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मगध का सियासी किला बचाने की होगी तेजस्वी यादव के सामने चुनौती

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बिहार की सियासत में मगध का इलाका प्रदेश की सत्ता का भविष्य तय करता है. मगध का इलाका लालू प्रसाद यादव की राजनीति का मजबूत गढ़ माना जाता है. लेकिन नीतीश कुमार का सियासी प्रभाव बढ़ने के साथ ही यह जेडीयू-बीजेपी का दुर्ग बन गया.
नीतीश कुमार इस इलाके की धुरी माने जाते हैं और यही वजह है कि 2015 में आरजेडी यहां अपने पैर मजबूती से जमाने में कामयाब रही थी, लेकिन अब नीतीश और बीजेपी एक साथ हैं तो तेजस्वी यादव के लिए मगध का सियासी साम्राज्य बचाने की चुनौती है. मगध प्रमंडल के पांच जिलों गया, अरवल, जहानबाद, औरंगाबाद और नवादा में विधानसभा की कुल 26 सीटें आती है.
पिछले दो चुनाव से यह इलाका बिहार की सत्ता का फैसला करता आ रहा है. 2010 में बीजेपी-जेडीयू के नाम रहा तो 2015 इस इलाके में लालू यादव का जलवा लोगों के सिर चढ़कर बोला था. इसी का नतीजा था कि पिछले चुनाव में यहां महागठबंधन ने 20 सीटें अपने नाम की थीं और पूरे इलाके से एनडीए का सफाया हो गया था. 2015 के बिहार विधानसभा के चुनाव में मगध प्रमंडल की 26 सीटों में से 10 सीटें आरजेडी ने जीतकर अपना दबदबा कायम किया था.
इसके अलावा जेडीयू के खाते में 6 सीटें आई थीं और कांग्रेस को चार सीटें को मिली थीं. वहीं, एनडीए के खाते में छह सीटें आई थीं, जिनमें बीजेपी को 5 और जीतनराम मांझी की पार्टी को एक सीट मिली थी. 2015 में आरजेडी ने अरवल की दो सीटों में से एक, जहानाबाद की तीन सीटों में से दो, औरंगाबाद की छह सीटों में से एक, नवादा की पांच सीटों में से दो और गया की 10 सीटों में से चार सीटें जीती थीं.
इसके पांच साल पहले आरजेडी का अरवल, जहानाबद, औरंगाबाद और नवादा जिले में खाता तक नहीं खुल सका था. आरजेडी के साथ-साथ कांग्रेस की भी स्थिति 2010 के मुकाबले 2015 में बेहतर हुई थी. उसने 2015 में औरंगबाद में दो और गया व नवादा में एक-एक सीट जीती थी, जबकि इससे पहले मगध में उसका खाता नहीं खुला था. हालांकि, इस बार के विधानसभा चुनाव में बिहार के सियासी समीकरण बदल गए हैं.
जेडीयू एक बार फिर से अपने पुराने सहयोगी बीजेपी के साथ है, जिनके सहयोगी के तौर पर एलजेपी है और जीतन राम मांझी आने की कवायद में हैं. वहीं, आरजेडी कांग्रेस, उपेंद्र कुशवाहा और वामपंथी दलों के साथ मिलकर चुनावी किस्मत आजमा रही है. मगध के इलाके में आरजेडी के किले को बचाने की चुनौती तेजस्वी यादव के कंधों पर है, क्योंकि नीतीश कुमार ने 2010 में बीजेपी के साथ मिलकर इस इलाके की सभी सीटों को अपने नाम कर लिया था.
आरजेडी को महज एक सीट मिली थी और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल सका था. वहीं, जेडीयू को 16 सीटें मिली थीं और बीजेपी को 8 सीटें मिली थीं. इसी का नतीजा था कि राज्य बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की सरकार बनी थी, अब फिर से वही समीकरण सामने हैं, जिससे तेजस्वी यादव को मुकाबला करना है.

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