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कविता: इक मां के हैं बहुत बेटे

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इक मां के हैं बहुत बेटेबस एक ही बेटी है हिन्दीवो नाजों से पली बढ़ीसुसंस्कृति साथ निखर चलीइक दिन इक लड़की सकुचाईद्बार मां संस्कृति के आईमां मुझे भी अपनी शरण में लोकुछ दुख मेरे भी मां हर लोमां थी सबकी मना कर न सकीआंचल में अपने शरण भी दीवो बेटी अंग्रेजी कहलाईमुंहबोली बन कर इठलाईभाईयों को बना लिया अपनापूरा मुझसे ही हर सपनाहिंदी को उसने पीछे छोड़ामुख पृष्ठभूमि से भी मोड़ाअब हर तरफ अंग्रेजी छाईवो भाईयों से नाता तोड़ आईबोली तुम भाई हिंदी केमेरी होड़ कहां करतेअब भाई शर्मशार हुएअपने अस्तित्व को निकलेबोले मां हमसे भूल हुईनादान थे पथ पर थे भटकेमां तुम हो विशाल हृदयहमारा फिर से करो विलयहम हिस्सा हैं तेरी संस्कृति कासर्वधर्म भूला बैठे थे अपनाहिंदी फिर से मुस्कराईभाईयों के शिकवे भूल आईहंसते भाई सब बोल पड़ेस्वाभिमान हमारा हैं हिन्दीअभिमान हमारा हैं हिन्दीहिंदी -हिन्दू – हिंदुस्तानहिंदी ने रखा अंग्रेजी का भी मानहिन्दी से सुसंस्कृत होकर अब महक रहा हिन्दुस्तानमेरी हिन्दी मेरा अभिमान
रचना: ममता वशिष्ठ,सीकर

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