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अच्छे भाव की चाह में आया प्याज

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सीकर. शेखावाटी के प्याज उत्पादक किसान कोरोना काल में हुए घाटे से बचने की जुगत में इस बार अगेती प्याज को मंडी में बेचने के लिए ला रहे हैं। इसका नतीजा है कि सीकर थोक मंडी में बरसों बाद जनवरी के माह की शुरूआत में ही प्याज के कट्टे बिक्री के लिए आने शुरू हो गए हैं। प्याज के कारोबारियों की माने तो फिलहाल सर्दी ज्यादा होने के कारण इस बार शेखावाटी के प्याज के मांग कम है। वहीं मंडियों में प्याज की बम्पर आवक होने के कारण भावों में कमी आ रही है। सीकर मंडी में रविवार को 15 से 22 प्रति किलो और नासिक के प्याज के भाव चार से छह रुपए प्रति किलो तक रहे। पिछले साल जनवरी में इस समय 30 से 35 रुपए प्रतिकिलो भाव रहे थे। जो फरवरी मार्च माह में कम हुए थे। मंडी में इस समय प्याज के दस से ज्यादा छोटे वाहनों में प्याज आ रहे हैं। अभी आएगी गिरावट मंडी के थोक व्यापारी देवीलाल निठारवाल ने बताया कि पिछले साल इस समय स्थानीय प्याज के भाव ज्यादा रहे थे। लेकिन एमपी और महाराष्ट्र इलाके में सर्दी की सीजन की बारिश पर ही देश की विभिन्न मंडियों में प्याज के भाव निर्भर रहते हैं। इस दौरान उन इलाको में बारिश होने पर अक्सर प्याज की फसल खराब हो जाती है। इससे प्याज के भाव बढ़ जाते हैं। फिलहाल मौसम का रूख देखते हुए बारिश कम होने की संभावना है। ऐसे में आने वाले कुछ दिन में प्याज के भाव में गिरावट आ सकती है। हालांकि सर्दी के सीजन में तैयार होने वाला गुजरात, पूना, कर्नाटक की उपज भी जल्द ही खत्म हो जाएगी। इस दौरान शेखावाटी और नासिक का प्याज ही चलेगा। इसके अलावा हरियाणा व पंजाब में रबी की फसलों की कटाई शुरू होने से प्याज की मांग बढ़ जाएगी। मार्च व अप्रेल के बाद ही स्टॉकिस्ट सक्रिय होंगे। इसके साथ ही प्याज के भाव और बढ़ जाएंगे। यह है लागत मूल्य प्रति हेक्टेयर रुपए में मंडी के थोक व्यापारी नेमीचंद दूजोद ने बताया कि शेखावाटी की आबोहवा में एक हेक्टेयर क्षेत्र में प्याज का उत्पादन तीस टन तक हो जाता है। दूसरी तरफ किसानों ने बताया कि चार माह की इस फसल के लिए एक हेक्टेयर में प्याज की बुवाई के लिए खेत की तैयारी में आठ हजार रुपए, कम्पोस्ट खाद के लिए 12 हजार रुपए, कीटनाशक व उर्वरक के लिए दस हजार, नर्सरी की तैयारी में दस हजार, रोपाई खर्च 40 हजार, फसल कटाई के लिए 30 हजार और सिंचाई के लिए 20 हजार रुपए खर्च होते हैं। इसके अलावा खेत से मंडी तक लाने में किसानों को 15 से 25 हजार रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं। इससे फसल की लागत बढ़ जाती है।

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