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देश नहीं बिकने दूंगा, कहकर देश बेच रही मोदी सरकार

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ताजा खबरों के अनुसार मोदी सरकार 109 रुटों पर 218 सुपरफास्ट लग्जरी ट्रेनों का संचालन निजी हाथों में सौंपने जा रही है.
पिछले वर्ष IRCTC ने दिल्ली-लखनऊ तेजस एक्सप्रेस को निजी हाथों में सौंपकर “वंदेभारत” प्रोजेक्ट की शुरूआत का थी, अब उसी का विस्तार किया जा रहा. इससे पहले सरकार कई रेल्वे स्टेशन, हवाई अड्डे, सरकारी उपक्रम और ऐतिहासिक धरोहरें भी निजी हाथों में सौंप चुकी है.
परंतु सवाल ये है कि जहां सरकार को घाटा हो, उन्हें बेचने या लीज पर देने की जगह मोदी सरकार लगातार फायदा देने वाले हिस्सों को निजी हाथों में सौंप रही है.  *ऐसा क्यों?* क्योंकि इन्वेस्टर्स को भी न तो मोदी सरकार की नीति पर और ना ही नीयत पर कोई भरोसा है, अत: वो सिर्फ उन्हीं प्रोजेक्टस पर हाथ डाल रहे जहां उन्हें फायदा मिलने की गारंटी और मनमानी की पूरी छूट हो.
देश में मोदी सरकार की विफलताएं
मोदी सरकार के 6 वर्षों से ज्यादा के कार्यकाल में देश के अंदर भारी उथल-पुथल हुई है, जिससे न सिर्फ देश का आर्थिक आधार नष्ट हुआ है, बल्कि शैक्षेणिक, स्वास्थय सुविधाएं भी चरमरा गई हैं और समाजिक ताना-बाना भी बुरी तरीके से बिखरा है. आज देश के हाल ये हैं कि
ना तो नये रोजगार पैदा हो रहे, उल्टे पहले के भी बंद होते जा रहे.
ना नारों और घोषणाओं से इतर कोई योजना पूरी हो रही है.
ना तो देश में कानून-व्यवस्था ढंग से लागू है.
ना ही भ्रष्टाचार पर कोई अंकुश है, ना भ्रष्टों को कोई भय.
ना तो नारी सम्मान और सुरक्षा के विषय में सरकार गंभीर है.
ना बढ़ते बाल अपराधों और बाल श्रमिकों पर कुछ हो रहा.
ना ही बढ़ती धार्मिक व जातीय वैमन्सयता पर रोक लग रही
ना ही मंहगाई पर सरकार का काबू है और ना ही कालाबाजारी.
ना ही लोगों के कल्याण की कोई योजना या दृष्टिकोण सरकार के पास है.
इसके उल्ट शिक्षा और स्वास्थय में भारत अग्रणी था, उसका बंटाधार करके रख दिया मोदी सरकार ने.
विदेशों में मोदी सरकार की विफलताएं
यूं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पद संभालने के तुरंत बाद से ही लगातार जरूरी-गैरजरूरी विदेश यात्राएं की हैं, जिन्हें राष्ट्रीय-अतंर्राष्ट्रीय मीडिया में खूब फुटेज मिली और जो वैश्विक स्तर पर सराही गयीं. लेकिन इसके बावजूद मोदी सरकार के विदेश से संबंधों में निकटता की जगह लगातार कटुता आती गई. आज हालत ये है कि
भारत की विदेश नीति व कूटनीति पूरी तरह से विफल हो रही है.
समस्त पड़ोसियों से अनबन, विवाद चल रहा है.
भारतीय सीमाओं पर लगातार अशांति बनी हुई है तनाव कम होने की जगह बढ़ता ही जा रहा है.
रुपया लगातार गिराता जा रहा है, और रोकथाम के उपाय नहीं हैं.
पेट्रो उत्पादों की लगातार मूल्य वृद्धि, जबकि कच्चा तेल सस्ता हो रहा हैं.
अनेक घोषणाओं के बावजूद कोई भी प्रोजेक्ट न पूरा होना (राफेल, बुलेट ट्रेन इत्यादि)
विदेशों में भारतीयों के लिए घटते अवसर, घटती मांग.
विदेशी निवेसकों द्वारा भारत में निवेश न करना, बल्कि पुराने निवेशों से भी हाथ खींचना.
विदेशी पर्यटकों के आगमन में लगातार कमी.
ऐसे में सवाल ये है कि आखिर सरकार कर क्या रही है? तो जवाब है सरकार सिर्फ अपना प्रचार करके, पूरे देश के राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों में अपनी सरकार बनवाने का कार्य कर रही है. चाहे इसके लिए लोकतंत्र की हत्या करनी पड़े या संविधान का अनादर. इसके अतिरिक्त सरकार सुनियोजित तरीके से इंटरनेट के जरिए लगातार युवा पीढ़ी को झूठा इतिहास और फर्जी कहानियां पढ़ा-सुना कर उन्हें धार्मिक कट्टरता और नफरत की आग में झोंक रही. जिससे धर्म की अफीम में डूबा युवा सरकार से प्रश्न करने के, अपने हक मांगने के काबिल ही न बचे.
जब इतना बिजी लक्ष्य हो सरकार का तो मोदी सरकार देश का सही संचालन और विदेशों का उचित ढंग से साधन कैसे कर पायेगी भला? इसी कुप्रबंधन से खाली हुए सरकारी खजाने को भरने के लिए मोदी सरकार कभी नोटबंदी करती है, तो कभी ऊटपटांग ढंग से जीएसटी लगाती है. परंतु ये तो वन टाइम वंडर थे, इसलिए लगातार पेट्रो उत्पादों को जीएसटी से बाहर रखकर उनमें एक्साइज शुल्क बढ़ाया जा रहा और मुनाफे वाले क्षेत्रों को निजी हाथों में बेचा या लीज पर दिया जा रहा.
*कैसे भी करके जबतक पैसे आएंगे*
*तब तक देश को सिर्फ उल्लू बनाएंगे*
*जब पूरी तरह बर्बाद कर देंगे भारत*
*फकीर आदमी झोला ले चले जाएंगे*
( यह लेखक के निजी विचार है )

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