गांधीनगर के राजभवन में कैबिनेट के शपथ ग्रहण में 24 मंत्रियों ने शपथ ली. राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने 10 कैबिनेट मंत्रियों और 14 राज्य मंत्रियों को शपथ दिलाई. इनमें पांच स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री शामिल हैं. राज्य के 17वें मुख्यमंत्री के रूप में सोमवार को शपथ ग्रहण करने वाले भूपेंद्र पटेल राजभवन में आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान रूपाणी के साथ मौजूद थे.
सीएम भूपेंद्र पटेल ने पूरी टीम नई बनाई है. पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी की टीम में शामिल सभी मंत्रियों की छुट्टी कर दी गई है. इनमें डिप्टी सीएम रहे नितिन पटेल भी शामिल हैं. लंबे अर्से से वह भी नाराज चल रहे हैं. शपथ लेने वालों में विधानसभा के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले राजेंद्र त्रिवेदी भी शामिल हैं. नई कैबिनेट में सबसे पहली शपथ त्रिवेदी ने ही ली. माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की टीम में उनका दर्जा नंबर दो का होगा.
शपथ लेने वाले मंत्रियों में राजेंद्र त्रिवेदी, जितेंद्र वघानी, ऋषिकेश पटेल, पूर्णेश कुमार मोदी, राघव पटेल, उदय सिंह चव्हाण, मोहनलाल देसाई, किरीट राणा, गणेश पटेल, प्रदीप परमार, हर्ष सांघवी, जगदीश ईश्वर, बृजेश मेरजा, जीतू चौधरी मनीषा वकील, मुकेश पटेल, निमिषा बेन, अरविंद रैयाणी, कुबेर ढिंडोर, कीर्ति वाघेला, गजेंद्र सिंह परमार, राघव मकवाणा, विनोद मरोडिया और देवा भाई मालवा शामिल हैं.
ध्यान रहे कि भूपेंद्र पटेल की नई कैबिनेट का बुधवार को ही शपथ ग्रहण समारोह होना था, लेकिन पूरी कैबिनेट के बदलाव को लेकर बीजेपी में अंदरूनी कलह बढ़ गई थी. सीएम भूपेंद्र पटेल चाहते थे कि उनकी कैबिनेट में एक-दो चेहरे को छोड़कर तमाम नए चेहरे हों. इसे लेकर नाराजगी भी शुरू हो गई. लेकिन आखिर में चली पटेल की ही. रूपाणी की सारी कैबिनेट को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.
हालांकि, डिप्टी सीएम रहे नितिन पटेल ने शुरू में नाराजगी जताने के बाद अपने तेवर कुछ नरम कर लिए थे. बावजूद इसके उनका भी पत्ता कट गया. वह नई कैबिनेट में शामिल नहीं किए गए. गुजरात की उठापटक को लेकर सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है. विजय रुपाणी अगस्त 2016 में 75 वर्षीय आनंदी बेन पटेल की जगह मुख्यमंत्री बनाए गए थे.
रुपाणी के नेतृत्व में ही भाजपा ने पाटीदार आरक्षण आंदोलन के बावजूद 2017 विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की थी. गुजरात में विधानसभा चुनावों से ठीक एक साल पहले मुख्यमंत्री के पद छोड़ने को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं. लेकिन सूत्रों का कहना है कि बदलाव में संघ ने अहम भूमिका अदा की. मोदी-शाह की नाराजगी भी इसमें बड़ा कारक रही.
बीते छह माह में बीजेपी पांच सीएम को बाहर का रास्ता दिखा चुकी है. इनमें कर्नाटक के सीएम बीएस येदियुरप्पा, असम के सर्वानंद सोनोवाल, उत्तराखंड के त्रिवेंद्र सिंह और तीर्थ सिंह रावत समेत विजय रूपाणी का नाम शामिल है. रूपाणी से पहले तमाम कयासों के बाद येदियुरप्पा को 26 जुलाई को इस्तीफा देना पड़ गया था. इनमें से असम ही एकमात्र सूबा रहा जहां के सीएम सोनोवाल को हटाने के बाद नई जगह यानि केंद्रीय मंत्रिमंडल में एडजस्ट किया गया.
बाकी जो भी सीएम हटाए गए वो सारे फिलहाल खाली बैठे हैं. भाजपा ने 2016 में असम विधानसभा चुनाव सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व में लड़ा. उस समय वे केंद्रीय मंत्री थे. इसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर असम भेजा गया. भाजपा ने पहली बार असम में अपनी सरकार बनाई थी. सोनोवाल पांच साल मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद भी 2021 के चुनावों में पार्टी ने सोनोवाल को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं किया. चुनाव के नतीजे 2 मई को घोषित हुए और इसके बाद हेमंत सरमा का नाम मुख्यमंत्री के तौर पर घोषित हुआ.
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