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जनता ने देश के अंदर अपने उफान पर चल रहे राष्ट्रवाद पर अंकुश लगाने की से पूरी कोशिश की है

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शिवसेना और भाजपा के गठबंधन ने महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़े हासिल कर लिए हैं, लेकिन महाराष्ट्र में शिवसेना भाजपा के सामने अपना उग्र रूप लगातार दिखा रही है.

शिवसेना महाराष्ट्र में बड़े भाई का दर्जा हासिल करना चाह रही है. गौरतलब है कि देवेंद्र फडणवीस अपने हाथ से मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने नहीं देना चाहेंगे, लेकिन पिछले कुछ सालों में शिवसेना की राजनीति जिस प्रकार से देखने को मिली है, वह सत्ता के लिए किसी भी हद तक जाने की रही है, अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए रही है.

महाराष्ट्र में बहुमत का आंकड़ा भाजपा और शिवसेना के पास मौजूद है,लेकिन अगर शिवसेना अपना मुख्यमंत्री नहीं बनवा पाई तो संभावना यह भी बन रही है कि कांग्रेस बाहर से समर्थन देकर महाराष्ट्र के अंदर शिवसेना की सरकार बनवा दे. कुछ इसी तरह के संकेत शरद पवार ने भी दिए हैं.

हालांकि ऐसा होगा इसकी संभावना बहुत ही कम है, लेकिन दिलचस्पी इस पर लगातार सब की बनी हुई है.अगर शिवसेना खुद का मुख्यमंत्री बनाने पर अड़ी रही और भाजपा नहीं मानी तो पूरे चांस हैं कि,कांग्रेस बाहर से समर्थन देकर महाराष्ट्र के अंदर भाजपा के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के अरमानों पर पानी फेर दे.

बीते दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव और देश के अंदर अलग-अलग राज्यों के उपचुनाव पर गौर किया जाए तो कर्णभेदी नजर आ रहा अति उग्र राष्ट्रवाद धराशाई होता नजर आया है.

धारा 370,पाकिस्तान,आतंकवाद पर सवार होकर भाजपा के तमाम नेताओं ने जनता के जरूरी मुद्दों को दबाते हुए चुनाव प्रचार किया था, जिसको जनता ने बड़े स्तर पर नकारने का काम किया है. जनता धीरे-धीरे भाजपा के मीडिया मैनेजमेंट का खेल समझ रही है,जनता को समझ में आ रहा है कि भाजपा के बड़े-बड़े नेता, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व जनता के जरूरी मुद्दों से भाग रहे है और जनता को अति राष्ट्रवाद, हिंदू-मुसलमान, मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दों में उलझा कर जनता का वोट लेने की कोशिश कर रहे है. जनता अब भाजपा की हरकतों को भांपने लगी है, लेकिन इसके अलावा भी जनता को कुछ चीजों पर गौर करना होगा.

जनता को गौर करना होगा कि जो जनता विपक्ष के साथ है, वह एकजुट नहीं है. अलग-अलग पार्टियों में बटी हुई है. जनता का वोट बिखर जा रहा है, जो जनता कांग्रेस के साथ नहीं है, वह दूसरी पार्टियों के साथ है, इसका मतलब वह कांग्रेस के साथ भी नहीं है और भाजपा के साथ भी नहीं है. लेकिन अगर कांग्रेस के साथ नहीं है तो वह दूसरी पार्टियों के साथ है .उस वक्त अगर जनता दूसरी पार्टी के नेताओं को उम्मीदवारों को अपना बहुमूल्य वोट दे रही है, तो उस समय जनता को सोचना होगा कि जनता भाजपा के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अपना वोट दे रही है, लेकिन जिस पार्टी को, जिस नेता को जनता अपना वोट दे रही है, कहीं वह नेता और उसकी पार्टी चुनाव के बाद भाजपा को समर्थन तो नहीं दे देंगे? हरियाणा में ऐसा ही कुछ होता हुआ नजर आ रहा है.

अगर जनता भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ किसी दूसरी पार्टी को वोट दे रही है और चुनाव के बाद वह पार्टी भाजपा को समर्थन दे दे रही है, भाजपा की सरकार में शामिल हो जा रही है तो यह जनता के अरमानों पर करारी चोट है, जनता को इस मुद्दे पर भी सोचना होगा, क्योंकि हरियाणा में संभावना यही बन रही है कि जेजेपी भाजपा को समर्थन देकर सरकार बनवा रही है.

जनता को मौजूदा दौर में सोच समझकर फैसले लेने की जरूरत है,जनता को सोचने की जरूरत है कि जनता का वोट कहीं खराब तो नहीं हो रहा है, जनता को उसका समर्थन करने की जरूरत है जो भाजपा के खिलाफ हार के बाद भी रहेगा.

चुनाव हारने के बाद अधिकतर लोग ईवीएम को दोष देना शुरू कर देते हैं, लेकिन ईवीएम में गड़बड़ी जैसी कोई चीज है नहीं, क्योंकि जनता अपना वोट अलग-अलग बांट रही है, कहीं निर्दलीय उम्मीदवार को अपना समर्थन दे रही है, कहीं कांग्रेस को समर्थन दे रही है, कहीं दूसरी पार्टियों को अपना समर्थन दे रही है. एक ही सीट पर कई उम्मीदवार खड़े हो रहे हैं, जिस राज्य में जितनी सीटें हैं उससे 10 गुना 20 गुना ज्यादा उम्मीदवार खड़े हो रहे हैं और हर एक उम्मीदवार को कुछ ना कुछ वोट जरूर मिल रहा है और यही वोट खराब हो रहा है और इसी कारण भाजपा जीत रही है, क्योंकि भाजपा का वोट बैंक एकजुट है भाजपा के साथ खड़ा हुआ.

जनता को और विपक्षी पार्टियों को ईवीएम का रोना छोड़ कर एकजुट होना होगा अगर भाजपा को देश के अंदर सत्ता से बाहर करना है तो.

जनता को समझना होगा कि,वह जिसे वोट दे रही है वह व्यक्ति जनता के बारे में सोच भी रहा है या सिर्फ अपनी पार्टी और अपने बारे में सोच रहा है ? क्योंकि जैसी खबरें आ रही हैं उससे यह पता चल रहा है कि जेजेपी और बीजेपी में डील हुई है दो कैबिनेट मंत्री और एक राज्य मंत्री पद की और इसके अलावा भी कुछ ना कुछ अंदरूनी लेनदेन और डील जरूर हुई होगी. तो क्या जिस जनता ने जेजेपी को वोट दिया होगा, जेजीपी ने उस जनता से भाजपा को समर्थन करने से पहले पूछा ? जनता ने जेजेपी का समर्थन किया जहां जेजीपी के उम्मीदवार जीते हैं, लेकिन भाजपा को समर्थन जेजीपी द्वारा मिलने के बाद जेजीपी को समर्थन करने वाली जनता को क्या हासिल हुआ?

जो पार्टियां और नेता हार हो या जीत हो भाजपा के खिलाफ खड़े हैं उन नेताओं और पार्टियों को अब आपसी लड़ाई, आपसी खींचतान और खुद के वर्चस्व की लड़ाई को छोड़कर सड़क पर उतरना होगा, मैदान में उतरना होगा. जनता के बीच लगातार रहना होगा, जनता की समस्याओं को लेकर लगातार सड़कों पर संघर्ष करना होगा.

घर पर बैठने से बार बार सत्ता हासिल नहीं होगी, बार-बार जनता का समर्थन हासिल नहीं होगा. महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों ही जगह कांग्रेस के लोकल नेता नदारद नजर आए, प्रदेश स्तर के कुछ बड़े नेता जरूर जनता के बीच पिछले कुछ समय से चुनाव प्रचार के दौरान नजर आए, लेकिन अब इस से काम नहीं चलने वाला. अगर सत्ता हासिल करनी है और भाजपा को राज्यों की सत्ता से और केंद्र की सत्ता से बेदखल करना है तो लगातार सड़कों पर उतर कर जनता के साथ संघर्ष करना होगा.

जनता ने भाजपा को हराने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है, लेकिन कोशिश जनता की तरफ से भी गलत दिशा में हुई है, जनता ने खुद का वोट थोड़ा बांट दिया और जिस पर भरोसा किया वह शायद अब भाजपा का समर्थन कर देंगे. जनता ने अपनी तरफ से जो कोशिशें की है उसका सम्मान करते हुए अब देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को और कांग्रेस के तमाम बड़े छोटे नेताओं को लगातार जनता के बीच रहना होगा अगर जनता का पूरा समर्थन हासिल करना है तो,

यह भी पढ़े : नतीजों के बाद सरकार किसी की भी बने. जनता ने जहरीले राष्ट्रवाद को नकारना शुरू कर दिया है

Thought of Nation राष्ट्र के विचार
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