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BJP के लिए यूपी के पश्चिम से आ रही खबरें बेचैन करने वाली है

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आगमी विधानसभा चुनावों (Assembly elections) में एक बार फिर से यूपी विजय का सपना संजोए BJP के लिए सूबे के पश्चिम से आ रही खबरें बेचैन करने वाली है. हाल ही में एक समाचार चैनल के एक सर्वे में यूपी में फिर से भाजपा सरकार बनने की संभावनाएं जतायी गयी हैं. विपक्ष में बिखराव, जड़ता और अपने कोर पिछड़े वोटों को साधने की फिर से शुरु की गयी कवायद के साथ पिछले विजय के नायक केशव प्रसाद मौर्य को दी जा रही तरजीह भाजपा को मुतमईन तो करती है पर पूरी तरह से नहीं.
देश में चल रहे किसान आंदोलन का फोकस अब उत्तर प्रदेश होने लगा है. विधानसभा चुनावों के मद्देनजर अपने खिलाफ किसानों की हो रही जुटान भाजपा को चिंता में डालती है. खासकर तब जब कि किसान संगठनों ने खुले आम भाजपा सरकार को वोट की चोट देने का एलान भी कर दिया है. विधानसभा चुनाव के ठीक पहले सरकार के खिलाफ किसानों की भारी जुटान ने BJP की पेशानी पर बल ला दिया है. भीड़ से उत्साहित किसान संगठन अब पंचायतों का आयोजन यूपी के अन्य हिस्सों में करने के एलान के साथ प्रधानमंत्री के चुनाव क्षेत्र वाराणसी भी पहुंचने की हुंकार भरी है. किसानों के मंच से आगामी 27 सिंतबर के भारत बंद का एलान किया गया था.
गन्ने की कीमत न बढ़ाने पर उत्तर प्रदेश सरकार (Government of Uttar Pradesh) को घेरते हुए राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने कहा है कि, चुनाव घोषणापत्र में तो 450 रुपये कुंतल का वादा था पर हुआ कुछ भी नहीं. राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने कहा कि इससे पहले की सरकारों ने क्रमश 8 रुपये और 50 रुपये कीमत बढ़ायी पर क्या वर्तमान सरकार उनसे भी कमजोर है. उन्होंने कहा कि किसानों का 12000 करोड़ रुपये गन्ना मूल्य बकाया है पर मांगने वालों को देश विरोधी करार दिया जाता है. किसान यूनियन नेता ने कहा कि हमारी लड़ाई तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ है और हमें न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी चाहिए.
मौद्रीकीकरण नीति पर भी किसान हमला बोल रहे हैं
केंद्र सरकार की बहुप्रचारित मौद्रीकीकरण नीति पर भी किसान हमला बोल रहे हैं और संकेत दे रहे हैं कि आने वाले चुनावों में यह बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है. सपा, कांग्रेस बसपा भी इस योजना के विरोध में खासे मुखर हैं. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी कमोबेश रोज इस मुद्दे पर कुछ न कुछ बोल रहे हैं. किसान पंचायत में निजीकरण पर जोरदार हमला बोलते कहा गया कि भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र में कहीं नहीं था कि पूरा देश बेंच देंगे पर जनता को धोखा देते हुए रेल, बिजली, सड़क सहित सारी सरकारी संपत्ति बेंचने जा रहे हैं.
किसान नेताओं का कहना था कि बंदरगाह को निजी कंपनी को बेंच दिया गया जबकि भारतीय खाद्य निगम के गोदाम भी अदाणी के हवाले कर दिए गए हैं. सरकार ने कर्मचारियों की पेंशन बंद कर दी जबकि विधायकों व सांसदों की पेंशन जारी है. टिकैत ने कहा कि देश का संविधान खतरे में है जिसे हर हाल में बचाना है. उन्होंने कहा कि आंदोलन कर रहे 650 किसान शहीद हो गए पर प्रधानमंत्री ने एक मिनट का मौन भी नहीं रखा.
जिस तरह से किसानों के मंच से हर हर महादेव व अल्लाहो अकबर के नारे लगे वो पश्चिम में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को कमजोर करती है. बीते कई चुनावों से पश्चिम उत्तर प्रदेश में चुनावों में यह देखा गया है मतदान धार्मिक लाइन पर हुआ और भाजपा को बड़ा फायदा मिला. यहां तक बीते लोकसभा चुनावों में सपा-बसपा का गठबंधन भी पश्चिम से भाजपा को उखाड़ने में नाकाम रहा. किसान नेताओं की आगे की योजना आंदोलन के पूरे प्रदेश में ले जाने की है.
BJP की एक और बड़ी चिंता किसान आंदोलन को लेकर उनके ही अपने दल में एका का न दिखना भी बन रही है. किसानों का यह रोष पश्चिम से निकल पूरब और बुंदेलखंड में कितना कारगर हो सकेगा, ये तो समय बताएगा. साथ ही क्या इस आंदोलन के चलते BJP की पश्चिम में मजबूत जमीन कुछ कमजोर होगी ये भी जानना बाकी है. पर इतना जरुर है कि आने वाले दिनों में पार्टी इसकी काट जरुर तलाशेगी और किसानों के बीच अच्छी छवि रखने वाले नेताओं को आगे करने के साथ ही कुछ और भी लुभावनी योजनाओं के साथ मैदान में दिखाई देगी.
दरअसल विधान सभा चुनावों में चंद महीने बाकी हैं, ऐसे में मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) में हुई किसान महा पंचायत में उमड़ी भीड़ ने यूपी के चुनावी माहौल की गर्मी और बढ़ा दी है. कयास लगाया जा रहा है कि इसमें करीब 5 लाख लोग जुटे थे. पंचायत के मंच से भले ही सियासी दलों को दूर रखा गया मगर इस पंचायत के सियासत पर पड़ने वाले असर से किसी को इनकार नहीं होगा.
इस बार मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) की आंच उलटी दिशा में है और सियासत के जानकार इसका चुनावी असर भापने में लगे हुए हैं महापंचायत को नजदीक से देखने वाले तटस्थ समीक्षकों का कहना है कि महापंचायत को ले कर किसानों में जबरदस्त उत्साह है, मगर जो बात सबसे ज्यादा चौंका रही है वो ये, कि दो दिनों से इस इलाके का कोई भाजपा नेता बाहर नहीं दिख रहा और भाजपा का झण्डा लगी हुई गाड़ियां सड़क से गायब हो गई हैं.
इस बात को गहराई से समझना जरूरी है. आंदोलनकारी किसानों की सीधी लड़ाई केंद्र की भाजपा सरकार से है. शुरुआती दौर में ये लड़ाई वहीं तक सिमटी दिख रही थी लेकिन भाजपा नेताओं द्वारा पहले किसानों को खालिस्तानी, नक्सली बताने और फिर नकली किसान कह देने के बाद यह गुस्सा सरकार के साथ साथ पार्टी के खिलाफ भी बढ़ गया. बाकी कसर यूपी के मुख्यमंत्री योगी की उस चुनौती के बाद और पूरी हो गई जिसमे उन्होंने किसानों को यूपी में घुसने पर कठोर अंजाम भुगतने की बात कह दी थी.
ऐसे बयानों के बाद सोशल मीडिया पर किसानों के खिलाफ कई मीम भी भाजपा समर्थकों द्वारा जारी किए गए. किसानों के निशाने की जड़ में यूपी सरकार भी आ गई. किसान संगठनों ने भाजपा को चुनावों में हराने का संकल्प व्यक्त किया है. किसानों का रुख देख कर यूपी की विपक्षी पार्टियां भी सक्रिय हो गई और फिर सभी पार्टियों ने किसानों के समर्थन के बयान देने शुरू कर दिए हैं.
पश्चिमी यूपी में राष्ट्रीय लोकदल का खोया वोट बैंक भी वापस आता दिखाई दे रहा है. बीते कुछ चनावों से रालोद का चुनावी गठबंधन समाजवादी पार्टी के साथ बना हुआ है और ऐसे माहौल में इस गठबंधन के लिए चुनावी फायदे से इनकार नहीं किया जा सकता. भारतीय किसान यूनियन का सबसे बड़ा आधार जाट बिरादरी में है. चौधरी अजीत सिंह के खत्म होते करिश्मे और 2013 के दंगों के बाद से ही ये वोट भाजपा की तरफ एक मुश्त तरीके से शिफ्ट हो गए थे. जिसका नतीजा ये हुआ कि इस इलाके की करीब 150 सीटों पर भाजपा का एकतरफा दबदबा हो गया था.
दंगों का एक असर ये भी हुआ था कि हिन्दू और मुस्लिम जाटों के बीच भी बड़ा विभाजन हो गया था. किसान आंदोलन ने विभाजन की इस खाई को पूरी तरह से पाट दिया है और इसी वजह से दंगों के बीच उभरे संजीव बालियान और संगीत सोम सरीखे नेता फिलहाल काफी कमजोर दिखाई देने लगे हैं. किसान आंदोलन की शुरुआत के वक्त से ही इसके नेताओं ने इस खाई को पाटने का काम शुरू कर दिया था. दोनों बिरादरी के नेता एक साथ गावों में घूमे और उन्होंने वापस एकजुटता बनाई.
यह दिलचस्प तथ्य है कि उत्तर प्रदेश के इसी पश्चिमी इलाके से चुनाव का श्री गणेश होता है जहां पहले चरण के मतदान के साथ ही वोटरों का रुख दिखाई देने लगता है. इसका असर कमोबेश मध्य उत्तर प्रदेश, वबुन्देलखण्ड से लेकर पूरब की सीटों तक जाता है. ऐसे में भाजपा के रणनीतिकारों को पश्चिमी यूपी में अपनी जमीन को वापस मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी. किसान महापंचायत की भीड़ और इसके फैसलों को देखते हुए इस बात के पूरे आसार हैं कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुजफ्फरनगर एक बार फिर अपना असर दिखाने वाला है.
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