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न सर्वे पूरा न गिरदावरी, पांच दिन में 58 करोड़ का नुकसान

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सीकर. कुदरत के बाद जिम्मेदारों की अनदेखी ने जिले में किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया है। किसान संगठनों का दावा है कि जिले में लगातार हो रही बारिश के कारण तीन दिन में ही 75 हजार से ज्यादा किसानों को 58 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हो गया है। सबसे ज्यादा नुकसान 18 करोड़ रुपए का दलहन की प्रमुख फसल मूंग, मोठ और चंवळा में हुआ है। किसानों को हो चुके नुकसान को लेकर किसान संगठन लगातार गुहार लगा रहे हैं लेकिन न तो कृषि विभाग का सर्वे पूरा हो सका और न ही राजस्व विभाग की विशेष गिरदावरी। आश्चर्य की बात है कि जिले से हर साल करोड़ों रुपए प्रीमियम के रूप में बटोर रही फसल बीमा कंपनी ने पांचवे दिन भी टोल फ्री नम्बर शुरू नहीं किया है। ऐसे में अब किसान सिवाए नुकसान झेलने और प्रशासन को कोसने के अलावा किसी गुहार तक नहीं लगा सकते हैं। पांच दिन के दौरान सबसे ज्यादा नुकसान धोद और सीकर के आस-पास के क्षेत्र में आंका जा रहा है।किसान बोले, कैसे करे क्लेमसीकर जिले में फसल बीमा के लिए एक कंपनी को निर्धारित किया गया है। यह कंपनी कभी प्रदेश के अन्य जिलों की तुलना में कम मुआवजा देने या सर्वे को लेकर पारदर्शिता नहीं बरतने के कारण शुरू से विवादों में रही है। इसके विरोध में किसान संगठन, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी जनप्रतिनिधियों सहित जिला प्रशासन को कई बार ज्ञापन दे दिया लेकिन मामले की सुनवाई नहीं की जा रही है। जिले में किसानों की संख्या ज्यादा होने और साल में दो बार फसलों की बुवाई होने के कारण फसल बीमा के प्रीमियम की राशि अधिक है। यही कारण है कि बीमा कंपनी सीकर जिले को छोडऩा नहीं चाहती है। कंपनी के अनुसार रबी और खरीफ दोनो सीजन के दौरान बीमा कंपनी बतौर प्रीमियम किसानों से औसतन सौ-सौ करोड़ रुपए लेती है।कंपनी की मनमर्जीखराबे के समय किसानों को मुआवजा नहीं देना पड़े इसके लिए कंपनी अपने टोलफ्री नम्बर को ही अक्सर बंद रखती है। नतीजन नुकसान होने पर किसान अपनी शिकायत ऑन रेकार्ड नहीं करवा सकता है। हालांकि सीजन की शुरूआत के समय बीमा कंपनी का जागरुकता रथ गांव-गांव जाता है लेकिन इसके बाद बीमा कंपनी गांव से मुंह मोड़ लेती है। प्रदेश सरकार के नियमों के बावजूद बीमा कपंनी की ओर से किसान को पॉलिसी नहीं दी जाती है और न ही खराबे के समय कंपनी का कोई प्रतिनिधि गांव आता है।इनका कहना है…प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत सर्वे करने वाले सम्बंधित बीमा कर्मचारी, कृषि विभाग के अधिकारी व पटवारी गिरदावरी को जिओ टैगिंग की मदद लेनी चाहिए। जिससे नुकसान की सटीकता सामने आ सके। किसानो को खराबे की सूचना सम्बंधित बीमा कंपनी को 72 घंटे में करनी होती है उसके बाद बीमा कंपनी सर्वे करवाती है लेकिन टोल फ्री नम्बर बंद होने से किसानो की शिकायत ऑन रिकॉर्ड नहीं आ रही। इससे किसान क्लेम से वंचित हो जाएगा। समस्या को लेकर सीकर सांसद को ज्ञापन देकर टोल फ्री नम्बर शुरू करवाने की मांग की है। सुधेश पूनिया, नेशनल यूथ अवॉर्डी

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