- Advertisement -
HomeNewsपंजाब में बड़े राजनीतिक बदलाव की ओर कदम बढ़ा रहे हैं मोदी?

पंजाब में बड़े राजनीतिक बदलाव की ओर कदम बढ़ा रहे हैं मोदी?

- Advertisement -

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ऐसे फैसलों के लिए जाने जाते हैं जिस पर बदलाव होगा ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता. लेकिन पिछले कुछ महीनों में देखा जाए तो एक के बाद एक फैसलों पर पुनर्विचार करके उन्हें पलटने पर मजबूर होना पड़ा है. कृषि कानूनों का असर तो है पूरे देश के किसानों पर था लेकिन सबसे अधिक नाराजगी कहीं पर थी तो वह था पंजाब.
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और पंजाब (Punjab) में विधानसभा चुनाव (Assembly elections) होने वाले हैं और उसके ठीक पहले बीजेपी के अंदरूनी सर्वे में सब कुछ ठीक नहीं था. बीजेपी की उत्तर प्रदेश और पंजाब दोनों जगह पर हालत खराब थी. हालांकि पंजाब में तो बीजेपी थी ही नही. लेकिन उत्तर प्रदेश में सरकार जाने का खतरा अधिक था कृषि कानूनों की वापसी को इसी नजरिए से देखा जा रहा है. पंजाब में बीजेपी कहीं भी नहीं है. लेकिन कृषि कानूनों को वापस लेकर एक तरह से बीजेपी ने पंजाब के अंदर बड़ा राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है.
कई राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कृषि कानूनों को वापस लेकर बीजेपी ने पंजाब में बड़ा कार्ड खेला है. जब कृषि कानून पास हो रहे थे उस वक्त अकाली दल बीजेपी के साथ था. लेकिन उसने देखा कि पंजाब में बड़े स्तर पर राजनीतिक नुकसान हो सकता है तो उसने बीजेपी से दूरी बनाते हुए गठबंधन तोड़ दिया था. अब कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया गया है. बीजेपी ने पंजाब के अंदर सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. लेकिन कानूनों की वापसी के बाद कई जगहों पर अंदरूनी तौर पर अकाली दल और बीजेपी की सांठगांठ देखने को मिल सकती है और पूरे पंजाब में बीजेपी की तरफ से यह प्रचारित भी किया जाएगा कि उसने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेकर किसानों को तोहफा दिया है.
कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amarinder Singh) ने बयान दिया है कि कृषि कानूनों को वापस लेकर और माफी मांग कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा दिल दिखाया है. कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी पूरे पंजाब में सदस्यता अभियान चला रही है और निश्चित तौर पर वह पूरे पंजाब में सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी और कैप्टन अमरिंदर सिंह ने यह भी कहा है कि उन्हें अब बीजेपी के साथ जाने में गुरेज नहीं है. तो यह समझा जा सकता है कि या तो खुले तौर पर या अंदरूनी तौर पर पंजाब विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी तथा बीजेपी और अकाली दल गठबंधन के तहत चुनाव लड़ सकते है या तो अंदरूनी गठबंधन या फिर सार्वजनिक तौर पर.
अमरिंदर सिंह ने पहले ही कह दिया है कि उनका पहला लक्ष्य कांग्रेस को पंजाब की सत्ता से दूर करना है. बीजेपी ने उत्तर प्रदेश और पंजाब के विधानसभा चुनाव को देखते हुए ही तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया है, यह अब स्पष्ट हो चुका है. बीजेपी को उत्तर प्रदेश में खोने के लिए बहुत कुछ है लेकिन पंजाब में उसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है पाने के लिए बहुत कुछ है और जिस तरीके से बीजेपी का प्रचार तंत्र है और मीडिया उसके साथ है, यह मानकर चलना चाहिए कि पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान यह प्रचारित किया जाएगा कि प्रधानमंत्री मोदी ने बड़ा दिल दिखाते हुए किसानों के साथ न्याय किया था.
तीनों कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान निश्चित तौर पर पंजाब को भी ध्यान में रखकर किया गया है, ताकि पंजाब के अंदर से किसी भी कीमत पर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया जा सके और बीजेपी को पंजाब में पैर जमाने का मौका मिल सके और बीजेपी को पंजाब में पैर जमाने का मौका कैप्टन अमरिंदर सिंह के जरिए मिलने की उम्मीद दिखाई दे रही है. लेकिन क्या सच में पंजाब की जनता इतनी भोली है और नादान है?
कैप्टन की राजनीति समाप्त कर देगी पंजाब की जनता?
पंजाब की जनता नहीं देख रही है क्या कि, कैप्टन शुरू से ही बीजेपी के केंद्रीय मंत्रियों के नजदीक रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी के नजदीक रहे हैं. कांग्रेस आलाकमान की बातों को दरकिनार करते हुए पंजाब के अंदर जब कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री थे तो अपनी खुद की कांग्रेस चला रहे थे? पंजाब में कांग्रेस को मजबूत करने की जगह कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुद के लिए काम किया, खुद के पद के लिए काम किया, यह बात पंजाब कांग्रेस के कार्यकर्ता नेता तथा वहां की जनता भी भली-भांति जानती है.
राजनीतिक रिटायरमेंट की उम्र में कैप्टन अमरिंदर सिंह नई पार्टी बना कर एक तरह से उन्हीं ताकतों का सपोर्ट कर रहे हैं पंजाब के अंदर, जिनका हमेशा से पंजाब की जनता और कांग्रेस विरोध करती रही है. पंजाब की जनता ने कभी भी आरएसएस की विचारधारा को पंजाब के अंदर पनपने का मौका नहीं दिया और पंजाब की जनता देख रही है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह उन्हीं लोगों को पैर पसारने का मौका दे रहे हैं जिनका पंजाब ने हमेशा विरोध किया. पंजाब की जनता को दिखाई दे रहा है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह इस उम्र में आकर अपरिपक्वता दिखाते हुए राजनीतिक खुन्नस के चलते उस पार्टी को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं जिस पार्टी ने उन्हें बड़े-बड़े पदों से नवाजा. चाहे वह मुख्यमंत्री का पद रहा हो या फिर पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष का पद रहा हो या फिर केंद्र में मंत्री का पद रहा हो, कैप्टन अमरिंदर सिंह को कांग्रेस की तरफ से हर वह चीज मिली जिसके वह हकदार थे.
लेकिन क्या कांग्रेस जिसकी हकदार थी वह कैप्टन अमरिंदर सिंह दे पाए कांग्रेस के कार्यकर्ता के तौर पर? इस उम्र में आकर कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं बल्कि खुद की राजनीति को हाशिए पर रख चुके हैं और आपसी खुन्नस में उन्हें यह चीज अभी समझ में भी नहीं आ रही है. पंजाब ने कभी भी सांप्रदायिक ताकतों को पनपने का मौका नहीं दिया है, यह बात विधानसभा चुनाव के बाद अमरिंदर सिंह को समझ में आ जाएगी. बीजेपी के साथ मिलकर कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी खुद की राजनीति खत्म कर रहे हैं कांग्रेस की नहीं.
पंजाब में बड़े स्तर पर पैर पसारने और राजनीतिक लाभ लेने की उम्मीद में और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने की उम्मीद में भले ही तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर दिया हो. लेकिन पूरे पूरे देश का किसान जानता है, पंजाब और उत्तर प्रदेश के वह किसान जानते हैं, जो कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे कि, यह कानून खुद प्रधानमंत्री मोदी की सरकार लेकर आई थी और अगर वापस लिया है दबाव में तो कोई एहसान नहीं किया है.
कृषि बिलों की वापसी के बाद पंजाब में कांग्रेस की स्थिति?
जहां एक तरफ तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के ऐलान के बाद बीजेपी इस उम्मीद में है कि उसे पंजाब में पैर पसारने का मौका मिलेगा कैप्टन अमरिंदर सिंह के जरिए और अकाली दल के साथ अंदरूनी साठगांठ के जरिए तो दूसरी तरफ यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या अब पंजाब के अंदर कांग्रेस अपनी सरकार बचा पाएगी? क्या दलित को मुख्यमंत्री बनाने का लाभ पंजाब के अंदर कांग्रेस को चुनावी जीत के रूप में मिलेगा या फिर अंदरूनी लड़ाई का नुकसान होगा कृषि बिलों की वापसी के बाद?
एक तरह से देखा जाए तो पंजाब के किसानों को और पंजाब की जनता को यह भली-भांति पता है कि तीनों कृषि बिल केंद्र की मोदी सरकार लेकर आई थी और उस सरकार में अकाली दल भी गठबंधन दल के रूप में शामिल थी, भले ही राजनीतिक नुकसान को भांपते हुए बाद में गठबंधन तोड़ लिया हो. पंजाब की जनता को पता है कि जिस बिल का वह लगभग 1 साल से विरोध कर रहे थे और लगभग 700 से अधिक किसानों ने अपनी शहादत दी है इस बिल के विरोध में, वह बिल उसी प्रधानमंत्री के नेतृत्व में आया था जिस प्रधानमंत्री ने वापस लेने का ऐलान किया है. पंजाब की जनता जानती है कि बिल यही लोग लेकर आए थे तो वापस भी अगर यही लोग कर रहे हैं तो फिर यह किसी तरीके का उपकार नहीं किया है इन्होंने किसानों पर.
पंजाब के अंदर बीजेपी को कोई बड़ा राजनीतिक लाभ खुद के दम पर या फिर अकाली दल और कैप्टन अमरिंदर सिंह के सहारे मिल जाएगा इसकी संभावना बहुत ही कम दिखाई देती है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) शायद बहुत पहले से ही इस बात का अंदाजा लगा चुके थे कि कैप्टन कांग्रेस के लिए वफादार नहीं है. अमरिंदर सिंह कभी भी राहुल गांधी की बातों को सीरियसली नहीं लेते थे. राहुल गांधी के फैसलों को शायद ही वह मानते हो. क्योंकि वह हर बात के लिए सोनिया गांधी से ही मिलते थे और शायद राहुल गांधी भी उम्र का लिहाज करके उन पर अपने फैसले थोपते नहीं थे. लेकिन उन्हें अंदाजा था कि अमरिंदर कांग्रेस के लिए वफादार नहीं है और यह बात कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नई पार्टी बना कर और बीजेपी से हाथ मिलाने के संकेत देकर साबित भी कर दिया.
राहुल गांधी ने पंजाब को लेकर बिल्कुल सही फैसला लिया है यह बात कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुद साबित कर दी. कैप्टन अमरिंदर सिंह और सिद्धू के बीच जो आपसी खींचतान चली उस खींचतान का कितना राजनीतिक नुकसान विधानसभा चुनाव में होगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री के पद से हटाने का फैसला बिल्कुल सही था यह बात खुद कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाद के फैसलों ने साबित कर दी. आम आदमी पार्टी के पास मुख्यमंत्री के लिए कोई चेहरा पंजाब के अंदर नहीं है जो अपने करिश्माई नेतृत्व के दम पर पंजाब के अंदर आम आदमी पार्टी को बहुमत मिला दे.
मीडिया प्रचार के जरिए जरूर आम आदमी पार्टी को टक्कर में दिखाया जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत इस बात से कोसों दूर है. हां आपसी खींचतान से कांग्रेस की स्थिति थोड़ी कमजोर जरूर हुई है. लेकिन ऐसी बिल्कुल नहीं है कि वह सत्ता में वापसी ना कर सके. कृषि बिलों की वापसी से बीजेपी को नहीं बल्कि कांग्रेस को पंजाब के अंदर लाभ मिलेगा. क्योंकि राहुल गांधी लगातार किसानों के समर्थन में आवाज उठा रहे थे और राहुल गांधी तो किसान आंदोलन से पहले ही ट्रैक्टर रैली के माध्यम से इन बिलों का विरोध कर चुके थे.
कृषि कानूनों की वापसी का सीधा लाभ बीजेपी को नहीं बल्कि कांग्रेस को मिलेगा. क्योंकि यह एक तरह से कांग्रेस अपनी जीत की तौर पर प्रचारित करेगी और ऐसा होना भी चाहिए. क्योंकि राहुल गांधी लगातार इन बिलों के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे और किसानों का समर्थन कर रहे थे. कांग्रेस पंजाब विधानसभा चुनाव के अंदर यह प्रचारित करने की कोशिश करेगी कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों काले कानूनों का विरोध उसने सड़क से लेकर संसद तक किया है और यह हकीकत भी है जो देश ने देखा है.
The post पंजाब में बड़े राजनीतिक बदलाव की ओर कदम बढ़ा रहे हैं मोदी? appeared first on THOUGHT OF NATION.

- Advertisement -
- Advertisement -
Stay Connected
16,985FansLike
2,458FollowersFollow
61,453SubscribersSubscribe
Must Read
- Advertisement -
Related News
- Advertisement -