2017 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में 2022 के चुनावों में काफी बदली हुई तस्वीर दिखाई दे सकती है. लंबे समय तक भाजपा के मित्र दल की भूमिका निभाने वाली शिवसेना (Shiv Sena) भाजपा (BJP) के साथ दो-दो हाथ करती नजर आयेगी. शिवसेना ने इस बार उत्तर प्रदेश की सभी 403 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का निर्णय लिया है.
इसकी वजह साफ है महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच गठबंधन समाप्त होने के बाद दोनों एक दूसरे के विरोध में सामने आ चुके हैं. ऐसी स्थिति में उत्तर प्रदेश में शिवसेना अपने इस नए विरोधी की टांग खींचने का कोई मौका नहीं छोड़ेगी. कहते हैं कि राजनीति में न तो कोई स्थायी दुश्मन होता है और ना ही स्थायी दोस्त.
इन नये समीकरण के बाद अब शिवसेना के विरोधी चेहरे से यूपी में भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं. क्योंकि दोनों का वोट बैंक एक ही यानी हिंदू मतदाता माना जाता है. हालांकि जिस तरह से महाराष्ट्र में शिवसेना ने भाजपा से अलग होने के बाद गैर भाजपाई दलों से हाथ मिलाया है और कुछ ऐसे निर्णय जो उसके पारंपरिक वोट बैंक के खिलाफ है उससे उसकी हिन्दूवादी छवि को धब्बा लगाने का भाजपा भी कोई मौका नहीं छोड़ेगी.
जानकारों का कहना है कि जिस तरह से असदुद्दीन ओवैसी ने उत्तर प्रदेश में के चुनावी रण में उतरने के ऐलान के बाद यह समझा जा रहा है कि ओवैसी मुख्य रूप से सपा के मुस्लिम वोट बैंक में ही सेंध लगाएंगे, अब यही स्थिति भाजपा के पारंपरिक हिंदू वोट के संबंध में शिवसेना के मैदान में उतरने के बाद पैदा हो गई है. कहा जा सकता है कि महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के रिश्ते टूटने का असर यूपी के चुनावी रण में साफ दिखाई देगा.
उत्तर प्रदेश में सभी 403 विधानसभा सीटों पर शिवसेना के चुनाव लड़ने की जानकारी का निर्णय आज संगठन की प्रांतीय कार्यकारिणी की बैठक में लिया गया इस बैठक में शिवसेना ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार के शासन में कानून व्यवस्था पूरी तरह फेल हो चुकी है और बहन-बेटियां सुरक्षित नहीं हैं कार्यकारिणी की बैठक दारुल शफा में शिवसेना के प्रदेश प्रमुख ठाकुर अनिल सिंह की अध्यक्षता में हुई.
अनिल सिंह ने आरोप लगाते हुए कहा कि यूपी में योगी सरकार ब्राह्मणों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रही है. शिवसेना की कार्यकारिणी की बैठक में प्रदेश प्रमुख ने राज्य में शिक्षा और शिक्षा व्यवस्था पर भी उंगली उठाते हुए कहा कि इन दोनों क्षेत्रों पर भी सरकार ध्यान नहीं दे रही है. हालात भी खराब हैं इसके साथ ही बेरोजगारी और महंगाई से जनता त्रस्त है.
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के सामने पहली बार सभी सीटों पर लड़ रही शिवसेना अपने लक्ष्य में कितना कामयाब होती है यह तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे लेकिन भाजपा की पेशानी पर बल लाने का इंतजाम तो शिवसेना ने कर ही दिया है.
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