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मेरा परिवार श्रीराम का प्रत्यक्ष वशंज है…

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भुवनेश पण्ड्या
उदयपुर. यह ऐतिहासिक रूप से सिद्ध है कि मेरा परिवार श्रीराम का प्रत्यक्ष वंशज है। हम राम जन्म भूमि पर कोई दावा नहीं करना चाहते हैं, लेकिन यह मानते हैं कि अयोध्या में राम जन्म भूमि पर श्री राम मंदिर अवश्य बनाया जाना चाहिए। उदयपुर के पूर्व राज परिवार के अरविन्दसिंह मेवाड़ ने स्वयं को भगवान श्रीराम का वंशज बताते हुए सोमवार को यह ट्वीट किया है। बीते शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय ने पूछा था कि भगवान राम को काई वंशज अयोध्या या दुनिया में है ? इसके बाद राजसमन्द से भाजपा सांसद व जयपुर के पूर्व राजघराने की सदस्य दीयाकुमारी ने बीते शनिवार को ट्वीट किया कि हम भगवान राम के वंशज हैं। जयपुर की गद्दी भगवान राम के पुत्र कुश के वंशजों की राजधानी है। इसके बाद उदयपुर में भी इसकी सुगबुगाहट शुरू हो गई थी।
 
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अयोध्या विवाद में उदयपुर के पूर्व राजपरिवार की ओर से स्वयं को भगवान श्रीराम के पुत्र लव का वंशज बताया है। बताया जा रहा है कि लव के वंशजों ने मेवाड़ में सिसौदिया राजवंश की स्थापना की थी। कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक एनल्स एण्ड एंटीक्वीटीज ऑफ राजस्थान में भगवान श्रीराम की राजधानी को अयोध्या बताया है, जबकि लव ने लाहौर बसाया था, लव के वंशज गुजरात से मेवाड़ आए थे। उन्होंने चित्तौड़ के बाद उदयपुर को भी राजधानी बनाया था, मेवाड़ का राज प्रतीक सूर्य है, अत: स्पष्ट है क्योंकि भगवान श्रीराम सूर्यवंशी थे।
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ये है साहित्यकारों का मत
मेवाड़ का राजवंश सूयवंशी है जो अयोध्या के इक्ष्वांकु कुल में उत्पन्न भगवान श्री रामचन्द्र के वंशधरगण हैं। इतिहासकार डॉ. अजातशत्रु सिंह शिवरती के मत में मेवाड़ का राजवंश सूर्यवंशी है और इस सम्बन्ध में उनकी मान्यता है कि, अयोध्या के इक्ष्वांकुवंशी नरेश भगवान श्री रामचन्द्र जी एवं द्वारिका नरेश भगवान श्री कृष्ण जी के क्रमश: सूर्य एवं चन्द्र वंश के परवर्ती काल में जो राजा लोग हुए उनकी पवित्र वंशावली का उल्लेख कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक ‘राजस्थान इतिहास’ के अध्याय – 4 में किया है। इस पत्रिका (राजवंशावली) की तीन राजवंशावलियाँ निम्न है – 1. सूर्यवंश एवं श्री रामचन्द्र जी के वंशधरगण 2. इन्दुवंश और महाराज परीक्षित के वंशधरगण 3. इन्दुवंश और महाराजा जरासन्ध के वंशधरगण श्रीरामचन्द्र जी के लव एवं कुश नाम के दो पुत्र उत्पन्न हुए, उनमें ज्येष्ठ लव से मेवाड़ के राणा महाराणा हुए और छोटे पुत्र कुश से आमेर एवं मारवाड़ के वंशधर हुए। आमेर व मारवाड़ के शासकों को कुश के वंशधर होने से कुशवाह (कच्छवाहे) नाम हुआ। जैसा श्लोक से स्पष्ट है – ‘यत्स्यो: प्रथमं जात: स कुशैमैत्रसंस्कृतै:।निम्र्माज्र्जनीयो नाम्ना है। भविता कुश इत्यसौ।।
यश्चावरज एवासील्लवणेन समाहित: निर्माज्र्जनीयो वृद्धाभिर्नाम्ना स भविता लव:।।’उद्धृत – वाल्मिकी रामायण- इतिहासकार डॉ. जी.एल. मेनारिया ने इस सम्बन्ध में बताया कि – मेवाड़ के राजवंश पर उपलब्ध साहित्य जिसमें पुराणों, वाल्मिकी रामायण, वेद व्यास कृत श्रीमद् भागवत और इसके साथ कालीदास रघुवंश की वंशावलियों के साथ-साथ मेवाड़ के शिलालेखों और अन्य प्रामाणिक ग्रन्थों के आधार पर यह मत प्रकट किया है कि निश्चय ही मेवाड़ का राजवंश सूर्यवंशी और अयोध्या के राजा रामचन्द्र के वंशधरगण से सम्बन्धित है। इस सम्बन्ध में कर्नल टॉड की प्रसिद्ध पुस्तक राजस्थान का इतिहास – अध्याय 4, पृष्ठ 23 में लिखा है कि इस सम्बन्ध में आमेर के राजा जयसिंह के समय के प्रसिद्ध पं. नरनाथ ने जो सूर्यवंश की एक वंशावली संग्रह की थी, उसमें लिखा है कि अयोध्या के राजवंश में श्रीरामचन्द्र जी के पश्चात् 58वें राजा हुए जिनके पीछे वंशधर में सुमित्र (सुमित) हुआ इसके पश्चात् सूर्यवंश में अनेक राजा हुए थे, वे मेवाड़ के राजवंश में उत्पन्न राणाओं के पूर्व पुरूष थे। – जयपुर के पोथीखाना संग्रह में उपलब्ध प्रसिद्ध पं. नरनाथ की सूर्यवंशावली से स्वत: प्रमाणित होता है कि मेवाड़ का राजवंश ही सूर्यवंशी है और आमेर (जयपुर) के राजवंश को कुशवाहों से सम्बन्धित होना सर्वसिद्ध है। स्मरण रहे कि कर्नल टॉड ने त्रुटिवश राम के पुत्रों में कुश को बड़ा पुत्र माना था और लव को छोटा।
– इतिहास की प्राध्यापिका डॉ. मिनाक्षी मेनारिया ने अपने स्वयं के पी.एच.डी. स्तरीय शोध प्रबन्ध – ‘चित्तौड़ का इतिहास और पुरातात्विक अध्ययन तथा नागदा का ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक सर्वेक्षण’ के आधार पर बताया कि -पुरातात्विक साक्ष्यों के अभाव तथा समकालीन मूल ऐतिहासिक ग्रन्थों के उपलब्ध नहीं होने से राजस्थान के राजवंशों के बारे में जानकारियाँ ख्यातों, चारण साहित्यिक ग्रन्थों व भाटों की कथाओं व मिथकों से भरी पड़ी है, परन्तु डॉ. मिनाक्षी ने अपने शोध में मेवाड़ राजवंश के बारे में प्रामाणिक ग्रन्थों और उपलब्ध पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि मेवाड़ का राजवंश सूर्यवंशी है क्योंकि मेवाड़ के सभी शिलालेखों और ताम्रपत्रों इत्यादि में ‘श्री रामो जयति’, ‘‘श्री एकलिंगजी प्रसादातु’, ‘श्री गणेशाय प्रसादातु’ इत्यादि सम्बोधन से लेख मिलते हैं। जिनसे सिद्ध होता है कि मेवाड़ का राजकुल अयोध्या के राजा रामचन्द्र के कुल इक्ष्वांकु सूर्यवंशी ही है। – डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने भी इस सम्बन्ध में ‘कुमारपाल प्रबन्ध’ ग्रन्थ में उल्लेख किया है कि चित्तौड़ (मेवाड़) का राजा चित्रांगद सूर्यवंशी था।

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