जयपुर।एक ओर संगीत और नृत्य के संयोजन से सजे दृश्य, तो वहीं दूसरी ओर प्रस्तुति के जरिए कई भावों को सजा मंच। कुछ ऐसे ही नजारा मंगलवार को जवाहर कला केन्द्र में देखने को मिले। मौका था, जेकेके में चल रहे पांच दिवसीय फेस्टिवल ‘नृत्यम’ (Nrityam 2019 in JKK Jaipur ) के समापन का। जयपुर कथक केन्द्र (Jaipur Kathak Kendra) के सहयोग से आयोजित प्रस्तुति ‘जल’ में कलाप्रेमियों सबसे पहले जयपुर कथक घराने का पारम्परिक और प्रायोगिक स्वरूप देखने को मिला। कार्यक्रम की परिकल्पना एवं नृत्य संरचना जयपुर कथक केन्द्र की प्राचार्या डॉ. रेखा ठाकर ने की। कलाकारों द्वारा नृत्य संरचना ‘जल’ को दो चरणों में पेश किया गया। प्रथम चरण में जयपुर कथक के पारम्परिक स्वरूप को पेश करते हुए कलाकारों की ओर से ताल धमार में पारम्परिक कवित्त ‘दई मारे बदरवा करत शोरÓ और ‘नए-नए जलद सावन केÓ सेनापति कवित्त की प्रस्तुति दी। इस अवसर पर तीन ताल एवं राग मल्हार में ‘उमड घुमड घन बरसे बूंदडीÓ के जरिए वर्षा के सौन्दर्य और घने बादलों की तरह उमड़ते मन के भावों को पेश किया। प्रथम चरण में गायन एवं हारमोनियम पं. मुन्ना लाल भाट, सितार पर पं. हरिहरशरण भट्ट, सारंगी उस्ताद मोईनुद्दीन खां, तबले पर मुज्फ्फर रहमान और पखावज पर एश्वर्य आर्य ने संगत दी।
प्रस्तुति में दिखे विभिन्न रस दूसरे चरण की प्रस्तुति प्रायोगिक स्वरूप पर आधारित थी। इसमें दिवगंत भगवत शरण चतुर्वेदी के आलेख पर आधारित इस नृत्य संरचना में विभिन्न बंदिशों के माध्यम से पेश किया गया। इसमें पृथ्वी पर गंगा के जल की मन:स्थिति को दर्शाया गया। प्रस्तुति में कलाकारों ने जल के वीर, शृंगार, हास्य, वात्सल्य, वीभत्स, रौद्र, भयानक, करूण और शांत रसों को पेश कर दर्शकों का मन मोह लिया। दूसरे चरण में संगीत निर्देशन पं. आलोक भट्ट ने किया। लय संयोजन पं. प्रवीण आर्य का था।
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