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निडरता से लड़ने वाले Rahul Gandhi की छवि इस एक गलती से धूमिल हो सकती है

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कांग्रेस के अंदर जनाधार विहीन नेताओं और कॉरपोरेट के गठजोड़ ने हमेशा राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के नेतृत्व को नीचा दिखाने की या फिर उसे कमजोर करने की या फिर नकारने की हमेशा कोशिश की है. लेकिन राहुल गांधी कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई भी बखूबी लड़ते रहे हैं, बिना झुके बिना दबाव में आए.
इसके अलावा राहुल गांधी के व्यक्तित्व को, उनकी सोच और उनके नेतृत्व को बौना साबित करने की सबसे अधिक कोशिश अगर हुई है तो बीजेपी और कॉर्पोरेट के गठजोड़ के द्वारा हुई है. जिस वक्त अटल बिहारी वाजपेई के इंडिया शाइनिंग के नारे को ध्वस्त करते हुए, सोनिया गांधी ने अपनी मेहनत पर और अपनी रणनीति के दम पर यूपीए का निर्माण करके सरकार बनाई थी, उस समय भी और यूपीए-2 के समय भी है राहुल गांधी ने सत्ता में कोई पद नहीं लिया
राहुल गांधी उस समय भी जनता के मुद्दों पर अपनी भी सरकार के फैसलों को तौल रहे थे और अगर जनता के हितों को उन फैसलों से कहीं से भी कोई नुकसान होने की गुंजाइश थी, तो उन फैसलों का विरोध करते हुए दिखाई दे रहे थे. चाहे कांग्रेस की गठबंधन सरकार रही हो या फिर बीजेपी की सरकार राहुल गांधी ने जनता के मुद्दों को उठाने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी है.
बीजेपी और आरएसएस ने राहुल गांधी 9Rahul Gandhi) की छवि जनता के सामने धूमिल करने में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी. राहुल गांधी को जनता सीरियसली ना लें इसके लिए बीजेपी और आरएसएस ने कॉर्पोरेट की मिलीभगत से पानी की तरह पैसा बहाते हुए राहुल गांधी को बदनाम करने की कोशिश की, अपनी आईटी सेल के द्वारा भी और गोदी मीडिया के द्वारा भी. लेकिन राहुल गांधी टिके रहे डटे रहे, बिना सत्ता के इशारे पर काम कर रही एजेंसियों से डरे, वह लगातार जनता की आवाज बनते रहे.
2019 का लोकसभा चुनाव जब राहुल गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस पार्टी हारी, उस समय राहुल गांधी ने अपनी खुद की जिम्मेदारी तय करते हुए और हार का ठीकरा खुद पर फोड़ते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. उस समय राहुल गांधी ने पार्टी के भीतर की कई कमियों को उजागर किया था. नेताओं की सत्ता लोलुपता और कुर्सी की चाहत से राहुल गांधी नाराज नजर आए थे. 2019 के बाद कांग्रेस के अंदर से कई तथाकथित बड़े चेहरे, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल थे, बीजेपी में चले गए. लेकिन राहुल गांधी को कहीं कोई फर्क नहीं पड़ा. इनके दबाव और इनकी मांगों के आगे राहुल गांधी कहीं भी नहीं झुके.
पिछले दिनों G-23 के नेताओं ने कांग्रेस के अंदर ही राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के नेतृत्व को चुनौती देने की कोशिश की थी. यह वह नेता थे जिनका खुद का कोई जनाधार नहीं, जिन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं की. लेकिन यह राहुल गांधी के नेतृत्व को सिर्फ इसलिए नकारने की कोशिश करते रहे, क्योंकि राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के अंदर उन लोगों को मौका देने की कोशिश कर रहे थे और कर रहे हैं, जो लोग जनता से जुड़े हुए हैं जो लोग संघर्ष करके आगे बढ़े हुए हैं.
यह गलती भारी पड़ सकती है
लगातार चुनावी हार के बाद भी भारतीय राजनीति में राहुल गांधी का एक वजूद है, अब उस पर खतरा मंडरा सकता है. मीडिया के माध्यम से बीजेपी के बड़े-बड़े नेता और खुद प्रधानमंत्री मोदी राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता को लगातार नकारने की कोशिश करते रहते हैं. लेकिन राहुल गांधी का एक बयान पूरे मोदी मंत्रिमंडल को प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पर मजबूर कर देता है, सफाई देने पर मजबूर कर देता है और उसके साथ-साथ कहा जाता है कि राहुल गांधी को कोई सीरियसली नहीं लेता.
छत्तीसगढ़ कांग्रेस को लेकर जो कुछ अफवाहों के माध्यम से या फिर उसमे कहीं कोई सच्चाई भी हो, उस माध्यम से भी खबरें आ रही हैं, वह कहीं से भी कांग्रेस के लिए और राहुल गांधी की खुद की छवि के लिए ठीक नहीं है. कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने का दबाव लगातार कांग्रेस के नेतृत्व पर बनाया जा रहा है. यह भी कहा जा रहा है कि चुनाव से पहले यह वायदा हुआ था कि ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री का फार्मूला छत्तीसगढ़ में लागू होगा.
तमाम जो खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक छत्तीसगढ़ के कई विधायक दिल्ली पहुंच चुके हैं. हालांकि यह भी खबरें आ रही हैं कि सभी विधायक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में काम करके खुश हैं. लेकिन इसके साथ-साथ ही यह भी खबरें आ रही हैं कि, जिस दूसरे नेता को मुख्यमंत्री बनाने की बात चल रही है वह टीएस बाबा भी ढाई साल के मुख्यमंत्री के फार्मूले की याद दिला रहे हैं. उन्होंने एनडीटीवी को एक इंटरव्यू दिया जिसमें उनसे पूछा गया कि क्या पूरे 5 साल भूपेश बघेल मुख्यमंत्री रहेंगे?
एनडीटीवी द्वारा पूछे गए इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह तो आलाकमान तय करता है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि मेरी 5 पीढ़ियां कांग्रेस के लिए समर्पित रही हैं और हम सब हमारे नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की विचारधारा के लिए और कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं. लेकिन उन्होंने जो कहा कि आगे भूपेश बघेल मुख्यमंत्री रहेंगे या नहीं रहेंगे यह तो आलाकमान तय करेगा. इससे कहीं ना कहीं पता चलता है कि उनके मन में कहीं कोई टिस जरूर है.
छत्तीसगढ़ की हकीकत
2014 से कांग्रेस को चाहे वह लोकसभा चुनाव रहे हो या फिर विधानसभा चुनाव, लगातार हार का सामना करना पड़ा है. हालांकि इसके बीच कांग्रेस ने कई विधानसभा चुनाव जीते भी हैं और कई जगह गठबंधन की सरकार भी बनाई है. लेकिन पार्टी के नेताओं की कुर्सी की चाहत ने कांग्रेस के हाथ से मध्य प्रदेश छीन लिया. पार्टी के अंदर कई नेता ऐसे हैं जो मेहनतकश लोगों को आगे नहीं आने देते राहुल गांधी ने जो इस्तीफा दिया था उसके पीछे यह भी एक बड़ा कारण था.
राजस्थान और पंजाब में भी कांग्रेस नेताओं की आपसी खींचतान को आधार बनाकर मीडिया ने कांग्रेस को काफी ज्यादा बदनाम किया था. छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है जिसने कांग्रेस को प्रचंड बहुमत दिया, जिसकी कल्पना भी कांग्रेस ने नहीं की होगी. बीजेपी को छत्तीसगढ़ में बड़ी शिकस्त का सामना करना पड़ा था कांग्रेस के सामने और एक स्थिर सरकार चलाने का मौका छत्तीसगढ़ की जनता ने कांग्रेस को दिया था और स्थिर सरकार चलाने में अभी तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल काफी हद तक कामयाब भी रहे हैं.
राजनीतिक हलकों से जो खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक कांग्रेस के अंदर तथाकथित वर्चस्ववादी और कॉर्पोरेट का गठजोड़ छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री का बदलाव करना चाहता है और इसके लिए ही यह सारा षड्यंत्र रचा गया है. कहा यह भी जा रहा है कि देश का एक बड़ा उद्योगपति घराना भूपेश बघेल से खुश नहीं है. इसलिए भी रजवाड़े से संबंध रखने वाले टीएस बाबा को मुख्यमंत्री कांग्रेस बना दे, इसके लिए दबाव बनाने की कोशिश हो रही है.
अगर राहुल गांधी ऐसे किसी भी दबाव के आगे झुक कर छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन होने देते हैं या फिर सोनिया गांधी ऐसी किसी भी कांग्रेस के अंदर वर्चस्ववादी लॉबी के बहकावे में आकर छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन को हरी झंडी देती हैं, तो इससे राहुल गांधी की उस छवि को बड़ा झटका लगेगा और कहीं ना कहीं वह छवि एक झटके में जमीनोंजद हो जाएगी जो छवि राहुल गांधी ने बीजेपी आरएसएस और कारपोरेट के पैसों के आगे ना झुक कर बनाई है.
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