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देशभर में प्रसिद्ध है लक्ष्मणगढ़ की ‘घूघरी’ होली

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सीकर/ लक्ष्मणगढ़. पूरे देश में मस्ती और उल्लास के साथ मनाए जाने वाले होली पर्व के शेखावाटी अंचल में विशेष स्वरुप व महत्व से हर कोई वाकिफ हैं। देर रात तक होने वालेे गीन्दड़ व चंग नृत्यों की धूम के साथ-साथ अनोखे अन्दाज में एक-दूसरे से मजाक करने के अल्हड़ अन्दाज की कल्पनाऐें ही मन को गुदगुदाने के लिए पर्याप्त हैं। लक्ष्मणगढ़ कस्बे के गीन्दड़ व चंग नृत्यों की विशिष्ट शैली व अनूठे अन्दाज को आज भी लोग मानते हैं। इन सबके अतिरिक्त होली पर्व पर लक्ष्मणगढ़ कस्बे में निभाई जाने वाली एक परम्परा ऐसी हैं जो इसे शेखावाटी के अन्य क्षेत्रों से अलग बनाती व रोचकता पैदा करती हैं। जिसका नाम है- घूघरी।
क्या हैं घूघरीगीन्दड़ नृत्य के प्रसिद्ध कलाकार विजय चक्कीवाला बताते हैं कि करीब आठ दशकों से चली आ रही घूघरी की परम्परा के अंतर्गत होली के दिन कस्बे में सदाबहार मौहल्ले में चौकान स्थित गीन्दड़ स्थल से चंग व गीन्दड़ की चलती-फिरती टोलियां (मोबाईल टीम) नाचते-गाते हुए पूरे कस्बे में में घूमती हैं तथा कस्बे के प्रमुख सार्वजनिक चौराहों पर गीन्दड़ नृत्य की प्रस्तुति देती हैं। चौकान स्थित गीन्दड़ स्थल पर ‘ठण्डाईÓ का प्रसाद लेकर कलाकार गीन्दड़ नृत्य प्रारम्भ करते हैं तथा पूरे कस्बे में घूमते हैं। इस दौरान एक गीन्दड़ स्थल से दूसरे गीन्दड़ स्थल तक जाने के बीच रास्ते में चंगों पर धमाल गाते हुए नृत्य भी प्रस्तुत किए जाते हैं। पहले जहां इस गीन्दड़ में भाग लेने वाले कलाकार क्रमश: पुरुष व नारी का स्वांग रचकर ही भाग लेते थे लेकिन अब इनके अलावा शिव-पार्वती, राम-लक्ष्मण, गोटा-किनारी, राक्षस, बन्दर जैसे स्वांग भी धरे जाने लगे हैं।
कैसे हुई शुरुआतसामाजिक कार्यकर्ता बनवारीलाल चौमाल बताते हैं कि वर्षों पहले से चली आ रही गीन्दड़ परम्परा के दौरान सदाबहार मौहल्ले के कलाकारों तथा लाल कुआं क्षेत्र के कलाकारों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पद्र्धाऐं चलती रहती थी। इन प्रतिस्पद्र्धाओं में मजाक के तौर पर शवयात्रा निकालना, बारात निकालना आदि भी शामिल था। करीब आठ दशकों पूर्व दोनों क्षेत्रों के कलाकारों तथा बुजुर्गोँ ने इस प्रथा को थोड़ा अलग व मनोरंजक रुप देने के लिए घूघरी की शुरुआत की। इसके तहत सदाबहार मौहल्ले का एक कलाकार बीन्द (दूल्हा) तथा लाल कुआं क्षेत्र का एक कलाकार बीन्दणी (दूल्हन) बनाया गया। दोनों के विवाह को होली की मस्ती तथा स्वांग के साथ पूरी परम्पराओं के साथ संपन्न करवाया गया। इसके अंतर्गत दूल्हे की बारात सदाबहार मौहल्ला स्थित गीन्दड़ स्थल से प्रारम्भ हुई तथा भूतों की हवेली, डीडवानियों की हवेली, पक्की प्याऊ, डाकणियों का मन्दिर, चौपड़ बाजार, गणेश मन्दिर होते हुए लाल कुआं चौक पहुंची। बारात में शामिल सभी लोग भी परम्परागत वेशभूषा में चंग की धुनों पर नाचते चल रहे थे। मार्ग में आने वाले सभी उक्त चौराहों पर इस दौरान घूघरी बांटने के साथ-साथ गीन्दड़ नृत्य भी प्रस्तुत किए गए। अन्त में लाल कुआं चौक में वर-वधू के विवाह की परम्परा निभाने के बाद वहीं से दोनों के साथ पूरी की पूरी टोली खाटू की कुई, बजाज भवन, कबूतरियां कुआं, रामदेवजी का मन्दिर होते हुए बागळियों के पीपल तक पहुंची तथा बारात का विसर्जन हुआ। उसके बाद से प्रतिवर्ष इस परम्परा का निर्वहन किया जाने लगा। कालान्तर में विवाह के स्वांग को लोग भूल गए लेकिन घूघरी की परम्परा तब से अनवरत जारी हैं।

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