पता नहीं है.
जहां तक कांग्रेस (Congress) का सवाल है तो कांग्रेस के पास कोई भी वोट बैंक नहीं है. किसी भी जाति धर्म पर वह दावा नहीं कर सकती की यह हमारा वोट बैंक है. क्योंकि कांग्रेस ने कभी जाति आधारित, धर्म आधारित राजनीति की नहीं. कुछ नेताओं ने जो कांग्रेस की सरकारों में बड़े-बड़े मंत्रालय संभालने होंगे उन नेताओं ने जाति-धर्म की राजनीति की होगी. लेकिन कांग्रेस पार्टी की विचारधारा जाति-धर्म आधारित राजनीति नहीं रही है, इसलिए आज कांग्रेस पूरी तरीके से लाचार है. कांग्रेस के पास छुट-पुट बिखरा हुआ वोट बैंक है. लेकिन वह सभी जाति धर्म से आता है.
उम्मीद है आपको समझ में आ गया होगा कि नेताओं द्वारा कहा जाने वाला जुमला की जनता को सब कुछ पता है वह कहां तक सही है. चुनावी रिजल्ट के 1 दिन पहले तक और 10 दिन बाद से फिर से विपक्ष के और सत्ताधारी पार्टी के नेता कहना शुरू कर देते हैं कि जनता है इस को सब कुछ पता है. आज जनता अपने बच्चों का भविष्य, अपने रोजगार, अपने परिवार के बारे में बाद में सोचती है, पहले वह धर्म को बचाने में लगी हुई है, जाति को बचाने में लगी हुई है. जाति धर्म के नेताओं को जिताने में लगी हुई है. आज की तारीख मे जनता को बस हिन्दू-मुस्लिम (Hindu Muslim) पता है!
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