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राजस्थान में खेलों के साथ भी हो रहा खेल, चहेतों को फायदा, दूसरे आउट

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अजय शर्मा सीकर.प्रदेश में खिलाडिय़ों के सुनहरे भविष्य का दावा करने वाली सरकार खुद खेलों के साथ खेल कर रही है। प्रदेश में 15 वर्षों की योजनाओं की पड़ताल की गई तो सामने आया कि हर सरकार के राज में योजनाएं बदल जाती हैं। इसका खामियाजा प्रदेश के एक लाख से अधिक युवा खिलाडिय़ों को भुगतना पड़ रहा है। भाजपा राज में जहां पाइका योजना के जरिए मैदान व खेल प्रशिक्षक लगाने के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए। वहीं अब कांग्रेस सरकार की ओर से ग्रामीण ओलम्पिक के नाम पर लाखों रुपए खर्च करने की तैयारी कर ली है। ग्रामीण ओलम्पिक में कई ऐसे खेलों को शामिल कर लिया जिनमें खिलाडिय़ों को नौकरी ही नहीं मिल रही। खास बात यह है कि क्रिकेट को मान्यता नहीं होने के बाद भी क्रीड़ा परिषद के प्रमोट करने से सवाल खड़े हो रहे हैं।
प्रयोगशाला बन गए जिला खेलकूद प्रशिक्षण केन्द्रजिला खेलकूद प्रशिक्षण केन्द्र महज प्रयोगशाला बन कर रह गए हैं। भाजपा सरकार में पाइका (पंचायत खेल क्रीड़ा अभियान) तो कांग्रेस सरकार में राजस्थान गेम्स व राजस्थान ग्रामीण ओलम्पिक खेलों के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इन खेलों के प्रमाण पत्र खिलाडिय़ों के किसी काम के नहीं है। इस बार तो राजस्थान ग्रामीण ओलम्पिक खेलों में किसी प्रकार का प्रमाण पत्र भी नहीं दिया जाएगा। ओलम्पिक खेलों की सूची में शामिल ही नहीं कई खेलग्रामीण अंचल तक खेलों का वातावरण बनाने के लिए इस बार आयोजित किए जा रहे ग्रामीण ओलम्पिक खेल में उन खेलों को शामिल किया गया है जो ओलम्पिक खेलों की सूची में शामिल ही नहीं है। टेनिस बॉल, क्रिकेट, खो-खो, कबड्डी व शूटिंग वॉलीबाल ऐसे ही खेल हैं। राजस्थान के मुख्य खेल बास्केटबॉल तक को इसमें शामिल नहीं किया गया है।
ग्राउंड रियलिटी कंटीली झांडियों पर कैसे तैयार होंगे खिलाड़ीश्रीमाधोपुर: लाखों खर्च, संसाधनों के नाम पर कुछ नहींउपखंड की खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए लगभग आठ साल पहले स्टेडियम की स्थापना हुई। लाखों रुपए खर्च कर कंक्रीट की इमारत तो खड़ी कर दी, लेकिन साधन और सुविधाओं का टोटा है। अभी भी यहां वॉलीबॉल, फुटबॉल व हॉकी तक के कोच नहीं हैं।नीमकाथाना: अब तक सरकार नहीं बना सकी ट्रेकनीमकाथाना को जिला बनाने की मांग पर सरकार कई बार सर्वे की बात कह चुकी है, लेकिन यहां अभी तक स्टेडियम नहीं बना है। राजकीय गजानंद मोदी स्कूल के खेल मैदान पर चारदीवारी कर मैदान बनाने की योजना है। क्रीड़ा परिषद की ओर से अभी तक कोच नहीं लगा है। फिलवक्त खिलाड़ी कंटीली झांडियों पर खेलने को मजबूर है।
ऐसे हो रहा खेल बिना मान्यता वाले खेलों पर सरकार ने लगा दी मुहरराज्य सरकार की ओर से खिलाडिय़ों को रोजगार देने के लिए दो प्रतिशत आरक्षण व आउट ऑफ टर्न पॉलिसी को लागू किया गया। इसमें उन खेलों को भी शामिल कर लिया गया जो भारतीय ओलम्पिक संघ व युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय, भारत सरकार से मान्यता प्राप्त तक नहीं है। जबकि नियमों में साफ तौर पर लिखा है कि भारतीय ओलम्पिक संघ व युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय से मान्यता व स्कूल गेम्स फैडरेशन में पदक प्राप्त करने वाले खिलाडिय़ों को इसका लाभ दिया जाएगा। पोलो को भारतीय ओलम्पिक संघ से तो मान्यता है लेकिन युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय से नहीं है। इसी प्रकार क्रिकेट खेल को दोनों से मान्यता प्राप्त नहीं होने के बावजूद इन खेलों के खिलाडिय़ों को इस योजना का फायदा दिया गया। सेपकटकरा खेल को दोनों से मान्यता प्राप्त होने के बावजूद खिलाडिय़ों को वंचित कर दिया गया।
खेल नीति पंजाब व हरियाणा से हम अभी भी पिछड़ेहर बार सरकारों की ओर से प्रदेश में बेहतर खेल नीति बनाने को लेकर कई दावे किए जाते हैं। जबकि खेल नीति के लचर प्रावधानों की वजह से अभी भी राजस्थान, पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों से काफी पिछड़ा हुआ है।
एक्सपर्ट व्यूतस्वीर सुनहरी, प्रयास भी करने होंगे बेहतरदेशभर में खेलों की तस्वीर बदल रही है। खिलाडिय़ों को खेल के दम पर नौकरी भी मिलने लगी है। खिलाडिय़ों की फौज तैयार करने के लिए और बेहतर प्रयास करने की आवश्यकता है। गांव-ढाणियों के युवाओं तक यह संदेश पहुंचाना होगा कि खेलों में भी कॅरियर है। खेल प्रशिक्षक जितने चाहिए उतने नहीं है। सरकार को और बेहतर खेल नीति बनाने की भी आवश्यकता है।देवेन्द्र झाझडिय़ा, पद्म श्रीÓ विजेता खिलाड़ी
आंकड़ों में समझिए खेलों को…क्रीड़ा परिषद की एकेडमी 17अधिकतम सीटें 30निजी एकेडमी 410हर साल खेल प्रतियोगिता 2700 से अधिकखेल कोटे में सालाना औसत भर्ती 4000खेल संगठन 8715 साल में खेल नीति बनी 02 बार

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