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मोदी सरकार से बातचीत की पेशकश किसानों ने क्यों ठुकराई, जानिए यहां

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कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलित किसान संगठनों ने शर्तों के साथ बातचीत की केंद्र सरकार की पेशकश ठुकरा दी है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ओर से वार्ता का न्योता दिया गया था, जिसमें 3 दिसंबर से पहले बातचीत के लिए किसानों को दिल्ली-हरियाणा के बॉर्डर से हटकर बुराड़ी के निरंकारी ग्राउंड जाने को कहा गया था.
इसको लेकर किसान संगठनों ने रविवार सुबह बैठक की. बैठक के बाद किसान नेताओं ने कहा कि सरकार को बिना किसी शर्त के खुले दिल से बातचीत का आमंत्रण देना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रविवार को मन की बात कार्यक्रम में कृषि कानूनों का समर्थन किया था. उन्होंने कहा था कि इन कानूनों ने किसानों के लिए संभावनाओं और अवसरों के लिए नए द्वार खोल दिए हैं.
किसान संगठनों ने 7 सदस्यीय कमेटी बनाई है, जिसमें स्वराज इंडिया के प्रमुख योगेंद्र यादव भी शामिल हैं. किसान नेताओं ने कहा कि सरकार हम पर बातचीत के लिए शर्तें थोप रही है, लिहाजा वह दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर ही प्रदर्शन करते रहेंगे. सरकार को यह सोचना बंद कर देना चाहिए कि यह वार्ता किसानों को नए कानूनों का लाभ बताने के लिए हो रही है. उन्हें एक प्रस्ताव किसान नेताओं के सामने रखना चाहिए.
किसान नेताओं का कहना है कि पूरे शहर में पुलिस बलों की तैनाती के साथ दहशत और भय का माहौल किसानों और दिल्ली की जनता के लिए कायम किया जा रहा है. किसानों को डर है कि बुराड़ी का (Burari) निरंकारी ग्राउंड को जेल में तब्दील किया जा सकता है. यह आशंका दिल्ली पुलिस (Delhi Police) के उस अनुरोध के बाद पनपा था, जिसमें स्टेडियम को जेल में बदलने की मांग रखी गई थी. केजरीवाल सरकार ने यह प्रस्ताव ठुकराते हुए कहा था कि प्रदर्शनकारी दिल्ली के मेहमान हैं.
नरेला के निकट दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर किसानों ने रविवार को पुलिस बैरीकेड तोड़ कर राजधानी दिल्ली में प्रवेश का प्रयास किया. किसानों ने नारेबाजी की और झंडे लहराए. किसान बैरीकेड हटाकर ट्रैक्टर, कार, मोटर साइकिल और पैदल आगे बढ़ने में कामयाब रहे. पुलिस कर्मी उन्हें खड़े देखते रहे गए. अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने रविवार को ट्वीट कर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पर निशाना साधा.
उन्होंने कहा कि खट्टर ने किसानों और उनके आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश की. अकाली दल किसानों को खालिस्तानी बताने वाले हरियाणा के मुख्यमंत्री के बयान की कड़ी निंदा करता है. यह किसानों को बदनाम करने और उनके आंदोलन को कुचलने की साजिश है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक वीडियो जारी कर किसानों को 3 दिसंबर को बातचीत का न्योता दिया था. शाह ने कहा था कि किसान उससे पहले वार्ता करना चाहते हैं तो उन्हें दिल्ली-हरियाणा सीमा छोड़कर बुराड़ी के निरंकारी ग्राउंड पर जाना होगा. उन्होंने कहा था कि सरकार किसानों से किसी मुद्दे या समस्या पर बातचीत करने को तैयार है. इसके पहले केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी किसानों को वार्ता का आमंत्रण दे चुके हैं.
पंजाब किसान यूनियन के अध्यक्ष रुल्दू सिंह ने बैठक के पहले ही साफ कर दिया था कि विरोध प्रदर्शन का स्थान रामलीला मैदान तय है तो बुराड़ी क्यों जाएं. सिंह ने कहा था कि तीनों कृषि कानूनों के अलावा किसान बिजली संशोधन बिल 2020 को भी वापस लेने की मांग पर कायम हैं. अगर केंद्र सरकार कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती है तो उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गारंटी का कानून लाना होगा.
भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने भी कहा था कि हम विरोध प्रदर्शन के लिए एक निजी स्थल निरंकारी ग्राउंड पर नहीं जाएंगे. विरोध प्रदर्शन की जगह तो रामलीला मैदान ही तय है. किसान पिछले तीन माह से कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं. लेकिन हमारी कोई बात केंद्रर सकार द्वारा नहीं सुनी जा रही है.
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