लखीमपुर खीरी की घटना के बाद उत्तर प्रदेश ही नहीं, पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) में भी करंट दौड़ गया है. हाल ही में पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने वाले नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) इस घटना के बाद फिर से जोश में आ गए हैं. सिद्धू ने गुरूवार को अल्टीमेटम दिया है कि अगर शुक्रवार तक लखीमपुर की घटना के अभियुक्त और केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा की गिरफ़्तारी नहीं होती तो वे भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगे.
सिद्धू कांग्रेस कार्यकर्ताओं के काफिले के साथ लखीमपुर (Lakhimpur) के लिए निकल पड़े हैं. लेकिन उनके काफिले को उत्तर प्रदेश और हरियाणा के बॉर्डर के पास शाहजहांपुर में रोक लिया गया है. इस दौरान पुलिस और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच जोरदार बहस भी हुई है. पुलिस ने पंजाब के कैबिनेट मंत्री विजय इंदर सिंगला, गुरकीरत कोटली और अमरिंदर सिंह राजा वडिंग को शाहजहांपुर में हिरासत में ले लिया है.
लखीमपुर की इस घटना के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा एक बार फिर फ्रंटफुट पर आईं. साथ ही राहुल गांधी भी दिल्ली से चलकर लखनऊ होते हुए लखीमपुर पहुंचे. उत्तर प्रदेश के साथ ही पंजाब में भी 5 महीने के भीतर विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में पार्टी को उम्मीद है कि अगर वह किसानों को इंसाफ़ दिलाने की इस लड़ाई को जोर-शोर से लड़ती है तो पंजाब और उत्तर प्रदेश में कुछ सियासी बढ़त हासिल कर सकती है.
सिद्धू ने इससे पहले भी एलान किया था कि अगर बुधवार तक प्रियंका गांधी को रिहा नहीं किया जाता है तो पंजाब कांग्रेस लखीमपुर की ओर मार्च करेगी. पंजाब कांग्रेस के भीतर कई महीने से जारी झगड़ों के बीच सिद्धू का फ़ॉर्म में लौटना पार्टी के लिए भी बेहतर संकेत है. क्योंकि पार्टी को जल्द ही चुनाव में जाना है और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के कांग्रेस का साथ छोड़ने के एलान के बाद पार्टी के लिए हालात विपरीत हो रहे थे.
सिद्धू के अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की भी लखीमपुर की घटना में जोरदार सक्रियता रही. चन्नी तुरंत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने दिल्ली भी आ गए थे. यहां यह भी ध्यान देना होगा कि राहुल गांधी लखीमपुर जाते वक़्त पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को अपने साथ ले गए थे. इसके पीछे भी बड़ी वजह है. किसान आंदोलन की शुरुआत पंजाब से हुई थी और इस लड़ाई में बड़ी भागीदारी सिखों की है.
लखीमपुर की इस घटना में मारे गए चारों किसान सिख ही हैं. इसलिए कांग्रेस ने शायद इस मामले में पूरी ताक़त के साथ मैदान में उतरने का फ़ैसला किया, जिससे उत्तर प्रदेश के साथ ही पंजाब में भी इसका सीधा संदेश जाए कि कांग्रेस किसानों की इस लड़ाई में उनके साथ खड़ी है. पंजाब उन ग़िने-चुने राज्यों में है, जहां कांग्रेस सत्ता में है. इसलिए पार्टी किसी भी क़ीमत पर इस राज्य को खोना नहीं चाहती.
लखीमपुर की घटना के बाद सिखों और किसानों में जो नाराज़गी बीजेपी को लेकर है, उसे भी कांग्रेस भुनाना चाहती है. कांग्रेस को इस बात का डर ज़रूर है कि पंजाब में चुनाव से ठीक पहले सिद्धू का इस्तीफ़ा देना उसके लिए मुसीबत का सबब बन सकता है. लेकिन सिद्धू का फिर से सक्रिय होना उसके लिए ताज़ा हवा के झोंके की तरह है, यह पंजाब में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को ऑक्सीजन देने का भी काम करेगा.
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