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कृषि कानूनों के विरोध में किसान प्रदर्शन पर विज्ञान भवन में सरकारी प्रजेंटेशन का नया तमाशा

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सरकार ने नए कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के प्रदर्शन को देशव्यापी समर्थन मिलने के बाद एक प्रेजेंटेशन (प्रस्तुतिकरण) दिया है, लेकिन इस प्रस्तुतिकरण से कई सवाल उठ खड़े हुए हैं जिनके जवाब नदारद हैं. सबसे पहला प्रश्न यही है कि ये प्रस्तुतिकरण सरकार ने कब और क्यों तैयार किया?
क्या सरकार को पहले ही अंदेशा था कि इसकी जरूरत पड़ेगी? मौके पर आए इस प्रस्तुतिकरण से तो यही लगता है कि सरकार को पूरा अंदाजा था की उसके बनाए कृषि कानून गलत हैं और उनका पूरे देश में जबरदस्त विरोध होगा इसलिए उसने पहले ही इस प्रजेंटेशन को तैयार करा लिया था.
दूसरा प्रश्न ये उठता है कि इस प्रजेंटेशन का आधार और स्त्रोत क्या है? निश्चित रूप से इस प्रस्तुतिकरण के लिए देश के आम किसानों और उनके हालात को नजरांदाज किया गया है, क्योंकि साधारण किसान आज भी गरीबी और संघर्ष में जीवन गुजारते हुए खेती करता है. उसके लिए सिर्फ आज का महत्व है, वो आने वाले कल के लिए सिर्फ सपने देखता है और उम्मीद करता है. साधारण किसान आने वाले कल के लिए प्लानिंग करने की हालत में नहीं होता.
तीसरा सवाल है कि सरकार के इस प्रस्तुतिकरण को तैयार करने का विचार किसका था और इसे बनाया किसने? ये सवाल इसलिए भी है क्योंकि यदि ये सरकार का आइडिया होता तो अब तक मीडिया और भाजपा ने इसका बहुत ढोल पीटा होता लेकिन ये प्रेजेंटेशन जिस तरह से चुपचाप तैयार हुआ और अचानक से प्रस्तुत हुआ वैसा एक्शन सरकार ने सिर्फ नोटबंदी के समय लिया था और ये बात अपनेआप में सिद्ध है की नोटबंदी से किसका फायदा हुआ और किसका नुकसान.
इसके बावजूद ये आइडिया कार्यरूप हुआ और प्रेजेंटेशन तैयार हुई तो इसके पीछे किसी सरकारी अफसर का हाथ है अथवा अंबानी/अडाणी का? सूचना के अधिकार के तहत एक NGO “अखिल भारतीय जन क्रांति संघ” के द्वारा दाखिल अर्जी पर सरकार ने जवाब देने में फिलहाल दिलचस्पी नहीं दिखाई है, लेकिन उम्मीद कर सकते हैं की संभवत: सरकार इस पर स्थिति स्पष्ट करे. परंतु यह भी बहुत संभव है की सरकार इस मुद्दे पर कोई जवाब न दे, क्योंकि वर्तमान सरकार सच का गला घोंटने में माहिर है और हमेशा ही उसका रवैया यही रहता है.
अंत में यक्ष प्रश्न यही है कि किसानों की मांग पर सुनवाई व कारवाई होगी और काले कृषि कानूनों को बदला जाएगा? अथवा इस प्रजेंटेशन के नए तमाशे की ओट में इस देश के महत्वपूर्ण मुद्दे को हमेशा की तरह अनदेखा और उपेक्षित छोड़ दिया जाएगा? ये सवाल इसलिए भी है क्योंकि गत् 6½ वर्षों का अनुभव तो यही कहता है कि मोदी सरकार अपने एजेंडे और रवैये पर अडिग रहती है, भले ही उससे देश और जनता का कितना भी नुकसान हो.
यहां पर भी स्थिति अलग नहीं है, एकतरफ देश का मेहनती किसान है तो दूसरी तरफ भाजपा के प्रिय मुकेश अंबानी. अब देखना यह है कि सरकार किसके हितों को वरीयता देती है? वैसे इसका अंदाजा लगना कतई मुश्किल नहीं है. पिछले वर्ष माह नवंबर में जियो मॉर्ट के नाम से रिटेल स्टोर लांच करने वाले मुकेश अंबानी अब न सिर्फ प्रचार और ऑनलाइन ऑर्डर के लिए फेसबुक के साथ रिकॉर्ड राशि का करार कर चुके हैं, बल्कि उन्होंने बिग बाजार नामक रिटेल चेन को भी बड़ी कीमत पर खरीदा है.
निश्चय ही सरकार द्वारा इन नए कृषि कानूनों के वापस लिए जाने पर मुकेश अंबानी की महत्वाकांक्षा को झटका लगेगा और उनकी व्यापक मुनाफा कमाने की योजना धराशायी हो जाएगी लेकिन देश के करोड़ों किसानों का अंबानी और अंबानी जैसों द्वारा होने वाला शोषण रूक जाएगा. पर क्या सरकार इन कानूनों को वापस लेगी? अथवा हमेशा की तरह अपनी हठधर्मिता पर कायम रहेगी
परंतु सच ये भी है कि 6½ वर्षों में पहली बार किसी मुद्दे पर ऐसा देशव्यापी विरोध हो रहा है, जिसे तकरीबन पूरे देश का समर्थन और सहयोग हासिल हो रहा है. तो ऐसे में देखना होगा की मोदी सरकार जनभावना के अनुरूप भी कार्य कर सकती है और निर्णय लेती है, अथवा उसके लिए संघ (RSS) और चंद उद्योगपति ही प्राथमिकता के बाद दूसरे और तीसरे पायदान पर भी महत्वपूर्ण बने रहते हैं?
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