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सामना में शिवसेना ने फिर लिखा राहुल गांधी को लेकर

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शिवसेना (Shiv Sena) के मुखपत्र ‘सामना’ में एक संपादकीय छपा है, जिसका शीर्षक है ‘कांग्रेस का टॉनिक’. इस लेख में कांग्रेस (Congress) पार्टी के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा गया है कि यह उस ढहते हुए किले की तरह है, जिसकी मरम्मत व रंग-रोगन करने की कोशिश राहुल गांधी कर रहे हैं. पर इसके झाड़- फ़ानूस पर नज़र गड़ाए लोग उन्हें ऐसा करने नहीं दे रहे हैं.
पेश है वह संपादकीय.
कांग्रेस पार्टी का क्या होगा, ऐसी आशंका कई लोग महसूस कर रहे हैं. महात्मा गांधी की इच्छा के अनुसार कांग्रेस का विसर्जन हो रहा है क्या? ऐसा खुशी का उबाल भारतीय जनता पार्टी में आ रहा है. स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस का काम नहीं बचा है और उसका विसर्जन कर दिया जाए, ऐसा महात्मा गांधी का कहना था. यह इतना सही नहीं है. आज़ादी के बाद करीब 50 वर्षों तक कांग्रेस सत्ता में रही और आज भी कई राज्यों में कांग्रेस का काफी हद तक अस्तित्व है.
विगत सात-आठ वर्षों से कांग्रेस की अवस्था ठीक नहीं है. नरेंद्र मोदी के तूफान के आगे, बीजेपी के विस्तार के कारण कांग्रेस की हालत ‘पतली’ हो गई व कांग्रेस के खेमे के बचे-खुचे सिपहसालार छोड़कर जाने लगे हैं. पंजाब सूबा इस वक्त जड़ से हिला हुआ है. कांग्रेस अध्यक्षा ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया.
नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और उनका नया मंत्रिमंडल सत्ता में आया. प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने इस बदलाव पर पेड़े बांटे. खुशी से उन्होंने भांगड़ा किया, लेकिन विद्रोही, अविश्वसनीय सिद्धू ने ही अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस के समक्ष संकट बढ़ा दिया है. सिद्धू के हमेशा की खिट-पिट के कारण कैप्टन अमरिंदर को दूर कर दिया गया. अब सिद्धू भी गए.
कांग्रेस के हाथ में क्या बचा? वहां 79 वर्ष के कैप्टन अमरिंदर दिल्ली जाकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिले. अमरिंदर बीजेपी में जाएंगे, ऐसा कहा जा रहा था, लेकिन ऐसी आशंकाओं पर खुद अमरिंदर ने पूर्ण विराम लगा दिया है. परंतु मैं कांग्रेस में भी नहीं रहूंगा, ऐसा भी उन्होंने कहा है. ऐसे में वे अपनी खुद की नई पार्टी स्थापित करके कांग्रेस को गड्ढे में धकेलेंगे, ऐसा प्रतीत हो रहा है.
कैप्टन अमरिंदर कहते हैं, मैं तीन कृषि कानून के संदर्भ में अमित शाह से मिला. यह पूरी तरह झूठ है. मुख्यमंत्री रहने के दौरान यही अमरिंदर पंजाब के किसानों से कहते थे कि पंजाब में आंदोलन मत करो, बल्कि दिल्ली में करो. अर्थात उन्हें किसानों की आक्रामकता अपने राज्य में नहीं चाहिए थी. मुख्यमंत्री रहने के दौरान कैप्टन अमरिंदर तीन कृषि कानूनों के संदर्भ में कितनी बार दिल्ली आए?
बल्कि उनकी भूमिका मोदी सरकार परस्त व किसानों में फूट डालनेवाली ही थी, ऐसा कहा जाता है. अब ये महाराज किसानों के मसीहा बन गए हैं. उसी तरह कांग्रेस नेतृत्व की भी गड़बड़ी है. कांग्रेस पार्टी में स्थाई अध्यक्ष नहीं है और अंतरिम स्वरूप से काम चलाया जा रहा है. पंजाब में दलित मुख्यमंत्री बनाकर राहुल गांधी ने एक जोरदार कदम बढ़ाया, उसे उनके प्रिय सिद्धू ने रोक दिया.
कांग्रेस पार्टी में बकवास करने वालों की कमी न होने के बावजूद सिद्धू जैसे बाहरी बकवास करनेवालों पर अतिरिक्त विश्वास करने की आवश्यकता नहीं थी. पंजाब में गड़बड़ी का असर अब अन्य राज्यों में भी देखने को मिल सकता है. पंजाब की तरह राजस्थान में भी नेतृत्व परिवर्तन होगा व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को जाना पड़ेगा, ऐसी हवा बन गई थी, जो कि पंजाब के कारण ठंडी पड़ गई.
पहले से कब्जा जमाए बैठे लोग नए लोगों को मौका नहीं मिलने देते हैं. किला जर्जर हो गया होगा तब भी उसकी खिड़की, दरवाजे, पंखे, पलंग, झूमरों पर मालिकाना हक जताकर किले में ही वे डेरा डालकर बैठे हैं. राहुल गांधी किले की मरम्मत करना चाहते हैं. किले का रंग-रोगन करने का प्रयास कर रहे हैं. सीलन, गड्ढों को भरना चाहते हैं, परंतु पुराने लोग राहुल गांधी को ऐसा करने नहीं दे रहे हैं.
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को रोकने के लिए इन लोगों ने अंदर से बीजेपी जैसी पार्टी से हाथ मिला लिया है, ऐसा अब पक्का हो गया है. कांग्रेस को डुबाने की सुपारी कांग्रेसियों ने ही ली है यह मान्य है, परंतु कांग्रेस को स्थायी अध्यक्ष दो. पार्टी का सेनापति नहीं है तो लड़ें कैसे? पुराने प्रसिद्ध कांग्रेसियों की यह मांग भी ग़लत नहीं है. कांग्रेस पार्टी में नेता कौन है यह सवाल ही है. गांधी परिवार है, परंतु नेता कौन? अध्यक्ष कौन? इस बारे में भ्रम होगा तो उसे दूर करना चाहिए.
कोई बड़ा नेता पंजाब में जाकर बैठेगा व मामला खत्म करेगा, ऐसा कोई है क्या? कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवानी जैसे युवा कांग्रेस पार्टी में आए. गुजरात के हार्दिक पटेल भी आए हैं. लेकिन उनकी वजह से कांग्रेस उफान मार सकेगी क्या? पंजाब में गड़बड़ी शुरू रहने के दौरान गोवा के लोकप्रिय कांग्रेसी लोग पार्टी छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में चले गए. उनमें पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन फालेरो हैं.
वैसे अमरिंदर, लुईजिन फलेरो आदि को पार्टी द्वारा मुख्यमंत्री जैसा सर्वोच्च पद देने के बाद भी ये लोग कांग्रेस छोड़ने का प्रयास कर रहे हैं. यह बेशर्मी की हद है. डॉ. जितिन प्रसाद को कांग्रेस ने मंत्री पद दिया. ये प्रसाद, बीजेपी में गए व उन्हें उत्तर प्रदेश में मंत्री बना दिया. बीजेपी के पास मंत्री पद बांटने की क्षमता है इसलिए आज लोग उनके पास जा रहे हैं. इसे सूजन आना कहते हैं.
अर्थात कांग्रेस की यह सूजन थोड़ी ज्यादा ही उतर गई है और इसलिए कांग्रेस का क्या होगा, ऐसा गंभीर सवाल उठ रहा है. कांग्रेस पार्टी बीमार है. इसके लिए इलाज भी चल रहा है, परंतु यह ग़लत है क्या? इसका विचार किया जाना चाहिए. कांग्रेस पार्टी उफान मारकर उठे, मैदान में उतरे, राजनीति में नई चेतना की बहार लाए, ऐसी लोगों की भावना है. इसके लिए कांग्रेस को पहले पूर्ण कालीन अध्यक्ष ही चाहिए.
दिमाग ही नहीं होगा तो शरीर का क्या लाभ? सिद्धू, अमरिंदर जैसों की खुशामद करने में कोई लाभ नहीं है. पंजाब में कांग्रेस फोड़कर बीजेपी को विधानसभा निगलनी है. इसे मजाक ही कहना होगा. कांग्रेस के बगैर बीजेपी भी जीत नहीं सकती है और बीजेपी को भी कांग्रेस के टॉनिक की जरूरत पड़ती है. परंतु यह बोध कांग्रेस नेतृत्व को कब होगा?
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