- Advertisement -
HomeRajasthan NewsSikar newsकविता: रिश्ते

कविता: रिश्ते

- Advertisement -

रिश्ते बनाये नहीं जातेबस सिर्फ और सिर्फ निभाये जाते हैंहर रिश्ते की एक अलग इम्तिहानहोती हैजिन्दा रखने के लिए उसकी एकपहचान होती हैइन्सान जिन्दगी जीने के लिएरिश्ते बनाता हैपर रिश्ते निभाते हुए मर जाता हैरिश्ते वहीं की वहीं रह जाते हैंइन्सान आते हैं और चले जाते हैंकठिन है रिश्तों की पहचान करनापहचान है तो सरल है निभानारिश्तों को “मैं” नहीं पहचानता”” मैं “” ही तो हूँ जो नहीं जानताजिन रिश्तों के फूल घर आंगनमें खिलते थेआज वो “लतायें” पूर्वाई* सूख गईरहे सहे पत्तों को भी “पिछवाई”उड़ा के ले गयीरह गये बेचारे सूखे डंठलकोई उनको छूता नहीं हैकिसी ने नीचे गिर कर रगडन सेस्वयं को मिटा लियातो किसी ने स्वयं को बना लिया बंडलकहते हैं कि रिश्ते मिट गयेसिर्फ सिमट कर रह गयेपर रिश्तों की जड़ें आज भी हैंवो सूखी नहीं हैहरि हैं पर हरी नहीं हैंरिश्तों को जिन्दा रखने के लिएनिभाना होगाउन जड़ों को संस्कारी पानी सेसींचना होगाऔर इसके लिए हमकोचन्दा मामा की कहानी सुननेदादा दादी के पास बैठना ही होगा
हीरालाल कंचनपुर,अध्यापक

- Advertisement -
- Advertisement -
Stay Connected
16,985FansLike
2,458FollowersFollow
61,453SubscribersSubscribe
Must Read
- Advertisement -
Related News
- Advertisement -