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प्रधानमंत्री मोदी का दूसरा कार्यकाल देश के लिए बुरे दिन की झलक लेकर आया है

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मोदी से निराश विदेशी निवेशक लगातार शेयर बाजार से अपना पैसा बाहर निकल रहे हैं.

दुनियाभर के निवेशकों का भरोसा प्रधानमंत्री मोदी पर से उठता जा रहा है. जून से अगस्त के बीच की तिमाही में विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से लगभग 4.50 अरब डॉलर निकाल लिए.

प्रधानमंत्री मोदी जब पहली बार 2014 में प्रधानमंत्री बने थे उस समय अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का ऐसा सोचना था कि वह आर्थिक सुधार कर देश की अर्थव्यवस्था को तेजी देंगे, देश की अर्थव्यवस्था को व्यवसाय के अनुरूप बनाएंगे और इसी का परिणाम था कि प्रधानमंत्री मोदी के आने के बाद अभी तक लगभग 6 साल में विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) ने भारतीय शेयर बाजार में 45 अरब डॉलर के लगभग निवेश किया था.

इसके ठीक विपरीत मोदी सरकार ने आर्थिक सुधारों के लिए कोई भी काम नहीं किया. आज नतीजा यह है कि देश की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में है. शेयर बाजार लगातार लुढ़क रहे हैं. देश में बेरोजगारी का संकट छाया हुआ है. भारत में छाई आर्थिक मंदी को देखते हुए ही विदेशी निवेशकों ने अपने हाथ खींचने शुरू कर दिए हैं और इसके लिए जिम्मेदार अगर कोई है तो भारत की धराशाई होती अर्थव्यवस्था.

अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए, सुचारू रूप से जारी रखने के लिए, अर्थव्यवस्था की तरक्की के लिए पिछले सालों में मोदी सरकार ने अपनी तरफ से कोई प्रयास नहीं किया है. GDP को लेकर जो आंकड़े मोदी सरकार जारी करती है, उसको लेकर भी कई भ्रांतियां हैं, लोगों में विश्वास की कमी है. मोदी सरकार से जुड़े हुए ही , कई पूर्व अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि मोदी सरकार जीडीपी के आंकड़ों के साथ छेड़छाड़ करती है और बढ़ा कर दिखाती है.

इसके बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था लगातार पिछली पांच तिमाही से लुढ़कती जा रही है.

GDP यानी सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर 5 फ़ीसदी तक आ पहुंची है. ऑटो सेक्टर मंदी की मार झेल रहा है, कई कंपनियां अपने कॉन्ट्रैक्ट बेस के कर्मचारियों को रिन्यू नहीं कर रही है. इसके अलावा भी अपने कर्मचारियों की छटनी कर रही हैं. टाटा मोटर्स, मारुति सुजुकी, अशोक लेलैंड अपने प्लांट बंद करने पर मजबूर है, यह सब चीजें देश की आर्थिक बदहाली की पुष्टि कर रही है.

देश के अंदर बेरोजगारी दर 45 साल के अपने उच्चतम स्तर पर है, हालांकि यह 2019 चुनाव से पहले ही विपक्षी पार्टियां आरोप लगा रही थी और इस मुद्दे को उठा रही थी, लेकिन भाजपा ने इन सब बातों को गलत बताया था. चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने इस बात को स्वीकार किया था.

देश के अंदर बैंकों की हालत नाजुक हो चुकी है. अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं देश के बैंक. मोदी सरकार ने आरबीआई से भी पैसा लिया है, देश में महंगाई बेतहाशा बढ़ रही है, पेट्रोल डीजल की कीमतों में भी बेतहाशा वृद्धि होने वाली है. सऊदी अरब के तेल संयंत्रों पर ड्रोन हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में भी बढ़ोतरी हुई है, भारत में भी इसका असर देखने को मिलेगा देश की अर्थव्यवस्था और चरमरा सकती है.

देश के अंदर जो परिस्थितियां बन रही है उसके लिए सिर्फ और सिर्फ मोदी सरकार जिम्मेदार है. मोदी सरकार ने आर्थिक सुधार के लिए अपनी तरफ से कोई कदम नहीं उठाया जिसकी उम्मीद लोगों को थी. मोदी सरकार सिर्फ ब्रांडिंग और मीडिया मैनेजमेंट के दम पर लगातार चल रही है और चुनाव जीत रही है.

भारतीय अर्थव्यवस्था स्ट्रक्चरल मंदी में दाखिल हो चुकी है, इसका मतलब यह होता है कि वह मंदी जिससे देश के सभी उद्योग बुनियादी रूप से प्रभावित होंगे, ऐसी मंदी से बाहर निकलना बहुत ही मुश्किल होगा और इसमें बहुत ज्यादा समय लगेगा.

मोदी सरकार अर्थव्यवस्था ठीक से नहीं चला पा रही है और मौजूदा अर्थव्यवस्था की बदहाली का सबसे बड़ा कारण 2016 में किया गया नोटबंदी का फैसला है, जिसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुरी तरीके से पड़ा है. इसके अलावा GST का दांव भी उल्टा पड़ गया जो, जल्दबाजी में लागू किया गया था मोदी सरकार द्वारा.

देश की अर्थव्यवस्था बदहाली के भंवर में घूम रही है, लेकिन जनता का ध्यान अभी इस तरफ नहीं जा रहा है. फर्क हर किसी को पड़ेगा, लेकिन कुछ समय बाद, क्योंकि अभी सरकार ने राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाया हुआ है. सरकार ने देश की तंगहाली और बदहाली से ध्यान हटाने के लिए लगातार मीडिया मैनेज करके छद्म राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों को उछाल कर अभी जनता का ध्यान हटाया हुआ है, लेकिन कब तक जनता ध्यान नहीं देगी? विदेशी निवेशकों का क्या?

यह भी पढ़े : अर्थव्यवस्था पूरी तरीके से पटरी से नीचे उतर चुकी है, कोर सेक्टर में भी जबरदस्त गिरावट देखने को मिली है

राष्ट्र के विचार
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