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कृषि बिल पर सरकार के खिलाफ विपक्ष का हल्ला बोल

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किसान बिल को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच जंग छिड़ी हुई है. बिल को लेकर सदन में हंगामा हुआ जिसके बाद आठ सांसदों को निलंबित कर दिया गया.
जिसके बाद से ही समूचे विपक्ष ने संसद के दोनों सदनों का बहिष्कार किया हुआ है. अब आगे की रणनीति को लेकर बुधवार को विपक्ष की साझा बैठक होगी. साथ ही बुधवार शाम पांच बजे ही विपक्षी पार्टियां राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात करेंगी.
विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति से मिलने का वक्त मांगा गया था, जिसमें कृषि बिल पर चिंता, राज्यसभा में हुए हंगामे, सांसदों के निलंबन के मसले पर चर्चा की बात कही गई थी. विपक्ष ने अपील की थी कि राष्ट्रपति कृषि बिल को वापस राज्यसभा में लौटा दें. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात से पहले संसद परिसर में सभी विपक्षी पार्टियां प्रदर्शन दे रही हैं.
इस दौरान सभी के हाथ में किसान बचाओ के प्लेकार्ड भी हैं. प्रदर्शन में कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद, टीएमसी के डेरेक ओ ब्रायन समेत विपक्ष के कई नेता मौजूद हैं. इससे इतर राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाब नबी आजाद के दफ्तर में आज ये बैठक होगी. जिसमें किसान बिलों को लेकर आगे की चर्चा की जाएगी, साथ ही सरकार के खिलाफ किस तरह आवाज़ उठाई जाए इसपर भी मंथन होगा.
आपको बता दें कि मंगलवार को विपक्ष ने ऐलान किया था कि जबतक उनकी शर्तें नहीं मानी जाएंगी वो सदन का बहिष्कार करेंगे. विपक्ष की मांग है कि कृषि बिल को सिलेक्ट कमेटी को भेजा जाए, साथ ही निलंबित किए गए सांसदों का निलंबन वापसी हो. इसी के बाद पहले राज्यसभा और फिर लोकसभा से विपक्ष ने बहिष्कार किया. बता दें कि मंगलवार को ही विपक्ष की गैरमौजूदगी में सरकार ने कई बिल पास भी करवा लिए.
मंगलवार को ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी देश वापस लौटे हैं. कांग्रेस पहले ही 25 सितंबर से देशभर में आंदोलन की बात कह चुकी है और सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने की तैयारी है. कांग्रेस की ओर से देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रेस कॉन्फ्रेंस की जाएगी. राज्य, जिला, ब्लॉक स्तर पर ज्ञापन सौंपे जाएंगे. ऐसे में कृषि बिल को लेकर शुरू हुई सरकार और विपक्ष के बीच की ये जंग लंबी खिंच सकती है.
आपको बता दे कि केन्द्र सरकार इस बात को लेकर बहुत सन्तुष्ट नज़र आती है कि ताज़ा कृषि क़ानूनों का अभी मुख्य रूप से सिर्फ़ दो राज्यों- पंजाब और हरियाणा में ही भारी विरोध हो रहा है. बाक़ी देश के किसान ख़ुश और गदगद हैं कि मोदी जी ने एक और चमत्कार कर दिखाया है. बेशक़, सबको अपनी धारणाएँ बनाने की आज़ादी है. लेकिन कृषि क़ानूनों को लेकर जिस ढंग से सियासत गरमायी उससे साफ़ दिख रहा है कि अब पंजाब और हरियाणा के बड़ी जोत वाले किसानों’ पर देशद्रोहियों का ठप्पा लग गया है.
वो देश भर के किसानों के हितों के ख़िलाफ़ जाकर विपक्षियों की कठपुतली बन गये हैं क्योंकि उन्हें बरगलाया और ग़ुमराह किया गया. तो क्या हम ये मान लें कि पंजाब और हरियाणा के किसान बुद्धू हैं, मूर्ख हैं, नासमझ हैं, दिग्भ्रमित हैं? या फिर हम ये समझें कि वे बेहद समझदार और दूरदर्शी हैं. उन्होंने नोटबन्दी, कैशलेस लेन-देन, जियो क्रान्ति, स्टार्ट अप इंडिया, मेक इन इंडिया, इंक्रेडिबल इंडिया, आरोग्य सेतु, ताली-थाली, दीया-पटाखा, पुष्प वर्षा, कोरोना पैकेज़ और आत्मनिर्भर भारत के चमत्कारी जुमलों के अंज़ाम को क़रीब से देखा है.
क्या उन्हें दिख रहा है कि सरकार अब किसानों और खेती-किसानी को भी अपने चहेतों के हाथों बेचने पर आमादा है? कहीं इन अल्पसंख्यक किसानों को ऐसा तो नहीं लग रहा कि मोदी युग में जिस मुस्तैदी से सरकारी सम्पदा को बेचने-ख़रीदने और औने-पौने दाम पर निजीकरण की जो बयार बह रही है, उसमें उनका भी बह जाना तय है? भारत में सरकारी शिक्षा, स्वास्थ्य, दूरसंचार और उड्डयन क्षेत्र के डूबने का भरपूर उदाहरण हमारे सामने है.
सरकारी क्षेत्र में कमियाँ होती हैं, लेकिन प्राइवेट के आने से पहले और बाद में इन्हें और बढ़ाया जाता है. क्योंकि सरकारी व्यवस्था ठीक रहेगी तो प्राइवेट में कौन जाएगा? मुनाफ़ाख़ोरी कैसे होगी? इसीलिए सरकारी तंत्र की जड़ों में मट्ठा डाला जाता है. सरकारी कम्पनियों को बीमार बनाया जाता है. ताकि प्राइवेट पूँजी लहलहा सके.
बहरहाल आपको बता दें कि किसानों से जुड़े बिलों के लेकर विरोध प्रदर्शन जारी है. बुधवार को कांग्रेस कार्यकर्ताओं और किसानों के एक समूह ने संसद में कृषि सुधार विधेयकों के पारित होने के खिलाफ लुधियाना के मुल्लानपुर दखा में ट्रैक्टर रैली की. उधर नवजोत सिंह सिद्धू आज किसान बिल के विरोध में धरना देंगे.
सिद्धू का यह धरना अमृतसर के हाल गेट पर होगा, अमृतसर के भंडारी पुल से हाल गेट तक मार्च होगा. कैबिनेट मंत्री पद छोड़ने के बाद नवजोत सिद्धू एक साल बाद पहली प्रदर्शन के लिए बाहर आएंगे. लोकसभा चुनाव के बाद कैप्टन के मंत्रिमंडल से सिद्धू ने इस्तीफ़ा दे दिया था. तब से सिद्धू पब्लिक लाइफ़ में कम ही रहे हैं.
कृषि से जुड़े विधेयकों का पंजाब में काफी विरोध हो रहा है क्योंकि किसान और व्यापारियों को इससे एपीएमसी मंडियां समाप्त होने की आशंका है. यही कारण है कि प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक दलों ने कृषि विधेयकों का विरोध किया है. इसी कड़ी में केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने कृषि से जुड़े विधेयकों के विरोध में मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है.
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