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500 साल पुरानी इस बावड़ी का डरावना सच, यहां हर सीढ़ी ले जाती है मौत के करीब !

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सचिन माथुर, सीकर.
सीकर से लेकर काबुल, कंधार, चीन व तिब्बत तक के व्यापारियों की 425 साल तक प्यास व थकान मिटा चुकी शहर की बंजारा बावड़ी ( banjara bawadi ) खुद सूखे हलक से मिटने के कगार पर है। बावड़ी का निर्माण करीब 500 साल ( 500 Year Old Banjara Bawadi Sikar ) पहले हुआ था। जो सीकर की स्थापना से भी करीब 150 साल पहले का समय है। लेकिन, शासन- प्रशासन की अनदेखी से अब यह ’अंत्येष्टि के समान’ की जगह बनकर रह गई है। हालात यह है कि बावड़ी की सीढियों पर अंत्येष्टि क्रिया की बिकती सामग्री और पसरे सन्नाटे से मारे डर के यहां आमजन की आवाजाही बंद सी हो गई है। ऐसे में पर्यटन की बेहतरीन संभावना वाली ऐतिहासिक धरोहर को प्रशासन की अनदेखी के चलते लापरवाही लीलती दिख रही है।
बंजारों ने बनवाई बावड़ीइतिहासकार महावीर पुरोहित बताते हैं कि 500 साल पहले यह क्षेत्र प्रमुख व्यापारिक मार्ग था। यहां से नमक तिब्बत, चीन सहित उतरी भारत और पश्चिम से काजू, बादाम, किसमिस, अखरोट व बादाम, चांदी, मेटल ऊंट व बेलों पर यहां लाए जाते थे। इन्हें लाने ले जाने का काम बंजारे करते थे। जिन्होंने विश्राम स्थल के रूप में यह बावड़ी बनवाई।
वर्षों तक बुझाई प्याससीकर से गुजरने वाले राहगिरों के अलावा बावड़ी ने सीकर वासियों की करीब 425 साल तक प्यास बुझाई। छह दशक पहले तक इसमें काफी पानी था। जिसमें तैरने के साथ लोग पानी का उपयोग घरों में भी करते थे। बावड़ी नजदीक एक कुए से सुरंग के जरिये जुड़ी हुई थी। वहीं, बरसात का साफ पानी भी अंडरग्राउंड नालों से इसमें पहुंचता था। नजदीक माधोनिवास बाग भी इसके पानी से गुलजार था।एक मात्र जगह जहां बिकता यह सामानबावड़ी अब अंत्येष्टि क्रिया का समान बिकने के लिए पहचानी जाती है। शहर में यह एकमात्र ऐसी जगह है, जहां यह समान बिकता है। बावड़ी की सीढियों पर अंत्येष्टि क्रिया का समान यूं आसानी से रखा मिलता है। दाना डालने पर कबूतरों की भरमार रहती है। जिनकी आवाज सुनसान माहौल में लोगों को ओर डराती है। सुरक्षा के लिहाज से प्रशासन ने बावड़ी को जाल से जरूर ढक दिया है। लेकिन, अब भी वह कचरा पात्र सा बना हुआ है।
इटली के दल ने कहा, सोने के पात्र को बनाया कचरा पात्रपूर्व कलक्टर अश्विनी भगत के समय इटली का एक दल पानी के परंपरागत स्त्रोत की जानकारी जुटाने सीकर आया था। दल ने तालाब के साथ बावड़ी को देखने पर कहा था कि पूर्वजों ने सोने का पात्र दिया था, लेकिन लोगों ने उसे कचरे का पात्र बना दिया गया है।
बावड़ी संवरे, तो आ सकते हैं सैलानीबावड़ी का आकर्षण अब भी बरकरार है। निर्माण के समय का बावडेश्वर महादेव मंदिर अब भी मौजूद है। पास ही तीन शिलालेख लिखी सैनिकों की तीन मूर्तियों के साथ दक्षिण मुखी माताजी का मंदिर है। नीचे तक पहुंचने के लिए 100 से ज्यादा लंबी- चौड़ी सीढियां हंै। एक दीवार पर पत्थर पर बावड़ी का नक्शा खुदा है। सीढिय़ों के दोनों ओर कमरे भी हैं। यदि शहर के बरसाती पानी को बावड़ी से जोडकऱ इसका पुनरुद्धार किया जाए, तो यह सैलानियों को आकर्षित करने का प्रमुख पर्यटन स्थल बन सकता है।
बावड़ी की तर्ज पर बना डीग महल 120 फीट से ज्यादा गहरी बावड़ी में करीब सात फीट चौड़े तीन विशालकाय दरवाजे हैं। जिनके ऊपर शानदार गुंबद है। इतिहासकार पुराहित बताते हैं कि भरतपुर के डीग महल में भी गुंबद की यही शैली है। ऐसे में माना जाता है कि चूंकि भरतपुर के राजा सूरजमल व सीकर के राव राजा शिवसिंह मित्र थे। लिहाजा डीग महल के गुंबद की प्रेरणा उन्हें यहीं से मिली होगी।

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