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कविता: आज मैं घर से निकली

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आज मैं घर से निकली मम्मी पापा को बताकर पर्स में चाकू रखकर और मुंह छुपाकर क्योंकि डर था कोई अनहोनी ना हो जाए जिस सूरत को मैं संवारती हूं वह घिनौनी ना हो जाए दूसरों से नफरत तो बहुत करते हैं कहीं खुद से नफरत ना हो जाए मैं तो बस काम पर निकली थी कहीं मेरी हत्या ना हो जाए गुनाह कोई और करता है और भुगतना किसी और को पड़ता है और इसकी एक ही वजह है कि एक लड़की है और दूसरा लड़का है!
आजीवन कारावास से गुनाह कम नहीं हो जाएंगे तुम दो को अंदर डालो बाहर 10 और बन जाएंगे दिवाली पर पटाखे जलते हैं तो विवाद खड़े हो जाते हैं पर जब देश की बेटी जलती है तो सब शांत क्यों हो जाते हैं? औरतों को एक खिलौना समझ रखा है खेल लिया और उजड़़ गया तो दूसरा ले लिया लानत है उन लोगों पर जो भीड़ में भी आवाज नहीं उठाते हैंे सब कुछ हो जाने के बाद केवल मोमबत्तियां जलाते हैंपर एक बात याद रखना, जब वो आवाज उठाएगी, पूरी आवाम कांपेगीजब वो चुप्पी तोड़ेगी, तो सबकी रुह कांपेगी कहने दो जिसे जो कहना है, अब वह सारी हदें लांघेगी इस देश की हर बेटी अब उस सोच को संवारेगीइन सभी के जिम्मेदार वही लोग हैं जो बेटों के लिए मरते हैंपर वे नहीं जानते कि बेटे ही यह करते हैं!कोमल चौधरी, राधाकिशनपुरा, सीकर

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