आशीष जोशीसीकर. कोयले की कमी से गहराए बिजली संकट के बीच परमाणु ऊर्जा से विद्युत उत्पादन बढ़ाने के लिए देश यूरेनियम में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। इसके लिए यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (यूसीआइएल) ने राजस्थान में बड़े उत्पादन केंद्रों की योजना बनाई है। आंध्रप्रदेशए तेलंगानाए झारखंड और मेघालय के बाद राजस्थान पांचवां बड़ा यूरेनियम हब बनकर सामने आया है। फिलहाल सीकर और उदयपुर जिले में 14295 टन से ज्यादा के यूरेनियम भंडार मिल चुके हैं। वहीं परमाणु ऊर्जा विभाग ने राजस्थान और हरियाणा में यूरेनियम के और भंडारों की संभावना जताई है। राजस्थान के 15 और हरियाणा के दो जिलों पर विभाग की नजर है। यदि सर्वे और योजना कामयाब रही तो सौर व पवन ऊर्जा के बाद यूरेनियम से परमाणु ऊर्जा के साथ राजस्थान एनर्जी हब के रूप में उभरेगा। यूसीआइएल ने नाभिकीय विद्युत संयंत्रों की ईंधन आपूर्ति के लिए परमाणु ऊर्जा विभाग की यूरेनियम आवश्यकता अनुसार आगामी 15 वर्ष का विजन डॉक्युमेंट तैयार किया है। देश में कुल बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी 2020.21 में 3.1 प्रतिशत थी। जिसे 2031 तक क्रमिक रूप से बढ़ाने पर तेजी से काम चल रहा है। यों समझें यूरेनियम की ताकतएक किलो यूरेनियम से 25000 किलो कोयले के बराबर बिजली उत्पादन होता है। विशेष भट्टी के भीतर यूरेनियम के परमाणुओं में विस्फोट कराया जाता है। जिससे जबरदस्त ऊर्जा उत्पन्न होती है।सीकर व उदयपुर के बाद अब 15 जिलों पर नजरसीकर के रोयल व जहाज में कुल 13135 टन व उदयपुर के उमरा में 1160 टन यूरेनियम के भंडार मिलने के बाद अब परमाणु खनिज अन्वेषण एवं अनुसंधान निदेशालय की नजर राज्य के 15 जिलों पर है। यहां यूरेनियम पाए जाने की प्रबल संभावना जताई गई है। विभाग ने सीकर, झुंझुनूं, जयपुर, नागौर, अलवर, पाली, जालोर, राजसमंद, भीलवाड़ा, अजमेर, बांसवाड़ा, उदयपुर, चित्तौडगढ़़, बूंदी और सवाई माधोपुर जिले को चुना है। इनमें से कई इलाकों में हेलीबोर्न जियोलॉजिकल सर्वे हो चुका है। कई इलाकों में अभी शुरू होना है। हरियाणा के महेंद्रगढ़ का नारनौल और भिवानी का लोहारू क्षेत्र भी इस सर्वे में शामिल हैं। इस सर्वे में हेलीकॉप्टर आवश्यक संसाधनों से लैस होकर जमीन से 60 मीटर की ऊंचाई पर उड़ता है।परमाणु ऊर्जा रू प्रदेश में 2031 तक बनेगी 5280 मेगावाट बिजली रावतभाटा में 700.700 मेगावाट क्षमता के दो परमाणु ऊर्जा संयंत्र निर्माणाधीन है। इनके 2022.23 तक शुरू होने की संभावना है। यहां न्यूक्लियर फ्यूल कॉम्पलेक्स का निर्माण भी अंतिम चरण में है। अभी यहां हैदराबाद से फ्यूल (यूरेनियम) आता हैए बादमें यहां से देश के कई रिएक्टरों को फ्यूल सप्लाई होगा। वहीं माही (बांसवाड़ा) में 700-700 मेगावट की चार परियोजनाओं को प्रशासनिक और वित्तीय मंजूरी मिल चुकी है। वर्ष 2031 तक कुल क्षमता 5280 मेगावाट हो जाएगी।
एक्सपर्ट व्यू: कोयले पर निर्भरता कम करनी होगीकोयला संकट के बीच राजस्थान को दो स्रोतों पर फोकस करना चाहिए। सौर ऊर्जा तो राज्य की ताकत है हीए परमााणु ऊर्जा में भी यहां असीम संभावनाएं हैं। हालांकि इन दोनों ही क्षेत्रों में धीरे-धीरे काम हो रहा हैए लेकिन हमें कोयले पर निर्भरता कम करनी होगी। रावतभाटा के बाद जल्द ही बांसवाड़ा का माही भी एटोमिक एनर्जी हब बनेगा।दिलीप भाटिया, सेवानिवृत्त वैज्ञानिक अधिकारी, राजस्थान परमाणु बिजलीघर रावतभाटा
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