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महाराष्ट्र में ‘शह और मात’ का खेल जारी

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महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार ने एक वर्ष पूरा कर लिया लेकिन यहाँ ‘शह और मात’ का जैसा खेल देखने को मिल रहा है शायद ही देश के किसी अन्य प्रदेश में दिखाई दे. पहले दिन से ही भारतीय जनता पार्टी के नेता इस सरकार के गिरने की भविष्यवाणियाँ करते रहे हैं वहीं सत्ताधारी गठबंधन के दल भी देवेंद्र फडणवीस और उनकी सरकार में अहम मंत्रियों के भ्रष्टाचार उजागर करने में लगे हैं.
इस खेल में केंद्र सरकार की एजेंसियाँ जहाँ शिवसेना व सहयोगी दलों के नेताओं के ख़िलाफ़ शिकंजा कसती दिखती हैं. ऐसे में महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है, उसे राजनीति या कूटनीति तो नहीं कहा जा सकता? सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या के मामले और उसके बाद अर्णब गोस्वामी प्रकरण में जो कुछ हुआ वह सिर्फ़ राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियों के टकराव तक ही सीमित नहीं रहा. इन प्रकरणों में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका भी संदेह के दायरे में आयी.
इसी शृंखला में नया टकराव शुरू हुआ है शिवसेना विधायक प्रताप सरनाइक और कांग्रेस के नेता विश्वजीत कदम के ससुर अविनाश भोसले के रियल इस्टेट कारोबार पर केंद्रीय जाँच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय के छापों बाद. कंगना रनौत प्रकरण में सरनाइक ने आक्रामक भूमिका निभाई थी. अविनाश भोसले के सभी राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं से घनिष्ठ सम्बन्ध रहे हैं और उनको लेकर वह चर्चाओं और विवादों में भी रहे हैं.
ईडी के छापों के बाद महाराष्ट्र में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप गर्म ही थे कि राज्य में बीजेपी नेताओं, खासकर देवेंद्र फडणवीस के क़रीबी नेताओं के क़रीबी और पूर्व मंत्री गिरीश महाजन के क़रीबी नेताओं से जुड़ी क्रेडिट सोसायटी पर महाराष्ट्र पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने छापामारी की है. गिरीश महाजन वह नेता हैं जिनको लेकर पिछले विधान सभा चुनावों के दौरान कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के क़रीब तीन दर्जन विधायकों व सैकड़ों नेताओं को बीजेपी में प्रवेश दिलाने का श्रेय दिया जाता रहा है.
लेकिन हाल ही बीजेपी से राष्ट्रवादी कांग्रेस में गए राज्य के वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे शायद अब बीजेपी के लिए सिरदर्द साबित होने वाले हैं. महाजन के सहयोगियों की इस क्रेडिट संस्था पर छापे की कार्रवाई के पीछे उनकी ही शिकायत है. एकनाथ खडसे कहते हैं कि अभी इस मामले की जाँच ईओडब्ल्यू में चल रही है. एक बार यह प्रक्रिया हो जाए, फिर वह एक-दो दिन में सबूतों के साथ इस पूरे घोटाले का पर्दाफाश करेंगे जिसमें बीजेपी के सांसद व नेताओं के नाम सामने आएँगे.
खडसे का कहना है कि वह 2018 से इस मामले की जाँच के लिए 15 से 16 बार शिकायतें कर चुके हैं. उनकी बहू और बीजेपी सांसद रक्षा खडसे भी इस मामले की शिकायत दिल्ली तक कर चुकी हैं. लेकिन तत्कालीन बीजेपी सरकार ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की. बता दें कि 2014 से 2019 तक राज्य में बीजेपी की देवेंद्र फडणवीस की सरकार थी. खडसे ने कहा कि सोसायटी क़ानून 2002 के तहत बीएचआर मल्टीस्टेट क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी पर कार्रवाई का अधिकार केंद्र का है और राज्य के सहकारिता आयुक्त इस मामले में कार्रवाई नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने जाँच रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी थी. बावजूद इसके राज्य सरकार ने इस जाँच रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की.
इस प्रकरण में भाईचंद हीराचंद रायसोनी (बीएचआर) मल्टीस्टेट को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी संस्था में हुई कथित अनियमितताओं को लेकर गिरीश महाजन के क़रीबी व्यवसायी सुनील झंवर के जलगाँव स्थित ठिकानों पर छापेमारी की गई है. बीएचआर से संबंधित पाँच ठिकानों पर ईओडब्ल्यू की पुणे टीम के 135 अधिकारियों के दस्ते ने एकसाथ छापेमारी की. गिरीश महाजन के साथ परछाई की तरह घूमने वाले सुनील झंवर के फ़ॉर्म हाउस पर भी छापा मारा गया.
कहा जा रहा है कि डेढ़ हजार करोड़ रुपये के इस आर्थिक घोटाले में निवेशकों की रक़म वापस देने के नाम पर कर्जदारों की संपत्तियों को ओने-पौने दाम पर नेताओं और उनके क़रीबियों को बेच दिया गया. ये संपत्तियाँ कुछ चुनिंदा लोगों को ही बेची गईं. उन संपत्तियों को खरीदने में बीजेपी के क़रीबी सुनील झंवर का नाम सबसे आगे है. इन छापों के बाद पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस एक बार फिर उद्धव ठाकरे सरकार पर आक्रामक हुए. बीजेपी नेताओं ने एक बार फिर बयान दिए कि यह सरकार जल्द ही गिर जाएगी.
लेकिन इन सब बयानबाज़ी के अतिरिक्त एक अलग राय यह सामने आ रही है कि महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है वह राजनीतिक प्रतिस्पर्धा है या बदले की राजनीति. बीजेपी की केंद्र सरकार द्वारा विरोधी दलों की सरकारों को गिराने के खेल से भी इसको जोड़ा जा रहा है. लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसे क्या नाम दिया जाएगा? यह समय ही निर्धारित करेगा.
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