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युद्ध के अंदेशे और शांति की चाह के बीच झूलता – भारत का भविष्य

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किसी भी देश, समाज, संस्कृति का उत्थान, विकास, समृद्धि सिर्फ शांतिकाल में ही संभव है. लगातार युद्ध में रत, अशांति के माहौल में किसी भी युग, किसी भी काल, किसी भी नेतृत्व में तरक्की का कोई एक उदाहरण हो तो बताइये?
0 से शुरू करने वाले किसी राष्ट्र को बहुत सारी समस्याओं और संघर्षों से गुजरना पड़ता है. भारत भी कोई अपवाद नहीं रहा. भारत के संदर्भ में लगभग 200 वर्षों तक राज करने के दौरान गोरों ने ये बेहतर तरीके से जाना कि भारतीयों के पास दैवयोग से खनिज, वनोपज, जल से लेकर कृषि तक तकरीबन समस्त क्षेत्रों में स्वनिर्भर होकर तेजी से आगे बढ़ने की क्षमता है. पंरतु भारतीयों की सबसे बड़ी क्षमता का परिचय उन्हें विभिन्न रियासतों को एक करके एक राज्य बनाने और गांधी के आगमन के बाद मिला.
जब गांधी के नेतृत्व तमाम भारतवासी धर्म, जाति, संस्कृति क्षेत्र के बंधन तोड़कर भारत की स्वतंत्रता के लिए एक हो गए. ऐसे में अंग्रेज समझ गए थे कि वो बहुत समय तक भारत में राज नहीं कर पाएंगे, अत: भविष्य में भारत उनके समक्ष चुनौती बनकर न खड़ा हो सके, अत: उन्होंने भगतसिंह की शहादत के तुरंत बाद ही धर्म के नाम पर देश को तोड़ने और भविष्य में भी अशक्त बनाए रखने की चाल चली. साथ ही उन्होंने अपने लिए मुखबरी करने वाले सावरकर को (जो तब तक डॉ केशव बलिराम हेडगवार द्वारा हिंदुत्व उत्थान के लिए बनायी संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ चुका था) को भी एक मिशन दिया.
अपने राज्य को सुचारु रुप से चलाने के लिए अंग्रेजों ने भारत में बहुत सी कुरीतियों पर रोक लगाई थी, जैसे सतीप्रथा, बहुविवाह, जाति-पात. अंग्रेज समझते थे कि जाति संघर्ष भी भारत के लिए धर्म आधारित संघर्ष की तरह ही विनाशकारी हो सकता है. अत: उन्होंने सावरकर के जरिए स्वयंसेवक संघ की मूल भावना एवं लक्ष्य हिंदू उत्थान एवं सेवा को, ब्राह्मणवाद के प्रसार और फैलाव में परिवर्तित करा दिया.
इसके साथ ही उन्होंने मुस्लीम लीग का निर्माण भी कराया जो अंतत: देश के विभाजन का कारण बनी. मुस्लीम लीग से भी समय के साथ गांधी के प्रभाव से बचकर अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए स्वयंसेवक संघ की शाखा हिंदू महासभा जुड़ गई और दोनों ने मिलकर अंग्रेजों के नुमांइदगी के तौर पर सरकारें भी चलाईं. परंतु द्वितीय विश्वयुद्ध के समापन के समय तक ये स्पष्ट होने लगा था कि अब भारत में ब्रिटिश राज्य कुछ ही समय का मेहमान है. ऐसे में सबकी अपनी अपनी महत्वकांक्षाएं उफान पर आ गईं. जहां मुस्लीम लीग अलग इस्लामिक देश की मांग पर अड़ गई, वहीं स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा ने भी हिंदू राष्ट्र पर जोर दिया.
ऐसे में सिर्फ गांधी और कांग्रेस थे जो भारत की स्वतंत्रता चाहते थे. पर अफसोस गांधी हार गए और अंग्रेज अपनी चाल चलते हुए देश को बांटकर गए. मुस्लीम लीग के साथ कट्टर मुसलमान तो पाकिस्तान चले गए, परंतु कट्टर हिंदू स्वयंसेवक संघ के साथ भारत में ही बने रहे. जिन्होंने साजिश के तहत सबसे पहले महात्मा गांधी की हत्या की. लेकिन गांधी के उत्तराधिकारी बने जवाहरलाल नेहरु और उनके सेनापति सरदार पटेल ने संघियों की साजिशों को वहीं थाम लिया और विभाजन के दंश, विभाजन के दौरान हुए दंगों के घावों और गांधी की हत्या से उपजे रोष के बावजूद देश में शांति बनाये रखने में सफलता प्राप्त की.
उसी शांति की बदौलत सरदार पटेल को फ्रीहैण्ड देकर भारत को अंदरुनी रुप से मजबूत करने का जिम्मा मिला और नेहरु के जिम्मे आई भारत को विश्व बिरादरी में सम्मान के साथ खड़ा करने की जिम्मेदारी. सरदार पटेल अल्प समय में ही सद्गति को प्राप्त हो गए, लेकिन नेहरु ने हार नहीं मानी और भारत को नित नई ऊचांइयां प्रदान करने में लगे रहे. इतिहास गवाह है कि नेहरु के 15 वर्षों में भारत ने जितनी चौतरफा तरक्की की, उतनी कोई देश 200 वर्षों में भी अब तक नहीं कर सका.
1962 में भारत चीन युद्ध ने भारत की शांति भंग की और पराजय के सदमे में नेहरु ने प्राण त्याग दिये. उसके बाद 1965 में पाकिस्तान से युद्ध, 1967 में चीन से झड़प, 1971 में फिर पाकिस्तान से युद्ध ने भारत में शांति नहीं रहने दी. इस वजह से भारत अपेक्षित तरक्की नहीं कर सका. फिर भी लौह महिला इंदिरा गांधी जी के नेतृत्व में देश एकजुट रहा और अंदरुनी एकता व शांति के बल पर भारत विदेशी आक्रमणों का मुंहतोड़ जवाब देता रहा, इतना ही नहीं 1967 में चीन से 1962 का बदला लेते हुए स्वतंत्र राज्य सिक्किम पर चीन के दावों को दरकिनार करते हुए उसे भारतीय गणराज्य में मिला लिया गया. परंतु इन सभी युद्धों में सफलता के बावजूद भारत के विकास की रफ्तार थम सी गई थी. ऐसे में जरूरत के मुताबिक भारत ने परमाणु शक्ति हासिल करने की दिशा में प्रयत्न तेज किए और 1975 में सफलता भी हासिल कर ली.
1971 के बाद जब इंदिरा ने देश को फिर तरक्की की राह पर लगाया. जिसमें अंदरुनी रुप से कुछ छिटपुट अवरोध आते रहे परंतु देश के विकास की रफ्तार संतोषजनक बनी रही. इंदिरा के बाद राजीव और फिर नरसिम्हा राव की सरकार तक भारत की तरक्की ठीकठाक रही. उसके बाद स्पष्ट जनादेश के आभाव और फिर कारगिल युद्ध के कारण देश के विकास को फिर से ब्रेक लगे. लेकिन उसके बाद मनमोहन सिंह के कुशल नेतृत्व में भारत ने फिर से तरक्की के नए कीर्तिमान रचे, और पूरी दुनिया को अचंभित किया.
परंतु 2014 में नरेंद्र मोदी के आगमन के बाद से भारत के विकास को ग्रहण लग गया है. नरेंद्र मोदी के केंद्रीय राजनीति में आने के बाद से ही न तो देश के अंदर माहौल शांत है और ना ही सीमाओं पर. मॉबलिंचिंग और नफरत बढ़ाने वाले वक्तव्यों ने जहां एकतरफ देश में जातीय और धार्मिक संघर्षों में अभूतपूर्व वृद्धि की, वहीं दूसरी तरफ सरकार की गलत नीतियों के असंतोष स्वरुप नक्सली हमलों में भी अकल्पनीय तेजी आई. इसके अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर में भाजपा की गठबंधन सरकार होने के बाद भी वहां लगातार संघर्ष, दमन, पत्थरबाजी की स्थिति बनी रही. साथ ही अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर भी लगातार तनाव बना रहा.
पाकिस्तान के खिलाफ सरकार चाहे जितना उरी सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक का दम भरे, परंतु हकीकत यही है कि कारगिल युद्ध के बाद भारत-पाक सीमा पर 2014 तक के 15 वर्षों में शहीद जवानों से 7 गुना अधिक जवान मोदी सरकार के 6 वर्षों में शहीद हुए हैं. इसके अलावा बंग्लादेश से भी 3 झड़पें भारतीय सेना की हो चुकी हैं. जबकि चीन के राष्ट्रपति से 6 वर्षों में 18 मुलाकातों के बावजूद चीन हर गर्मियों में हमारी जमीन पर उतर कर हमें आंखें दिखाता रहा है. 2017 में डोकलाम पर 44 दिनों तक लंबा चला तनाव कायम रहने के बावजूद सरकार की लापरवाही से 15 जून 2020 को हमारे 20 सैनिक शहीद हो गए.
यूं तो युद्ध की स्थिति में भारत की पहले से बद् हालत और भी बद्तर हो जाएगी, परंतु जिस तरह से मोदी सरकार चीन से डर कर कार्यवाही कर रही है या कार्यवाही करने का दिखावा कर रही है, उससे अन्य दुश्मनों को भी हम न्यौता दे रहे हैं, कि आइये आप भी हम पर हमला कीजिए और जीत की खुशी मना लीजिए. नेपाल पुलिस ने तो 3 भारतीयों की हत्या भी कर दी और अब नेपाली सेना बॉर्डर पर तैनात है. निश्चित रुप से ये स्थिति मोदी सरकार की अदूरदर्शिता, लापारवाही, आत्ममुग्धता और विदेशनीति व कूटनीति की विफलता की वजह से निर्मित हुई है. ठीक वैसे ही जैसे मोदी सरकार की अकर्मण्यता, सनकीपन, गलत आर्थिक नीतियों और कुप्रबंधन ने देश की विकास दर, अर्थव्यवस्था और रुपया को चारों खाने चित्त कर दिया है.
अब वर्तमान परिस्थितियां मोदी सरकार और भारत दोनों के लिए बहुत ही दुविधापूर्ण और कठिनतम हैं. एकतरफ देश मंदी, बेरोजगारी, भुखमरी के कगार पर खड़ा कोरोना की मार से पीड़ित कराह रहा. दूसरी तरफ देश की सीमा पर शत्रु हमारे जमीन में घुस कर हमें आंख दिखा रहा. निसंदेह युद्ध हुआ तो आर्थिक स्थिति, विकास दर, रुपया और गिरेंगे. वहीं बेरोजगारी, गरीबी, मंहगाई तेजी से बढ़ेगी. लेकिन यदि हम युद्ध से बचने के लिए हथियार डाल देते हैं तो कभी भी सम्मान से सिर उठा कर चलना शायद भारत और भारतीयों के लिए संभव नहीं होगा.
( यह लेखक के अपने विचार है )
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