सीकर. शूटर अंकित भादू के सुभाष, पवन बानूडा ने नीमकाथाना में फरारी काट रहे थे। दोनों के साथ में सीताराम और नटवर भी था। शूटर अंकित भादू गैंगस्टर लारेंस बिश्नोई का खास सहयोगी रहा है। वे नीमकाथाना सहित अन्य जगहों पर जगह-जगह बदल कर रहते थे। वे फायरिंग के बाद जयपुर के महेश नगर, सोढाला व मानसरोवर में भी छिप कर रहे थे। उन्हें सुभाष ने ही कुछ युवकों के पास रूकने की बात कहीं थी। पवन बानूडा ने रिमांड के दौरान पुलिस पूछताछ में कई खुलासे किए है। उसे दो दिन के रिमांड पर ले रखा है। इन्होंने एक साल पहले मनोज ओला पर जानलेवा हमला किया था। तब से ही फरार चल रहे थे। पवन ने पुलिस को बताया कि झुंझुनूं मेगा मार्ट में आरके मेगा मार्ट पर बैठे मनोज ओला पर फायरिंग करने आल्टो कार से गए थे। सुभाष ने टोपी लगाई थी। गाडी पवन चला रहा था। पीछे सीताराम और सुभाष बैठे थे। सुभाष की पिस्टल एक गोली चलने के बाद अटक गई थी। सीताराम ने ही उसे गोली मारी थी। बाद में वे चारों कार से गोकुलपुरा तिराहे होते हुए गोकुलपुरा गए। तब सांवली रोड पंप के पास संदीप और रामनिवास मिले। उन दोनों को पूरी जानकारी दी। वहां से दोनों को वापस भेज दिया।
जयपुर-सीकर पुलिस का नेटवर्क फेल
दस दिनों के बाद चारों जयपुर में आ पहुंचे थे। वहां पर महेश नगर, सोढाला मानसरोवर में लंबे समय तक छिप कर रहे। जयपुर पुलिस को चारों की भनक तक नहीं लगी। इसके बाद पवन रानोली में शक्ति सिंह के पास आ गया। दीपावली के दिन उन्होंने बीजू रानोली पर वीरू, प्रदीप फौजी व विजेंद्र कोलारा के साथ आकर फायरिंग की। वहां से वह संागलिया में जाकर रूके। वहां से किशनगढ गए और फिर कोलरा में विजेंद्र के घर गए। वहां से नीमकाथाना में विक्रम राठौड़ के पास गए। वहां पर शूटर अंकित भादू भी आया था। वहां पर सुभाष, सीताराम, व नटवर भी रूके। उन्होंने अधिकतर फरारी नीमकाथाना में ही काटी थी। इसके बावजूद पुलिस को उनके बारे में पता नहीं लग सका।
दो बाइक पर चारों हर्ष गए, पहले मोबाइल तोड़
पवन ने पुलिस को बताया कि वह चारों बाइकों से सीधे हर्ष की ओर चले गए। हर्ष पहाड़ी पर पहुंच कर उन्होंने पहले नटवर लाल का मोबाइल तोड़ कर फैंक दिया। उसने बताया कि मनोज को मारने के लिए उन्होंने पहले से मोबाइल रखने बंद कर दिए थे। वे अपने मोबाइल घर पर ही रखते थे। केवल नटवर के पास ही मोबाइल था। वे आंतरी, जीणवास गए और वहां पर बालाजी मंदिर छितरवाल बालाजी में जाकर रूके। वे घाटवा में भी जाकर आए तो उन्हें मनोज के जिंदा होने का पता लगा। उन्होंने दांतारामगढ़ में एक ढाबे पर खाना खाया। सुभाष के रिश्तेदार के घर पर सोए। सुबह वे कुचामन में धर्मबहन के घर पर पहुंच गए। वहां पर दोनों बाइक छोड़ कर बस में बैठ कर अहमदाबाद, सूरत होते हुए सीधे मुंबई चले गए। वे डऱ के कारण बसों में ही सफर करते थे। वहां पर करीब १० दिन तक रूके।[MORE_ADVERTISE1]
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