मोदी सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को भारी दबाव के बाद वापस ले लिया है एक तरह से मोदी सरकार ने किसानों के सामने और विपक्ष के दबाव में घुटने टेकने का काम किया है.
कृषि कानूनों की वापसी पर भी बीजेपी समर्थक मीडिया इसे प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किसानों पर किए गए एहसान की तरह पेश कर रही है, इसे प्रधानमंत्री मोदी का तोहफा बताने की कोशिश कर रही है. जबकि जिस कानून का विरोध किसान कर रहे थे वह कानून तो मोदी सरकार ही लेकर आई थी. फिर एहसान या फिर तोहफा कैसा है?
इन कानूनों को वापस करवाने के लिए किसानों ने बहुत संघर्ष किया है, लाठियां खाई है, कैनन वाटर के सामने रहे हैं, एफआईआर तक दर्ज की गई. किसानों का सिर फोड़ा गया. किसानों को कुचलने की कोशिश की गई. लेकिन किसान लगातार संघर्ष करते रहे और अपने साथियों की शहादत के बावजूद सड़कों पर डटे रहे.
अब जबकि सरकार ने इन कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया है उसके बाद वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने इस पूरे मामले पर प्रतिक्रिया दी है उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा है कि, एक साल पहले की तस्वीर याद करें. गोदी मीडिया किसान आंदोलन को आतंकवादी कहने लगा. उस अफ़सर को याद करें जिसने किसानों का सर फोड़ देने की बात कही और सरकार उसके साथ खड़ी रही. किसानों ने विज्ञान भवन में ज़मीन पर बैठकर अपना खाना खाया. उन कीलों को याद करें जो राह में बिछाई गई.
एक साल पहले की तस्वीर याद करें। गोदी मीडिया किसान आंदोलन को आतंकवादी कहने लगा। उस अफ़सर को याद करें जिसने किसानों का सर फोड़ देने की बात कही और सरकार उसके साथ खड़ी रही। किसानों ने विज्ञान भवन में ज़मीन पर बैठकर अपना खाना खाया। उन कीलों को याद करें जो राह में बिछाई गई।
— ravish kumar (@ravishndtv) November 19, 2021
बता दें कि मोदी सरकार के तमाम बड़े नेता और मंत्री तथा खुद कृषि मंत्री तक यह कह रहे थे कि कृषि कानून वापस नहीं होंगे, लेकिन इसके बावजूद वह बार-बार कह रहे थे कि किसानों से बातचीत करने के लिए तैयार है. बातचीत करने की बात करके वह मीडिया के माध्यम से देश को भ्रमित करने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन बातचीत में कोई नतीजा नहीं निकल रहा था.
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