अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद वहां के क्रिकेट के भविष्य को लेकर काफी अटकलें लगाई जा रहीं हैं. पिछले दिनों तालिबानी नेता अफगानिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान से मुलाकात कर क्रिकेट को जारी रखने का भरोसा दिया था. जिसके बाद अफगानिस्तान की अंडर19 टीम ने दो दिन पहले ही बांग्लादेश का दौरा किया. लेकिन महिला क्रिकेट को लेकर तालिबान हुकुमत बेहद सख्त नजर आ रही है.
तालिबान ने महिलाओं के खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया है. तालिबान का मानना है कि किक्रेट समेत तमाम खेल गतिविधियां सिर्फ महिलाओं के शरीर की नुमाइश ही करती हैं. तालिबान ने कहा, ‘अफगान महिलाएं क्रिकेट समेत किसी भी खेल में हिस्सा नहीं ले सकतीं हैं. खेल गतिविधियां केवल उनके शरीर की नुमाइश करेंगी.’ यह सूचना तालिबान के एक प्रवक्ता की ओर से जारी बुधवार की रिपोर्ट में कही गई है.
तालिबान के सांस्कृतिक आयोग के उप प्रमुख अहमदुल्ला वसीक ने इसपर अटपटा बयान दिया है. अगर अफगानिस्तान में महिला क्रिकेट बैन होता है तो इसका असर पुरूष क्रिकेट पर भी पड़ेगा. क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने स्पष्ट कहा है कि अगर महिलाओं पर प्रतिबंध की खबरें सच होती हैं तो होबार्ट में होने वाले टेस्ट मैच को रद्द कर दिया जाएगा. अफगानिस्तान पुरुष क्रिकेट टीम को इस साल 27 नवंबर से होबार्ट में इकलौता टेस्ट खेलना है.
यह मुकाबला पिछले साल ही होना था. लेकिन कोरोना के कारण लागू यात्रा प्रतिबंधों की वजह से मैच नहीं हो पाया था. यह ऑस्ट्रेलिया में अफगानिस्तान का पहला मैच होगा. ऐसे में अफगानिस्तान में क्रिकेट का भविष्य बेहद चिंताजनक नजर आ रहा है. इसका असर राशिद खान जैसे विश्वस्तरीय क्रिकेटर पर पड़ेगा. जिन्हे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
बता दे कि संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान में सामाजिक व्यवस्थाएं और अर्थव्यवस्था पूरी तरह पटरी से उतरने का खतरा बना हुआ है. अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की राजदूत देबोराह लेयॉन्स ने दुनिया से अपील की है कि तालिबान से जुड़ी चिंताओं के बावजूद अफगानिस्तान में पैसे का फ्लो बनाए रखें नहीं तो पहले से ही गरीब इस के हालात बेकाबू हो सकते हैं.
तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान के सेंट्रल बैंक की करीब 10 अरब डॉलर की संपत्तियां विदेशों में फ्रीज कर दी गई हैं. वहीं इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड ने भी 44 करोड़ डॉलर का इमरजेंसी फंड ब्लॉक कर दिया है. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि अफगानिस्तान इस वक्त करंसी की वैल्यू में गिरावट, खाने-पीने की चीजों, पेट्रोल-डीजल की कीमतों में भारी इजाफा और प्राइवेट बैंकों में नकदी की कमी जैसे संकटों का सामना कर रहा है. यहां तक कि संस्थाओं के पास स्टाफ का वेतन देने तक के पैसे नहीं हैं.
इन हालातों में इकोनॉमी को चलाने के लिए कुछ महीने का वक्त दिया जाना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र की राजदूत लेयॉन्स ने कहा है कि तालिबान को ये साबित करने के लिए एक मौका देना चाहिए कि वो इस बार वाकई मानवाधिकारों की रक्षा और आतंकवाद विरोधी सोच के साथ काम सरकार चलाना चाहता है. लेयॉन्स ने ये भी कहा है कि अफगानिस्तान के लिए दिए जाने वाले फंड का दुरुपयोग नहीं हो, ये भी सुनिश्चित करना होगा.
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