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महाराष्ट्र में मीडिया से लेकर संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति तक बेनकाब हुए हैं

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महाराष्ट्र कि राजनीती दिलचस्प मोड़ पर है. हर दिन, हर घंटे में अलग अलग समीकरण बनते हुए नजर आ रहे हैं. भाजपा को सबसे पहले राज्यपाल ने मौका दिया था सरकार बनाने का और मौका 11 नवंबर तक का दिया था. भाजपा ने सरकार बनाने में अपने आप को असहाय बताया.

इसके ठीक बाद महाराष्ट्र के राज्यपाल ने शिवसेना को सरकार बनाने का मौका दिया, लेकिन यह मौका सिर्फ कुछ घंटों का ही राज्यपाल द्वारा शिवसेना को दिया गया. अब यहां सवाल यह उठता है कि क्या संवैधानिक पदों पर बैठे हुए व्यक्तियों का इस्तेमाल भाजपा राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने के लिए कर रही है?

महाराष्ट्र के दिलचस्प राजनीतिक उठापटक के बीच मीडिया से लेकर संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति तक बेनकाब हुए हैं.

अगर महाराष्ट्र में भाजपा का मुख्यमंत्री नहीं बना तो राज्यपाल का इस्तेमाल कर रही है भाजपा? भाजपा को महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा सरकार बनाने के लिए अधिक समय दिया गया और शिवसेना को सिर्फ कुछ घंटों का ही समय दिया गया आखिर यह दोहरा रवैया क्यों?

इसके अलावा पिछले कुछ राज्यों की घटनाओं पर नजर डालें तो कर्नाटक सबसे पहले जेहन में आता है, येदियुरप्पा को सरकार बनाने के लिए कर्नाटक में कर्नाटक के राज्यपाल ने 15 दिन का समय दिया था. महाराष्ट्र में भी भाजपा को कम समय नहीं मिला था सरकार बनाने के लिए, लेकिन भाजपा सरकार नहीं बना पाई, लेकिन इसके ठीक उलट सिर्फ कुछ घंटों का समय शिवसेना को दिया जाना यह कहां तक तर्कसंगत और उचित है?

क्या इससे यह पता नहीं चलता कि, भाजपा राज्यपाल के सहारे या यूं कहें कि राज्यपाल का इस्तेमाल करके अपनी मनमर्जी चला रही है महाराष्ट्र में?

शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के सहारे सरकार बनाने का दावा कर रही थी, लेकिन एनसीपी और कांग्रेस ने अभी और समय मांगा शिवसेना को समर्थन देने से पहले. इसके बाद शिवसेना ने राज्यपाल से सरकार बनाने के लिए कुछ और समय दिए जाने की मांग की जिस को महाराष्ट्र के राज्यपाल ने सिरे से खारिज कर दिया. इसको क्या कहा जाए? क्या राज्यपाल अधिक समय सिर्फ भाजपा को ही देंगे दूसरी पार्टियों को नहीं मिलेगा पर्याप्त समय सरकार बनाने के लिए, बहुमत जुटाने का?

संवैधानिक पदों पर बैठे हुए व्यक्तियों यानी लगातार राज्यपाल के पद की साख संदेह के घेरे में नजर आ रही है. राज्यपाल के अलावा अगर कोई सबसे ज्यादा बेनकाब हुआ है तो वह है भाजपा की प्रचार एजेंसी मीडिया.

पिछले कुछ सालों में देखने को मिला है कि बहुमत से बहुत ज्यादा दूर होने के बावजूद भाजपा ने कई राज्यों में सरकारें बना ली है. दूसरी पार्टियों के विधायकों को तोड़कर उनका समर्थन हासिल करके अनेक राज्यों में भाजपा ने सरकार बनाई है. गोवा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. जब भाजपा ने गोवा में सरकार बनाई थी उस समय भाजपा की प्रचार एजेंसी मीडिया ने इसे भाजपा का और प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का मास्टर स्ट्रोक बताया था.

गोवा के अलावा अगर दूसरे राज्यों की बात करें तो बिहार से लेकर हरियाणा तक कश्मीर से लेकर कर्नाटक तक अनेक ऐसे राज्य हैं जहां भाजपा ने लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाते हुए जनता के मतों का अपमान करते हुए सरकार बनाई है. उस समय मीडिया ने इसे मास्टर स्ट्रोक बताया था, लेकिन इसके ठीक उलट महाराष्ट्र में शिवसेना के भाजपा से अलग हो जाने पर और दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाने के संकेत पर मीडिया नैतिकता का ज्ञान दे रही है.

बिहार में नीतीश कुमार ने महागठबंधन में शामिल होकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. महागठबंधन ने बिहार के अंदर भाजपा को बुरी तरीके से हराया था. कुछ समय तक नीतीश कुमार ने महागठबंधन के नेतृत्व में सरकार चलाई, लेकिन बाद में महागठबंधन को छोड़कर भाजपा से हाथ मिला लिया और आज भाजपा के नेतृत्व में सरकार चला रहे हैं. मीडिया उसे भाजपा का मास्टर स्ट्रोक बताती रही थी. मीडिया ने एक बार भी दूसरे राज्यों में अनैतिक तरीके से बनाई गई भाजपा की सरकारों पर नैतिकता का प्रवचन नहीं दिया, लेकिन जैसे ही महाराष्ट्र में भाजपा के हाथों से सत्ता जाती हुई मीडिया को दिखी मीडिया तुरंत लोकतंत्र की दुहाई और नैतिकता का प्रवचन देने लगी.

आज अनेक जगह देखने को मिल जाता है कि जो मीडिया में एंकर है पत्रकार हैं वह खुलकर भाजपा का समर्थन करते हुए दिख जाते हैं, होना चाहिए हर व्यक्ति किसी न किसी पार्टी का समर्थक होता है, लेकिन जब व्यक्ति पब्लिक डोमेन में हो जनता के मुद्दों को उठाने की जगह पर हो उस समय खुलकर किसी पार्टी का समर्थन करना उसकी गलतियों पर पर्दा डालना यह कहां तक उचित है ?

कई तथाकथित बड़े पत्रकार और तथाकथित सर्वश्रेष्ठ न्यूज़ चैनल लगातार भाजपा के पक्ष में खबरें दिखाते रहे हैं, भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाते रहे हैं. लेकिन जैसे ही भाजपा की सरकार महाराष्ट्र में जाती हुई दिखी इन पत्रकारों को और मीडिया चैनलों को मानो सांप सूंघ गया हो और नैतिकता और लोकतंत्र की दुहाई देने लगे हैं.

राज्यपाल ने शिवसेना को झटका देने के बाद NCP को सरकार बनाने के लिए न्योता दिया है. देखते है आगे और महाराष्ट्र की राजनीती कितनी दिलचस्प होती है. लेकिन भाजपा की असलियत सामने आ चुकी है और राज्यपाल की साख सवालों के घेरे में आगयी है. मिडिया भी बेनकाब हो चुका है पूरी तरह.

यह भी पढ़े : महाराष्ट्र में जारी घमासान से यह बात साबित होती है कि हिंदुत्व के नाम पर भाजपा का असल मकसद सत्ता के शीर्ष पर बने रहना है.

Thought of Nation राष्ट्र के विचार
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