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गांवों के इन मुद्दों पर उलझी रही सरकार, अब तस्वीर बदलने की दरकार

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सीकर. प्रदेश की राजधानी जयपुर की सेटेलाइट सिटी बन चुकी शिक्षानगरी विकास के बदलाव के दम पर पूरे देश में अपनी धाक मजबूत कर रही है। लेकिन गांव-ढाणियों में अभी विकास की रफ्तार बेहद धीमी है। गांव-ढाणियों के लोगों की पानी-बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार सहित आस भी पूरी नहीं हो पा रही है। जिले की सबसे बड़ी पंचायत जिला परिषद व पंचायत समितियों के चुनाव का बिगुल बज चुका है। चार चरणों के चुनाव का आगाज सोमवार से होगा। आठ दिसम्बर को होने वाली मतगणना से तय होगा कि किसके सिर गांवों की सरकार का ताज होगा। लेकिन गांवों की सरकार से जिलेवासियों की उम्मीदें अपार है। कोरोनाकाल के बीच शपथ लेने वाले नई गांवों की सरकार की चुनौती भी कम नहीं रहेगी। पत्रिका टीम ने जिले के सभी पंचायत समिति व जिला परिषद सीटों के लोगों से बातचीत की तो यह मुद्दे सामने आए। पत्रिका टीम की विशेष रिपोर्ट।
गांवों की सरकार की प्रमुख चुनौती:
1. पेयजल: कुम्भाराम लिफ्ट पेयजल योजना को नहीं मिल रही मंजूरीगांवों की सरकार की अभी भी सबसे बड़ी चुनौती पेयजल है। 20 वर्षो से कुम्भाराम लिफ्ट पेयजल योजना को लेकर जनप्रतिनिधियों की ओर से सपने दिखाए जा रहे हैं। पहले भाजपा पांच साल तक इस मुद्दे पर सियासत करती रही। अब कांग्रेस की ओर से इस योजना को दो से तीन फेज में कर स्वीकृति के दावे किए जा रहे हैं। इधर केन्द्र सरकार ने हर घर पानी योजना के तहत सीकर जिले को बजट देने की घोषणा जरूर की है, लेकिन राहत अभी काफी दूर नजर आ रही है। जिले के श्रीमाधोपुर, खंडेला, नीमकाथाना, दांतारामगढ़ इलाके के सैकड़ों परिवार अभी भी टैंकर सप्लाई के भरोसे है।
2. ढाणियों में अधेरा, कृषि कनेक्शन उलझे:गांव-ढाणियों में उजाले की उम्मीद पूरी तरह अधूरी है। कृषि कनेक्शन वर्ष प्रमाण पत्रों के फेर में उलझ गए है। जबकि कई ढाणियों में सामूहिक बिजली कनेक्शन योजना का इंतजार है। पिछली भाजपा सरकार के समय पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत कनेक्शन शुरू हुए थे, लेकिन अभी भी हजारों परिवारों के कनेक्शन उलझे हुए है।
3. डे्रनेज व्यवस्था हवा-हवाई:बारिश के समय में गांवों की सरकार की सबसे बड़ी चुनौती डे्रनेज व्यवस्था की है। पानी निकासी के लिए कोई विशेष योजना गांवों की सरकार के पास नहीं है। जैसे बजट मिलता है वैसे कार्य स्वीकृत कर चहेतों को फायदा पहुंचा दिया जाता है। पिछली जिला परिषद आठ बैठकों में सबसे ज्यादा मुद्दे पानी निकासी की समस्या के गूंजे।
4. स्वास्थ्य व शिक्षा की कमजोर नींव:ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा को और हाईटेक करने की आवश्यकता है। जिले के कई क्षेत्रों में अभी भी चिकित्सक और नर्सिंग स्टाफ की कमी है। इस कारण लोगों को मजबूरी में निजी अस्पतालों में उपचार के लिए जाना पड़ रहा है। सरकारी अस्पताल में गायनिक चिकित्सक नहीं है। जिला परिषदों की बैठक में चिकित्सा व्यवस्था को लेकर खूब सवाल भी उठे। इसके अलावा पिछली सरकार के समय बंद हुई जिले के 45 से अधिक सरकारी स्कूलों को फिर से शुरू करने की आवश्यकता है, जिससे यहां के विद्यार्थियों का शिक्षा का सपना पूरा हो सका।
5. सुनियोजित विकास:
पिछले दस सालों से गांवों के मास्टर प्लान को लेकर गांवों की सरकार की ओर से दावे किए जा रहे हैं। लेकिन 90 फीसदी ग्राम पंचायतों के मास्टर प्लान नहीं बने है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में सुनियोजित विकास नहीं हो पा रहा है। ग्रामीणों की ओर से कई बार मास्टर प्लान की मांग भी की जा चुकी है। पिछली सरकार के समय सभी ग्राम पंचायतों को बजट भी उपलब्ध कराया गया था।
6. स्वरोजगार की राह:
कोरोना की वजह से सैकड़ों प्रवासी घरों को लौट चुके हैं। ऐसे में गांवों की सरकार की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। मनरेगा के अलावा स्थानीय प्रशासन की मदद से गांवों की सरकार को स्वरोजगार मुहैया कराने के लिए नई राहें तलाशनी होगी। सीकर जिला जयपुर के काफी नजदीक है, ऐसे में
7. ग्राम पंचायतों की निजी आय:
जिले की 98 फीसदी ग्राम पंचायत अभी भी सरकारी अनुदान पर विकास के लिए निर्भर है। ग्राम पंचायतों को सरकार ने निजी आय बढ़ाने के लिए पांच प्रमुख शक्ति दी रखी है। इसके तहत वह मोबाइल टावर, स्कूल-कॉलेज व मैरिज गार्डन सहित अन्य से निर्धारित शुल्क वसूल सकती है। ग्राम पंचायतों के पास निजी आय से राशि आए तो ग्राम पंचायतों की विकास राह रफ्तार पकड़ सकती है।
8. रसीदपुरा प्याज मंडी:रसदीपुरा प्याज मंडी पिछले ढ़ाई साल से उद्घाटन के फेर में उलझी हुई है। उद्घाटन की वजह से खासकर धोद इलाके के किसानों को काफी परेशानी हो रही है। शेखावाटी जिला प्याज उत्पादन के मामले में काफी आगे है। लेकिन गांवों की सरकार की ओर से स्टोरेज बनाने की कई बार घोषणा हुई, लेकिन अभी योजना धरातल पर नहीं आ सकी है।
9. यूथ के लिए खेल मैदान:
पिछली कांग्रेस सरकार के समय युवाओं को खेलों से जोडऩे के लिए पाईका योजना के तहत खेल मैदान बनाए गए थे। लेकिन इन मैदानों की रख-रखाव नहीं होने की वजह से ज्यादातर ग्राम पंचायत कंटीली झांडियों में तब्दील हो गए। कई मिनी खेल स्टेडियमों पर लापरवाही का ताला अब तक लटका हुआ है। ऐसे में गांवों की सरकार के सामने युवाओं को खेलों से जोडऩे की दिशा में नई पहल करनी होगी।
10. महिला शक्ति को मिले हुनर:स्वयं सहायता समूहों के मामले में सीकर जिला सबसे आगे है। ऐसे में गांव-ढ़ाणियों की महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने के लिए हुनर से जोडऩा होगा। जिले की दो जिला प्रमुख पहले इस तरह दिशा में पहल कर चुकी है, जो पूरे प्रदेश में एक मिसाल बनी थी। इस तरह की नई पहल सीकर जिले को दुबारा से शुरू करने की आवश्यकता है।
 
हमारी सबसे बड़ी चुनौती:
1. कोरोनाकाल की वजह से बजट में कटौती:कोरोनाकाल की वजह से विधायक व सांसदों के बजट में कटौती हो गई है। ऐसे में गांवों की सरकार को बजट को बेहतर तरीक से खर्च करने के साथ निजी आय बढ़ानी होगी। नई गांवों की सरकार की सबसे बड़ी चुनौती यही रहेगी।
2. नई पंचायतों को धरातल पर लाना:
जिले में नई ग्राम पंचायत व पंचायत समितियां भी बनी है। ऐसे में इनको संसाधन उपलब्ध कराना गांवों की सरकार की बड़ी चुनौती रहेगी। इनके भवनों के लिए 100 करोड़ से ज्यादा के बजट की आवश्यकता है।
हमारा मजबूत पक्ष:1. केन्द्र व राज्य में पूरी भागीदारी
प्रदेश की कांग्रेस सरकार में सीकर जिले का कद काफी मजबूत है। जिले के सात विधायक कांग्रेस के है एवं एक निर्दलीय विधायक कांग्रेस को समर्थन दे चुके हैं। वहीं संसदीय सीट पर भाजपा का कब्जा है। ऐसे में गांवों की सरकार को दोनों के तालमेल के जरिए आमजन के विकास के सपनों को पंख लगा सकती है।
2. शिक्षा में आगे, इसलिए रैकिंग अच्छी:
प्रदेश के कई जिलों में गांवों की सरकार को केन्द्र व राज्य सरकार की योजनाओं में लक्ष्यों को हासिल करने में काफी दिक्कत रहती है। लेकिन सीकर जिले में शिक्षा का ग्राफ अच्छा होने की वजह से स्वत: ही योजनाओं के लक्ष्य पूरे हो जाते हैं। इसलिए रैकिंग में सीकर जिला वर्षो से टॉप पर है।

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