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किसानों के खिलाफ मोदी सरकार और मीडिया की सांठगांठ का हुआ पर्दाफाश.

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मोदी सरकार द्वारा लागू किए गए कृषि बिल के खिलाफ पूरे देश में किसान सड़कों पर हैं. किसान अपनी मांगों को लेकर जो भी आंदोलन कर रहे हैं उनमें वो पुलिसिया बर्बरता का शिकार हो रहे हैं, सरकार लगातार किसानों की आवाज कुचलने का प्रयास कर रही है.
किसानों का आंदोलन जो अब पूरे देश में उग्र रूप ले चुका है, ऐसे वक्त में मोदी सरकार और मीडिया की सांठगांठ का खुलासा खुद मीडिया का रवैया कर रहा है. सरकार के आगे घुटने टेक चुके मीडिया घरानों के साथ-साथ उन में काम करने वाले पत्रकार भी किसानों के समर्थन में और सरकार के खिलाफ एक शब्द अपने मुंह से नहीं निकाल पा रहे हैं. सवाल यह उठता है कि 2014 से पहले देश के अंदर एक छोटी से छोटी आवाज को तवज्जो देने वाली मीडिया आज मोदी सरकार के सामने घुटने के बल रेंग क्यों रही है?
अन्ना हजारे का देशव्यापी आंदोलन हो या फिर निर्भया कांड! मीडिया ने उस समय की डॉ0 मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ था. जबकि बाद में अन्ना हजारे के साथ RSS व भाजपा की सांठगांठ का खुलासा भी हुआ था, लेकिन लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. डॉ0 मनमोहन सिंह की सरकार गिर चुकी थी और मोदी सरकार को देश का समर्थन मिल चुका था.
मोदी का मीडिया मैनेजमेंट
मोदी के चेहरे को चमकाने में भारतीय मीडिया का बहुत बड़ा रोल रहा है. मोदी की बड़ी से बड़ी नाकामी को भारतीय मीडिया एक झटके में छुपा कर विपक्ष को और देश की आम जनता को बदनाम करने का तरीका निकाल लेती है. पिछले कुछ समय में देखा गया है कि इस सरकार की नीतियों का विरोध करने वालों को सरकार की शह पर मीडिया द्वारा देशद्रोही और विदेशी संगठनों के हाथ की कठपुतली करार देने में एक पल का भी समय नहीं लगा है.
NRC, CAA हो या फिर गुजरात में हार्दिक पटेल का आंदोलन हो या फिर उत्तर प्रदेश में हाथरस कांड के बाद सरकार का विरोध हो, मौजूदा दौर में भारतीय मीडिया ने आम जनता के पक्ष में बिल्कुल भी आवाज नहीं उठाई है. आम जनता का साथ देते हुए सरकार से सवाल वर्तमान में भारतीय मीडिया करते हुए कभी भी नजर नहीं आती है. मौजूदा भारतीय मीडिया ने अगर किसी मुद्दे पर सवालिया निशान खड़े भी किए हैं तो कटघरे में सरकार और सरकार में शामिल बड़े चेहरों को खड़ा करने की जगह किसी सरकारी अफ़सर पर ठीकरा फोड़ दिया और सरकार को साफ निर्दोष बता कर बचा ले गई है.
किसान आंदोलन से एक्सपोज हुई मीडिया और सरकार की सांठगांठ
देश में किसानों का आंदोलन लगातार बढ़ता जा रहा है, किसानों का कहना है कि जब तक सरकार उनकी मांगे नहीं मानती तब तक वह यूं ही सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करते रहेंगे और यह प्रदर्शन लगातार बड़ा होता जाएगा. सरकार किसानों को लिखित आश्वासन देने की जगह किसानों के सामने देश के ही जवानों को खड़ा करके अपनी घटिया नीति का लगातार प्रदर्शन कर रही है. ऐसे वक्त में भारतीय मीडिया से उम्मीद थी कि वह अपनी रीढ़ सीधी करके किसानों का साथ देगा, लेकिन ऐसे वक्त में भी मीडिया सरकार के सामने नतमस्तक होकर ठकुर सोहाती गाती ही नजर आ रही है.
बड़े-बड़े मीडिया चैनलों पर दावे किए जा रहे हैं कि किसानों को विपक्ष के द्वारा भड़काया जा रहा है, लेकिन मीडिया चैनलों द्वारा यह नहीं कहा जा रहा है कि अगर विपक्ष भड़काने में कामयाब हो जा रहा है तो फिर सरकार क्या कर रही है? सरकार किसानों को भरोसे में क्यों नहीं ले पा रही है? किसानों के प्रदर्शन को विपक्ष की साजिश करार देने वाली मीडिया यह बताने में नाकामयाब है कि मोदी अगर देश का सबसे विश्वस्त चेहरा है तो फिर किसान मोदी की बातों पर भरोसा क्यों नहीं कर पा रहे हैं? मीडिया द्वारा कहा जा रहा है कि सिर्फ पंजाब के ही किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि बाकी देश के किसान शांत हैं.
तो फिर मीडिया यह बताने में कामयाब क्यों नहीं हो पा रही है कि फिर पंजाब के साथ-साथ हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान क्यों सरकार का विरोध करते हुए सड़कों पर उतर चुके हैं? मीडिया पूरे देश को यह क्यों नहीं बता पा रही है कि बड़े किसानों की तादाद पूरे देश से कहीं ज्यादा सिर्फ पंजाब और हरियाणा में ही है? जबकि उद्योगों की कंपनियां भी बड़ी संख्या में पंजाब, हरियाणा में हैं. मीडिया देश की जनता को गुमराह करने की जगह यह क्यों नहीं बता रही है कि देश की सबसे बड़ी कृषि आबादी और बड़े किसान सिर्फ हरियाणा और पंजाब से ही आते हैं तो फिर दूसरे प्रदेशों के छोटे किसानों की आड़ में छुप कर मौजूदा भारतीय सरकार और मीडिया पंजाब और हरियाणा के बड़े किसानों की आवाज क्यों कुचलना चाह रही है?
सरकारी मीडिया और सरकारी पत्रकार

मीडिया उन्हीं मुद्दों को तवज्जो देती है जिससे मौजूदा मोदी सरकार को फायदा हो. जिन मुद्दों से मौजूदा मोदी सरकार को नुकसान होता हुआ दिखता है उन मुद्दों के पीछे विपक्ष और विदेशी साजिश करार देने से भारतीय मीडिया पीछे नहीं हटती है. मौजूदा किसानों के आंदोलन को भारतीय मीडिया खालिस्तान समर्थक आंदोलन तक बता रही है. क्या भारतीय मीडिया को शर्म नहीं आ रही है खुद के ही देश के किसानों को देश विरोधी बताते हुए, आतंकवादी संगठनों के हाथ की कठपुतली बताते हुए? क्या मौजूदा सरकार को भी शर्म नहीं आ रही है कि वह मौजूदा मीडिया पर लगाम लगाएं? क्या मौजूदा सरकार खुद की नाकामी को छुपाने के लिए खुद के ही देश के किसानों की बदनामी देखती रहेगी?
सरकारी पत्रकार के नाम से बदनाम रजत शर्मा तो किसानों के मुद्दे पर और भी ज्यादा गिरे हुए नजर आए. रजत शर्मा ने अपने कार्यक्रम आज की बात में भारतीयता और किसानों के सम्मान को तार-तार करते हुए मौजूदा सरकार की चापलूसी में गिरते हुए यहां तक कह दिया कि किसान और पुलिस के झगड़े से विपक्षी पार्टियां खुश हैं, विपक्षी पार्टियों ने किसानों को सड़कों पर लाठी डंडे खाने के लिए भेजा हुआ है. रजत शर्मा ने बताया कि विपक्षी पार्टियों ने हरियाणा और पंजाब के सभी किसानों को सड़कों पर लाठी डंडा खाने के लिए भेजा हुआ है, इसीलिए किसानों का टकराव पुलिस से हो रहा.
लेकिन सरकारी पत्रकार रजत शर्मा ने एक बार भी अपने कार्यक्रम के माध्यम से सरकार की चरण वंदना करते हुए यह नहीं बताया कि अगर हरियाणा और पंजाब के तमाम किसानों को विपक्ष ने ही भेजा हुआ है तो फिर सरकार उन पर पुलिसिया कार्रवाई करने की बजाय उनसे बात क्यों नहीं कर रही है? प्रधानमंत्री मोदी खुद को किसानों का हितैषी बताते हैं तो अपने तमाम कार्यक्रमों को स्थगित कर के प्रधानमंत्री मोदी खुद आगे बढ़कर किसानों के बीच जाकर उनसे बात करके उनको लिखित आश्वासन देकर, किसानों को उनके घर वापस क्यों नहीं भेज रहे हैं? क्या सरकारी पत्रकार रजत शर्मा को बिल्कुल शर्म नहीं आती? आप विपक्ष पर सवाल उठा रहे हैं ठीक है, लेकिन विपक्ष पर उठाए गए सवालों की आड़ में सरकार को बचाने से क्या फायदा हो रहा है? किसानों को बदनाम करने से क्या फायदा हो रहा है?
मोदी के पीआर रजत शर्मा
सरकारी पत्रकार रजत शर्मा अपनी सरकार से यह अपील क्यों नहीं कर रहे हैं कि विपक्ष को प्रधानमंत्री पूरी तरीके से एक्सपोज कर दें, किसानों के बीच जाकर और उनको लिखित आश्वासन देकर? किसानों को अगर भरोसा नहीं हो रहा है सरकार पर और किसान अगर विपक्ष की बातों पर ही भरोसा कर रहे हैं, विपक्ष के बहकावे में ही आ रहे हैं, तो फिर प्रधानमंत्री मोदी इस देश की सबसे भरोसेमंद आवाज कैसे हुए? यह पत्रकार कम सरकारी प्रवक्ता रजत शर्मा जैसे लोगों को अपने चैनलों के माध्यम से देश की जनता को बताना चाहिए.
अन्ना हजारे आंदोलन और निर्भया कांड के बाद उग्र हुए आंदोलन के पीछे किसकी साजिश थी, यह तो कभी रजत शर्मा जैसे पत्रकारों ने नहीं बताया. यह रजत शर्मा वही हैं जो अपने कार्यक्रम आप की अदालत के माध्यम से डॉ0 मनमोहन सिंह की सरकार के खिलाफ एक एजेंडे के तहत काम कर रहे थे, यह रजत शर्मा वही हैं जिन्होंने अपनी कार्यक्रम आप की अदालत में उस समय कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बुलाकर झूठ बोला था कि नरेंद्र मोदी कुंवारे हैं और देश के मोस्ट फैबुलस बैचलर हैं और उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनकी बात पर सहमति जताई थी.
रजत शर्मा तो अपने कार्यक्रमों के माध्यम से झूठ की फैक्ट्री चलाने का काम करते हैं और भाजपा की प्रचार एजेंसी की तरह काम करते हैं. रजत शर्मा के ही कार्यक्रम आप की अदालत में देश के बड़े व्यापारी और भाजपा समर्थक रामदेव यादव ने कहा था कि अगर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो पेट्रोल ₹30 लीटर मिलेगा और डीजल हम निर्यात करने लग जाएंगे, यानी डीजल का उत्पादन हम खुद करने लग जाएंगे.
रामदेव यादव ने सरकारी पत्रकार रजत शर्मा के माध्यम से यहां तक कह दिया था कि अगर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो पाकिस्तान तो छोड़ो चीन भी थरथर कापेगा. भाजपा से उसका प्रचार करने का कॉन्ट्रैक्ट लिए हुए पत्रकार और मीडिया घराने आखिर कब तक इस देश के किसानों पर हो रहे सरकारी जुल्म पर अट्ठास करेंगे? कब तक यह सरकारी पत्रकार देश की जनता को देशद्रोही, पाकिस्तानी और आतंकवादी संगठनों के इशारे पर बोलने वाला बताएंगे?
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