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समाज से लेकर सियासत तक विरोध…कहा, बर्दाश्त नहीं करेंगे महाराजा सूरजमल का अपमान

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सीकर. फिल्म पानीपत में भरतपुर के महाराजा सूरजमल के किरदार को लेकर विरोध के स्वर लगातार बढ़ते जा रहे हैं। भरतपुर के बाद सीकर तक इसका विरोध हो रहा है। राज्य के शिक्षा राज्य मंत्री गोविन्द सिंह डोटासरा ने इसकी निन्दा की है। उन्होंने इसको लेकर ट्वीट किया है कि राजस्थान की आन बान शान के प्रतीक महाराजा सूरजमल के किरदार को गलत तरीके से चित्रित किया गया है, जिसे किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। महाराजा सूरजमल की वीरता, पराक्रम और शौर्य के किस्से राजस्थान के कण-कण में विद्यमान है। फि़ल्म निर्देशक को तुरंत प्रभाव से माफी मांगकर इस गलती को ठीक करना चाहिए। आए दिन इस तरह की खबरें सामने आ रही हैं जो वास्तव में चिंता का विषय है। जिसका जब मन करता है इतिहास के वीरों की वीरता को अपने हिसाब से आंककर, गलत तथ्यों के साथ फिल्म बनाकर लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर देता है। फिल्मकार अपनी जि़म्मेदारियाँ क्यों भूल रहे हैं। कभी रानी पद्मावती का गलत चित्रण तो अब महाराजा सूरजमल का। गौरतलब है कि फिल्म को लेकर पर्यटन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह ने कहा है कि फिल्म में सूरजमल जाट जैसे महापुरुष का चित्रण गलत तरीके से किया गया है। जिससे जाट समुदाय में विरोध है। फिल्म पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। उधर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने भी इसकी निंदा की है।
क्या बताया है फिल्म में… फिल्म में मराठा योद्धा सदाशिवराव भाऊ अफगानों के खिलाफ मदद करने के लिए महाराजा सूरजमल से कहते हैं। सूरजमल बदले में कुछ चीज चाहते हैं। मांग पूरी नहीं होने पर वे युद्ध में जाने से इनकार कर देते हैं। इसके अलावा स्थानीय लोग राजस्थानी और हरियाणवी बोल रहे हैं। भाषा को लेकर भी लोगों की आपत्ति है।कौन थे महाराजा सूरजमल महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 को हुआ था। वह राजा बदनसिंह ‘महेन्द्र’ के दत्तक पुत्र थे। उन्हें पिता से बैर की जागीर मिली थी। उन्होंने 1743 में भरतपुर नगर की नींव रखी और 1753 में वहां आकर रहने लगे। उनके क्षेत्र में भरतपुर सहित आगरा, धौलपुर, मैनपुरी, हाथरस, अलीगढ़, इटावा, मेरठ, रोहतक, मेवात, रेवाड़ी, गुडग़ांव और मथुरा सम्मिलित थे। वर्ष 1761 की 14 जनवरी को अहमदशाह अब्दाली के साथ पानीपत की तीसरी लड़ाई में कुछ ही घंटे में मराठों के एक लाख में से आधे से ज्यादा सैनिक मारे गए। इस त्रासदी से बचने की सलाह महाराज सूरजमल ने सदाशिव राव भाऊ को दी थी, जिसे नहीं माना गया।

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