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गरीबों को ‘गुर्दा पड़ रहा महंगा

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भुवनेश पण्ड्याउदयपुर. आरएनटी मेडिकल कॉलेज खुले छह दशक हो गए, लेकिन यहां मरीजों का गुर्दा नहीं बदला जाता, यानी यहां ट्रांसप्लान्ट यूनिट नहीं है। एेसे में मरीजों को लाखों रुपए खर्च कर अहमदाबाद या जयपुर की राह लेनी होती है। उदयपुर के एक निजी चिकित्सालय ने अपने बूते किडनी ट्रांसप्लान्ट यूनिट खोल दिया, जबकि सरकारी क्षेत्र में संभाग का सबसे बड़ा हॉस्पिटल होने के बाद भी यहां अभी तक ये व्यवस्था नहीं हो पाई। उदयपुर संभाग में प्रतिवर्ष पहुंचने वाले लाखों मरीजों में से हजारों मरीज एेसे हैं, जिन्हें गुर्दा ट्रांसप्लान्ट की जरूरत होती है।
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दो साल में २० ट्रांसप्लान्ट उदयपुर से
किडनी ट्रांसप्लान्ट यूनिट की बात की जाए तो वह सरकारी क्षेत्र की यूनिट जयपुर सवाई मानसिंह हॉस्पिटल में संचालित है, वहां पर इसके ऑपरेशन के लिए ५० हजार रुपए लगते हैं, हालांकि यहां मरीजों की इतनी लम्बी कतार होती है कि यहां नम्बर लगना बेहद मुश्किल माना जाता है। एेसे में मरीज जांच के बाद इसके उपचार के लिए या ज्यादातर अहमदाबाद में उपचार के लिए पहुंचते हैं यहां मरीजों व परिजनों से लाखों रुपए लिए जाते हैं। उदयपुर से पिछले दो सालों में ३० से अधिक ट्रांसप्लान्ट अहमदाबाद व अन्य निजी चिकित्सालयों में लाखों रुपए खर्च करने के बाद करवाए गए हैं। हालात ये है कि कई बार तो मरीजों को लाखों रुपए लगाने के कारण सामाजिक संगठनों से लेकर लोगों से आर्थिक सहयोग लेना पड़ता है। एक मरीज को जहां सरकारी में अधिकतम एक लाख रुपए मे ऑपरेशन सहित अन्य खर्च में काम हो जाता है, जबकि निजी में १० से १३ लाख रुपए तक इसमें खर्च करने पड़ते हैं। मासिक दवाओं का खर्च भी अलग होता है।
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– उदयपुर में फिलहाल: किसी भी किडनी प्रत्यारोपण के लिए नेफ्रोलॉजी व यूरोलॉजी यूनिट में तालमेल होना जरूरी है। दोनों यूनिट में तीन-तीन चिकित्सकों सहित अन्य सहयकों का दल होना जरूरी है, लेकिन इतने चिकत्सक यहां उपलब्ध नहीं है। आरएनटी मेडिकल कॉलेज में नेफ्रोलॉजी और यूरोलॉजी में एक-एक चिकित्सक है। महाराणा भूपाल हॉस्पिटल में सुपर स्पेशलिटी सेन्टर बनकर तैयार है, जल्द ही इसे शुरू किया जाना है, लेकिन इसमें ये यूनिट शुरू होने में मुश्किलें बहुत हैं।
– एेसे मिलता है पंजीयन: किसी भी यूनिट को शुरू करने से पहले इसका पंजीयन करवाना जरूरी है। रजिस्ट्रेशन राज्य सरकार जारी करता है। इसके लिए बकायदा जयपुर एसएमएस से नेफ्रोलॉजी, यूरोलॉजी व एनेस्थिसिया चिकित्सकों का दल निरीक्षण कर व्यवस्थाएं जांचता है। इसके बाद उनकी स्वीकृति पर ये यूनिट शुरू की जाती है। इसमें तीन-तीन चिकित्सकों का गु्रप अनिवार्य है।
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एक्सपर्ट व्यू …
बेटे की मृत्यु के बाद हो गए समर्पित
५ अक्टूबर २००७ में जितेन्द्र सिंह राठौड़ के २२ वर्षीय पुत्र महेन्द्रसिंह राठौड़ की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद से राठौड़ ने लेकसिटी किडनी केयर एण्ड रिलीफ फाउण्डेशन की स्थापना की अब वे लगातार एेसे मरीजों की सहायता करने के लिए लोगों से राशि जुटाते हैं, तीन मरीजों के उपचार के लिए तो राजस्थान पत्रिका व फाउण्डेशन ने मिलकर राशि जुटाई थी। इसके बाद उनका प्रत्यारोपण करवाया गया। राठौड़ ने अब तक १९ मरीजों को फाउण्डेशन ने सहयोग कर प्रत्यारोपण करवाया है। राठौड़ का कहना है कि २००७ से इसकी मांग चल रही है, यदि ये यूनिट यहां शुरू हो जाती है, तो इससे मरीजों की जेब को झटका नहीं लगेगा, उनके लाखों रुपए बच जाएंगे।
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यहां पर फिलहाल ये यूनिट स्थापित होने में समय लगेगा, इसका मूल कारण यहां चिकित्सकों की कमी है, साधन संसाधन तो मिल जाएंगे, लेकिन सर्वाधिक जरूरत नेफ्रोलॉजी व यूरोलॉजी में चिकित्सकों की है। इसे स्थापित करने के लिए उच्चतम न्यायालय की गाइड लाइन के अनुरूप व्यवस्था जरूरी है, बगैर पंजीयन इसकी शुरुआत नहीं हो सकती।
डॉ मुकेश बडजात्या, नेफ्रोलॉजी विभाग
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