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HomeRajasthan NewsSikar newsपत्रिका मुद्दा: 30 प्रतिशत आरक्षण से 33 फीसदी भागीदारी दूर की कौड़ी

पत्रिका मुद्दा: 30 प्रतिशत आरक्षण से 33 फीसदी भागीदारी दूर की कौड़ी

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आशीष जोशी
सीकर. प्रदेश की पुलिस भर्ती में महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है, लेकिन इससे पुलिस नफरी में महिलाओं की 33 फीसदी भागीदारी हासिल करने में सालों लग जाएंगे। दरअसल, वर्तमान में 30 प्रतिशत महिला पुलिसकर्मी भर्ती होने मात्र से पहले से पुरुष प्रधान पुलिस बेड़े में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकता। इससे पहले वाली कमी पूरी नहीं हो सकती। केंद्रीय गृह मंत्रालय की एडवाइजरी के अनुसार राज्य सरकार को पुरुष पुलिसकर्मियों के रिक्त पदों को परिवर्तित करके महिला कांस्टेबलों और उप निरीक्षकों के अतिरिक्त पद सृजित करने चाहिए। बिहार पुलिस ने ऐसा ही किया। वहां पुलिस भर्ती में महिलाओं का आरक्षण भी 35 फीसदी है। बिहार पुलिस में 15 वर्षों में 60 हजार से ज्यादा नियुक्तियां की गई हैं। इसी साल हुई भर्ती में चयनित अभ्यर्थियों में 43 फीसदी संख्या महिला सिपाहियों की है। गौरतलब है कि बिहार पुलिस बेड़े में 25.3 फीसदी महिला पुलिस है, जबकि राजस्थान में महिला पुलिस का आंकड़ामहज 9.80 प्रतिशत है। केंद्र सरकार ने 2009 में पुलिस में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 33 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया था।
बीपीआरएंडडी ने भी जताई चिंतासशस्त्र पुलिस सहित देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए कुल स्वीकृत पुलिस बल 26,23,225 हैं। जिसमें से 5,31,737 पद अभी भी खाली हैं। पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (बीपीआरएंडडी) की 2020 तक की रिपोर्ट में बताया गया है कि पुलिस विभाग में महिलाओं की संख्या कम होने से महिला अपराधों से निपटने में गंभीर चुनौतियां सामने आ रही हैं।
ग्राउंड रियलिटी : महकमे का इन्फ्रास्ट्रक्चर व हथियार वीमन फ्रेंडली नहींएक महिला पुलिस अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि ये पेशा पुरुषों के लिए बना था, इसलिए पुलिस की नीतियां, इंफ्रास्ट्रक्चर व हथियार पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाए गए। जब महिलाएं इस पेशे में आने लगी तो उनके मुताबिक माहौल को ढालने की जरूरत है। बैरक, शौचालय व पुलिस वाहन के अलावा हथियार और बुलेट प्रूफजैकेट…सभी पुरुषों के हिसाब से निर्मित हैं। बुलेट प्रूफ जैकेट काफी भारी होते हैं और वो कई बार महिलाओं को फिट नहीं होते। बॉडी प्रोटेक्टर भी पुरुषों के शरीर के मुताबिक बने होते हैं। कई हथियार इतने भारी होते हैं कि उनकी कलाई, कमर और कंधे दर्द होने लगते हैं। थानों में महिला पुलिस कार्मिकों के लिए आवास, चिकित्सा सुविधाओं व विश्रामगृहों का भी प्रावधान है, लेकिन जमीनी हकीकत उजली नहीं है।एक्सपर्ट व्यू : आत्मविश्वास के साथ बदल रहा पुलिस का चेहरामैं जैसलमेर जिले के एक छोटे से गांव से आती हूं। गौरवान्वित महसूस करती हूं कि इस सरहदी जिले की मैं पहली महिला पुलिस अधिकारी हूं। मैं 1998 में बतौर उप निरीक्षक भर्ती हुई। दरअसल, हमारे गांव में 1984 में टीवी आया था। मैं उस वक्त किरण बेदी को टीवी पर देखा करती थी। उनसे इतनी प्रेरित हुई कि 1988 में उन्हें चि_ियां लिखने लगी। वे भी जवाब देती। उन्होंने मुझे पुलिस में आने के लिए खूब प्रेरित किया। आज राजस्थान पुलिस में मेरी 25 साल की नौकरी हो चुकी है। समाज से लेकर पुलिस तक में बदलाव आ रहा है। धीरे-धीरे ही सही, लेकिन पुलिस में आत्मविश्वास के साथ महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है।चेतना भाटी, उपाधीक्षक, अभय कमांड उदयपुर

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