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विपक्षी पार्टियां जनता के साथ घिनौना मजाक बंद करें

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देश की जनता मौजूदा दौर में किन परेशानियों का सामना कर रही है, यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है. पेट्रोल डीजल और गैस सिलेंडर की कीमतें आसमान छू रही हैं. बेरोज़गारी का पहाड़ लगातार ऊंचा होता जा रहा है. छोटे-मोटे धंधे बर्बादी की कगार पर खड़े हैं. कमर्शियल सिलेंडर की कीमतें भी छोटा मोटा काम करके अपने परिवार चलाने वालों की पहुंच से बाहर निकलता जा रहा है.
धर्म के नाम पर और जातियों के नाम पर मौजूदा सत्ता ने और कुछ क्षेत्रीय पार्टियों ने देश की जनता को किस कदर बांट कर रख दिया है, यह भी पूरा देश देख रहा है. किसान अपनी समस्याओं को लेकर लंबे समय से सड़कों पर धूल फांक रहे हैं. लेकिन उनकी सुनने वाला भी कोई नहीं है. किसानों के नाम पर बीजेपी के खिलाफ किसानों को भड़का कर क्षेत्रीय पार्टियां चुनाव में जीत हासिल करने की तैयारी में है और ममता बनर्जी ने तो सरकार भी बना ली.
बीजेपी को रोकने के लिए पश्चिम बंगाल (West Bengal) की जनता ने ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को तीसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी. किसानों ने भी पश्चिम बंगाल में बीजेपी के खिलाफ प्रचार किया था, जिसका लाभ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को मिला. पश्चिम बंगाल चुनाव के वक्त ममता बनर्जी ने तमाम पार्टियों को जो बीजेपी के खिलाफ हैं, एक लेटर लिखा था, खासतौर पर सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को. जिसमें उन्होंने चुनाव के दौरान मदद मांगी थी.
जनता और मुख्य विपक्षी पार्टी के साथ क्षेत्रीय पार्टियों का धोखा
पश्चिम बंगाल में कोई भी कांग्रेस (Congress) पार्टी का बड़ा नेता चुनाव प्रचार करने के लिए नहीं गया. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने भी अपनी तमाम रैलियां कैंसिल कर दी. जबकि “खेला होबे” का नारा देकर ममता बनर्जी बीजेपी के खिलाफ अपनी रैलियों में भीड़ इकट्ठा करती रही. कोरोना के नियमों को ताक पर रखकर चुनाव प्रचार किया. नतीजा यह हुआ कि बीजेपी और ममता बनर्जी के खिलाफ भी जो वोटर थे, चाहे वह कांग्रेस के विचारधारा के हो या फिर लेफ्ट के, उन्होंने ममता बनर्जी को एकतरफा वोट दिया.
ममता बनर्जी तीसरी बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनी और बीजेपी के सपने पश्चिम बंगाल में चकनाचूर हो गए. उत्तर प्रदेश का भी यही हाल है. लंबे समय से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास संगठन के नाम पर कुछ गिने-चुने कार्यकर्ता थे. उत्तर प्रदेश में मानो कांग्रेस पूरी तरीके से समाप्त हो गई थी. अंदरूनी तौर पर बीजेपी को रोकने के लिए कभी मायावती को तो कभी समाजवादी पार्टी को समर्थन कांग्रेस अपना देती रही. 2017 में खुले तौर पर समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस का गठबंधन हुआ. लेकिन यह गठबंधन पूरी तरीके से फेल हो गया और धर्म के नाम पर जनता को बांटकर बीजेपी प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने में कामयाब हो गई.
बाद में कुछ सूत्रों से जो जानकारी निकलकर सामने आई थी उसके मुताबिक जहां पर कांग्रेस के कैंडिडेट थे, वहां पर समाजवादी पार्टी के वोटरों ने कांग्रेस को वोट ही नहीं दिया. वह पूरा वोट बीजेपी को ट्रांसफर हुआ. बिहार के अंदर गठबंधन की हालत यह थी कि आरजेडी पूरी तरीके से कांग्रेस पर हावी थी. आरजेडी की परमिशन के बिना बिहार के किसी जिले का जिला अध्यक्ष भी कांग्रेस तय नहीं कर पा रही थी. या यूं कहें कि बिहार कांग्रेस के लोकल नेता आरजेडी के हाथों खेल रहे थे. उसका नतीजा यह था कि बिहार में भी कांग्रेस मृत सैया पर पड़ी थी. लोकतंत्र बचाओ का नारा देकर क्षेत्रीय पार्टियां अपने समर्थकों का वोट तो हासिल कर लेती हैं.
लेकिन क्या जो कानून जनता पर भारी पड़ते हैं, उन कानूनों को लोकसभा और राज्यसभा में पास होने से रोक पाती हैं? बीजेपी के खिलाफ पश्चिम बंगाल में तमाम विचारधाराओं का समर्थन हासिल करके ममता बनर्जी मुख्यमंत्री तो बन गई. लेकिन उससे किसानों को क्या लाभ हुआ? क्या ममता बनर्जी मोदी सरकार पर दबाव बनाने में कामयाब हुई, तीनों कृषि बिल वापस लेने के लिए? उत्तर प्रदेश में अगर समाजवादी पार्टी बीजेपी को रोकने में कामयाब हो जाती है तो क्या उससे उत्तर प्रदेश में बीजेपी कमजोर हो जाएगी? क्या केंद्र सरकार के फैसलों पर उसका खासा असर पड़ेगा? गोवा के अंदर बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है.
लेकिन सोनिया गांधी को खत लिखकर पश्चिम बंगाल के अंदर समर्थन मांगने वाली ममता बनर्जी, गोवा के अंदर कांग्रेस के नेताओं को तोड़ रही हैं, गोवा में भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है. क्या ममता बनर्जी अगर गोवा में चुनाव लड़ती हैं तो वह बीजेपी के वोटरों को अपनी तरफ आकर्षित कर पाएंगी या फिर कांग्रेस का ही वोट बैंक हथियाने का प्रयास करेंगी? सच्चाई हर कोई जानता है.
असम में भी तृणमूल कांग्रेस चुनाव लड़ेगी, इसका ऐलान ममता बनर्जी की तरफ से हो चुका है. बीजेपी को रोकने के नाम पर बीजेपी, को सत्ता से बेदखल करने के नाम पर, लोकतंत्र बचाने के नाम पर, चाहे ममता बनर्जी हो या फिर कोई दूसरी क्षेत्रीय पार्टी और उसका नेता हो, क्या यह लोग बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने का माद्दा रखते हैं? हकीकत यह है कि क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस का वोट बैंक हाथिया कर बाद में कांग्रेस को ही आंख दिखाने का काम करती है.
बीजेपी के विरोध में खड़ी जनता को मूर्ख बनाने वाले बयान
ममता बनर्जी की तरफ से बयान आया है कि बीजेपी कांग्रेस के कारण मजबूत हो रही है. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने बयान दिया है कि, बीजेपी ही कांग्रेस है, कांग्रेस ही बीजेपी है. पहले जनता को जाति धर्म के नाम पर बांट दो, कांग्रेस का वोट बैंक हथिया लो और फिर चुनाव से पहले क्षेत्रीय पार्टियों की समर्थक मीडिया के सहारे कांग्रेस के खिलाफ दुष्प्रचार करो. यही नीति अपना रखी है क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं ने. ममता बनर्जी के बयान पर अगर बात करें तो ममता बनर्जी गोवा में चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं.
अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की पार्टी भी गोवा में चुनाव लड़ेगी. लेकिन यह दोनों पार्टियां बीजेपी के खिलाफ जो जनता खड़ी है, जो जनता बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस के साथ खड़ी हो सकती है, उसी जनता का वोट बैंक हथियाने की फिराक में है, उसी जनता को बिखेर देने के प्रयास में है. बीजेपी के खिलाफ जो जनता खड़ी है, वह अपना कुछ वोट कांग्रेस को देती है, कुछ वोट ममता बनर्जी की पार्टी को दे देती है और कुछ वोट अरविंद केजरीवाल की पार्टी को दे देती है, तो क्या बीजेपी सत्ता से बेदखल हो जाएगी गोवा में? बीजेपी के खिलाफ जो वोट हैं वह अलग-अलग पार्टियों में बंट जाएगा और बीजेपी के साथ जो वोट है वह इकट्ठा बीजेपी को मिल जाएगा. तो फिर फायदा किसे होगा?
ममता बनर्जी बताएं कि कांग्रेस बीजेपी को मजबूत कर रही है या फिर ममता बनर्जी के जैसे क्षेत्रीय पार्टियों के नेता, अपने राजनीतिक लाभ के लिए? धर्म के नाम पर नफरत फैलाकर जीत हासिल करने वाली विचारधारा परास्त कैसे होगी? क्षेत्रीय पार्टियों के नेता अगर लोकतंत्र बचाने की बात कर रहे हैं, संविधान बचाने की बात कर रहे हैं, देश को जोड़ने की बात कर रहे हैं, तो क्या जनता का वोट जाति के नाम पर अलग-अलग पार्टियों में बिखेर कर संविधान को बचाया जा सकता है? हकीकत यह है कि क्षेत्रीय पार्टियों के नेता कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लंबे समय से लगाते रहे हैं. आज नतीजा यह है कि उन्हीं क्षेत्रीय पार्टियों के राज में बीजेपी या तो उन्हें चुनौती दे रही है या फिर परास्त कर चुकी है.
पहले कांग्रेस को कमजोर किया क्षेत्रीय पार्टियों ने, पहले राज्यों में सत्ता से कांग्रेस को बेदखल किया क्षेत्रीय पार्टियों ने और आज नतीजा यह है कि, बीजेपी उन्हीं राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों का या तो सफाया कर चुकी है या फिर उस मुकाम पर आकर खड़ी हो चुकी है. ममता बनर्जी इस बार नहीं हारी तो अगले चुनाव में उनकी हार शायद देखने को मिल सकती है. जाति के नाम पर जनता को कांग्रेस से दूर करके सरकारी बनाई क्षेत्रीय पार्टियों ने और आज उन्हीं राज्यों में बीजेपी चुनौती दे रही है या फिर सरकार में है, तो बीजेपी को मजबूत कांग्रेसी कर रही है या फिर क्षेत्रीय पार्टियां? एक दो या तीन बार अगर कोई क्षेत्रीय पार्टी का नेता अपने राज्य तक सीमित रह कर चुनावी जीत हासिल कर लेता है और मुख्यमंत्री बन जाता है, तो वह पूरे देश में कांग्रेस का विकल्प बन के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने के सपने देखने लगता है.
अरविंद केजरीवाल से लेकर ममता बनर्जी तक उदाहरण सामने है. लेकिन पश्चिम बंगाल के बाहर, बात अगर राजस्थान कि की जाए, मध्यप्रदेश कि की जाए, उत्तर प्रदेश कि की जाए, पंजाब कि की जाए या फिर किसी और राज्य कि की जाए तो ममता बनर्जी को कितना वोट मिलेगा? हकीकत यह है कि दूसरे राज्यों में ममता बनर्जी को नाम मात्र के वोट हासिल हो सकते हैं और वह भी वोट वही होंगे जो कांग्रेस को बीजेपी का विकल्प मान कर अभी तक वोट देते रहे होंगे और इन्हीं राज्यों में ममता बनर्जी जैसे कई क्षेत्रीय पार्टियों के नेता चुनाव लड़ते हैं. जैसे कि अरविंद केजरीवाल. तो फिर उस राज्य में दो-तीन छत्रिय पार्टियों की तरफ से उम्मीदवार खड़े किए जाते हैं और कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई जाती है, जिसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलता है. तो फिर कौन सा लोकतंत्र बचाने की बात कर रहे हैं क्षेत्रीय पार्टियों के नेता? विधानसभा चुनाव में दिल्ली के अंदर एकतरफा जीत हासिल की थी अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने.
लेकिन बीजेपी को हराने की बात करने वाली यह पार्टी और मोदी का विकल्प खुद को मानने वाले अरविंद केजरीवाल दूसरे राज्यों में या फिर पूरे देश में दिल्ली को छोड़कर कितना वोट हासिल कर सकते हैं? लोकसभा चुनाव के अंदर ही बीजेपी ने आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का सफाया कर दिया. अगर आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ती या फिर चुनाव ही ना लड़ती तो क्या बीजेपी दिल्ली में सभी सीटों पर इतना बेहतर प्रदर्शन कर पाती? कांग्रेस को दिल्ली की जनता ने विधानसभा चुनाव में 0 सीटें दी थी और अरविंद केजरीवाल को भरपूर समर्थन दिया. लेकिन दिल्ली में दंगे हुए, आम जनता पर अत्याचार हुए, सड़कों पर उतर कर अरविंद केजरीवाल ने जनता के साथ खड़े होकर बीजेपी के खिलाफ कितनी लड़ाई लड़ी?
हकीकत यह है कि लोकतंत्र बचाओ का नारा देकर, संविधान बचाओ का नारा देकर कुछ राज्यों में चुनावी जीत हासिल करने वाली क्षेत्रीय पार्टियां जनता के मुद्दों पर बीजेपी के सामने समर्पण कर चुकी हैं. अगर अधिकतर राज्यों में कांग्रेस की सरकार रहती तो क्या बीजेपी अंधाधुंध कानून लोकसभा और राज्यसभा में पास करने की हिम्मत कर पाती? जवाब है नहीं. क्योंकि उसको पता रहता कि देश पर लंबे समय तक शासन करने वाली पार्टी कमजोर नहीं बल्कि मजबूत है और जनता कभी भी एक तरफा कांग्रेस का साथ देकर उसे केंद्र की सत्ता में वापस ला सकती है.
बीजेपी के अंदर डर रहता. बीजेपी के अंदर से वह डर खत्म हो चुका है. क्योंकि उसे मालूम है कि क्षेत्रीय पार्टियां भले चुनाव जीत जाएं कुछ राज्यों में, लेकिन वह जनता के मुद्दों पर बीजेपी से मुकाबला नहीं कर सकती. उन्हें सीबीआई और ईडी से डराया जा सकता है, उनका मुंह बंद कराया जा सकता है.
फैसला जनता को करना है कि लोकतंत्र कैसे बचेगा? जनता के अधिकार कैसे सुरक्षित रहेंगे.
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