सीकर. किसानों का भाग्य कहें या मुनाफाखोरी का जाल। जिले में किसान रात दिन कडकड़़ाती सर्दी व भीषण गर्मी में कड़ी मेहनत बाद भी करोड़ों का नुकसान झेल रहे है। व्यापारियों की मुनाफाखोरी के कारण जिले में किसानों को हर साल नुकसान झेलना पड़ रहा है। हाल यह है कि फसल की बुवाई व कटाई दोनों समय फ सलों के भावों के अंतर देखने को मिल रहा है। किसान जब बुवाई शुरू करता है तो उसे महंगे दामों में अपनी ही उपज के बीज खरीदने पड़ते है, वहीं जब वह अपनी उपज बीज बाजार में बेचने जाता है तो उसे खरीदे गए बीजों की तुलना में 50 से 75 फीसदी भाव ही मिल पाते है। रही सही कसर किसानों के पास अधिक पूंजी नहीं होने से हो रही है। इसका लाभ बिचौलिए आसानी से उठा रहे है।यह है हकीकतफ सलों की बुवाई व कटाई के समय उपज के भावों में पांच से दस रुपए और कभी-कभी ये अंतर बीस रुपए प्रतिकिलो तक भी पहुंच रहा है। जिसका सीधा नुकसान किसान को और लाभ बिचौलियों को हो रहा है। खरीफ की बुवाई के समय बाजरा 21 रुपए प्रति किलो थे वहीं कटाई शुरू होने के साथ नए बाजरे की कीमत 13 से 14 रुपए प्रति किलो हो गई।यूं समझे गणितपिछले पांच वर्ष से औसतन गेहूं 99 हजार, जौ 33 हजार, चना 46 हजार, सरसों 60 हजार, तारामीरा दो हजार, चारा व सब्जी 44 हजार हेक्टेयर में बोया जाता है। रबी की औसतन बुवाई ढाई से तीन लाख हेक्टेयर के बीच होती है। प्रत्येक दो वर्ष में अधिकांश किसान बीज बदल देते हैं। जिले में साढ़े चार लाख किसान है।यही तो है कालाबाजारी कटाई के समय कम भाव में खरीदकर स्टॉक कर देना और फि र बुवाई के समय महंगे दामों में बेचने की परम्परा ने ही कालाबाजारी को जन्म दिया है। बुवाई के समय सस्ते बीज मिले और कटाई के समय किसान को पूरी कीमत मिले तो किसान और आमजन दोनों का भला होगा।- जीवण सिंह, किसान बड़े स्तर पर नीति आवश्यकबुवाई के समय जब भाव अधिक होते है तो किसान के चेहरे पर खुशी होती है, लेकिन जब बेचने का समय आता है तो भावों में गिरावट किसानों की मुस्कान छीन लेता है। देश के किसान को उसकी मेहनत का पूरा लाभ मिले इसके लिए सरकार को बड़े स्तर पर पॉलिसी बनाने की जरूरत है। इससे ही किसानों का भला हो सकता है।शीशपाल सिंह खरबास, प्रगतिशील किसान
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