- Advertisement -
HomeNewsआरोप प्रत्यारोप और अफवाहों से परे सावरकर को जानना सच में जरुरी...

आरोप प्रत्यारोप और अफवाहों से परे सावरकर को जानना सच में जरुरी है

- Advertisement -

‘हिंदू’ शब्द अपने में केवल धर्म को ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीयता और संस्कृति को भी अपने आप में समेटे हुए है और इन सबको हम सच के तौर पर मान लेते हैं क्योंकि कुछ महान लोगों ने ऐसा कहा है. भारत में हम पढ़ने से ज़्यादा सम्मान करते हैं और इसीलिए लोगों की महानता के बारे में सोचना स्वाभाविक ही है क्योंकि आपको ये नाम आम तौर पर अनगिनत बार सुनाए जाते हैं.

सावरकर ख़ुद भी बहुत विद्वान नहीं थे उनका मुख्य विचार था- राष्ट्र के प्रति बिना शर्त प्रेम, लेकिन जैसा कि,यह ऐसी चीज़ है जो भारत में हम लोगों लिए बहुत आम बात है.

सावरकर द्वारा जो भी लिखा गया या बोला गया जिसे एक विचारधारा के लोग क्रन्तिकारी व्यक्ति बताते है, वह सिर्फ और सिर्फ उन लोगो के लिए था जिनका दिमाग़ बंद था. सावरकर के विचार और लेख बौद्धिकता से ज़्यादा जुनून से संबंधित थे. सावरकर ने हिंदुत्व को नकारात्मकता से भरने की कोशिश की.सावरकर की विचारधारा विचारधारा केवल असंतोष और नफ़रत ही देती है.यह दूसरों को दोष देने और संदेह से देखने की विचारधारा है.

एक बार महात्मा गांधी और सावरकर की मुलाकात हुई थी,महात्मा गांधी अपने सत्याग्रह आंदोलन के लिए सावरकर का समर्थन लेने गए थे, जब सावरकर ने गांधी को खाने की दावत दी तो गांधी ने ये कहते हुए माफ़ी माँग ली कि वो न तो गोश्त खाते हैं और न मछली. बल्कि सावरकर ने उनका मज़ाक भी उड़ाया कि कोई कैसे बिना गोश्त खाए अंग्रेज़ो की ताक़त को चुनौती दे सकता है? उस रात गाँधी सावरकर के कमरे से अपने सत्याग्रह आंदोलन के लिए उनका समर्थन लिए बिना ख़ाली पेट बाहर निकले थे.

गांधी की हत्या भारतीय राष्ट्रीयता के बारे में दो विचारधाराओं के बीच संघर्ष का परिणाम थी. गांधी का जुर्म यह था कि वे एक ऐसे आज़ाद भारत की कल्पना करते थे जो समावेशी होगा. जहाँ विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के रहेंगे. दूसरी ओर, गांधी के हत्यारों ने हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों विशेषकर विनायक दामोदर सावरकर के नेतृत्व वाली हिन्दू महासभा में सक्रिय भूमिका निभाते हुए हिंदुत्व का पाठ पढ़ा था. हिन्दू अलगाववाद की इस वैचारिक धारा के अनुसार, केवल हिन्दू राष्ट्र का निर्माण करते थे. हिंदुत्व विचारधारा के जनक सावरकर ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन ‘हिंदुत्व’ नामक ग्रन्थ में किया था.

याद रहे भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने वाली यह किताब अँगरेज़ शासकों ने सावरकर को तब लिखने का अवसर दिया था, जब वे जेल में थे और उनपर किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधियां करने पर पाबंदी थी.

इसको समझना ज़रा भी मुश्किल नहीं है कि अंग्रेज़ों ने यह छूट क्यों दी थी? ब्रिटिश हुकूमत गाँधी के नेतृत्व में चल रहे साझे स्वतंत्रता आंदोलन के उभार से बहुत परेशान थी और ऐसे समय में सावरकर का हिन्दू-राष्ट्र का नारा शासकों के लिए आसमानी वरदान था. इन्होंने हिंदुत्व के सिद्धांत की व्याख्या शुरू करते हुए हिंन्दुत्व और हिंदू धर्म में फ़र्क किया. लेकिन जब तक वे हिंदुत्व की परिभाषा पूरी करते, दोनों के बीच अंतर पूरी तरह से ग़ायब हो चुका था. हिंदुस्तान और कुछ नहीं बल्कि राजनीतिक हिंदू दर्शन बन गया. यह हिंदू अलगाववाद के रूप में उभरकर सामने आ गया. अपना ग्रंथ समाप्त करते हुए सावरकर हिंदुत्व और हिंदूवाद के बीच के अंतर को पूरी तरह भूल गए.

हिंदू धर्म और हिंदू आस्था से अलग सावरकर ने राजनीतीक हिन्दुत्व की स्थापना की थी यही सच्चाई है जिसका खामियाजा देश आज भुगत रहा है, भारत में राष्ट्रीयता और राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन का परस्पर अटूट संबंध है. राष्ट्रीयता भारत के स्वाधीनता आंदोलन की वह भावना थी, जो पूरे आंदोलन के मूल में थी. इसी दौरान हिंदू राष्ट्रीयता अथवा हिंदू राष्ट्रवाद का विचार गढ़ा गया. सावरकर उस हिंदुत्व के जन्मदाता हैं जो हिंदू और मुसलमानों में फूट डालने वाला साबित हुआ. मुस्लिम लीग के द्विराष्ट्र के सिद्धांत की तरह ही उनके हिंदुत्व ने भी अंग्रेजों की ‘बांटो और राज करो’ की नीति में सहायता की.

हिंदू राष्ट्रवादी’ शब्द की उत्पत्ति ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक ऐतिहासिक संदर्भ में हुई. यह स्वतंत्रता संग्राम मुख्य रूप से एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष भारत के लिए कांग्रेस के नेतृत्व में लड़ा गया था. ‘मुस्लिम राष्ट्रवादियों’ ने मुस्लिम लीग के बैनर तले और ‘हिंदू राष्ट्रवादियों’ ने ‘हिंदू महासभा’ और ‘आरएसएस’ के बैनर तले इस स्वतंत्रता संग्राम का यह कहकर विरोध किया कि हिंदू और मुस्लिम दो पृथक राष्ट्र हैं. स्वतंत्रता संग्राम को विफल करने के लिए इन हिंदू और मुस्लिम राष्ट्रवादियों ने अपने औपनिवेशिक आकाओं से हाथ मिला लिया ताकि वे अपनी पसंद के धार्मिक राज्य ‘हिंदुस्थान’ या ‘हिंदू राष्ट्र’ और पाकिस्तान या इस्लामी राष्ट्र हासिल कर सकें.

सावरकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वह आदि विचारक हैं जो हिंदू-मुसलमान को दो अलग-अलग राष्ट्र मानते हैं. तब से बाद के वर्षों में भी संघ अपनी हिंदू राष्ट्र की कल्पना और हिंदू राष्ट्रवाद के विचार पर टिका हुआ है. इसके उलट संघ भारत-पाकिस्तान बंटवारे के लिए कांग्रेस, महात्मा गांधी, नेहरू को कोसता भी है. मौजूदा दौर में हिंदू राष्ट्रवादियों के लिए वे लोग सबसे बड़े ‘गद्दार’ हैं जो सांप्रदायिकता के विरोध में हैं, जो सेक्युलर विचार को मानने वाले हैं.

हिंदू राष्ट्रवादियों ने यानि सावरकर और उनके अनुयाइयो ने बजाय नेता जी की मदद करने के, नेताजी के मुक्ति संघर्ष को हराने में ब्रिटिश शासकों के हाथ मज़बूत किए. हिंदू महासभा ने ‘वीर’ सावरकर के नेतृत्व में ब्रिटिश फ़ौजों में भर्ती के लिए शिविर लगाए. हिंदुत्ववादियों ने अंग्रेज़ शासकों के समक्ष मुकम्मल समर्पण कर दिया था जो ‘वीर’ सावरकर के निम्न वक्तव्य से और भी साफ हो जाता है- ‘जहां तक भारत की सुरक्षा का सवाल है, हिंदू समाज को भारत सरकार के युद्ध संबंधी प्रयासों में सहानुभूतिपूर्ण सहयोग की भावना से बेहिचक जुड़ जाना चाहिए जब तक यह हिंदू हितों के फ़ायदे में हो. हिंदुओं को बड़ी संख्या में थल सेना, नौसेना और वायुसेना में शामिल होना चाहिए और सभी आयुध, गोला-बारूद, और जंग का सामान बनाने वाले कारख़ानों वगै़रह में प्रवेश करना चाहिए…

बात अगर गांधी ह्त्या की करे तो भारतीय राष्ट्र की समावेशी कल्पना और विश्वास था जिसके लिए गांधी की हत्या की गई. गांधी का सबसे बड़ा जुर्म यह था कि वे सावरकर की हिन्दू राष्ट्रवादी रथ-यात्रा के लिए सबसे बड़ा रोड़ा बन गए थे. गांधी की हत्या में शामिल मुजरिमों के बारे में आज चाहे जितनी भी भ्रांतियां फैलाई जा रही हों, लेकिन भारत के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल का मत बहुत साफ़ था, जिनसे हिंदुत्ववादी टोली गहरा भाईचारा दिखाती है.

पटेल का मानना था कि आरएसएस, विशेषकर सावरकर और हिन्दू महासभा का इस जघन्य अपराध में सीधा हाथ था. उन्होंने हिन्दू महासभा के वरिष्ठ नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी को 18 जुलाई 1948 को लिखे खत में बिना किसी हिचक के लिखा – जहां तक आरएसएस और हिंदू महासभा की बात है, गांधी जी की हत्या का मामला अदालत में है और मुझे इसमें इन दोनों संगठनों की भागीदारी के बारे में कुछ नहीं कहना चाहिए, लेकिन हमें मिली रिपोर्टें इस बात की पुष्टि करती हैं कि इन दोनों संस्थाओं का, ख़ासकर आरएसएस की गतिविधियों के फलस्वरूप देश में ऐसा माहौल बना कि ऐसा बर्बर काण्ड संभव हो सका. मेरे दिमाग़ में कोई संदेह नहीं है कि हिंदू महासभा का अतिवादी धड़ा षडयंत्र में शामिल था.

यह सच है कि गांधी की हत्या मामले में सावरकर बरी कर दिए गए. गांधी हत्या केस में दिगंबर बागड़े के बयान ( महात्मा गांधी की हत्या का षड्यंत्र रचने में सावरकर की महत्वपूर्ण भूमिका थी) के बावजूद वे इसलिए मुक्त कर दिए गए कि इन षड्यंत्रों को साबित करने के लिए कोई ‘स्वतंत्र साक्ष्य’ नहीं था. क़ानून कहता है कि रचे गए षड्यंत्र को अदालत में सिद्ध करना हो तो इसकी पुष्टि स्वतंत्र गवाहों द्वारा की जानी चाहिए. निश्चित ही यह एक असंभव कार्य होता है कि बहुत ही गोपनीय ढंग से रची जा रही साजिशों का कोई ‘स्वतंत्र साक्ष्य’ उपलब्ध हो पाए. बहरहाल क़ानून यही था और गांधी की हत्या के केस में सावरकर सज़ा पाने से बच गए.

सावरकर के गांधी हत्या में शामिल होने के बारे में न्यायाधीश कपूर आयोग ने 1969 में अपनी रिपोर्ट में साफ़ लिखा कि वे इसमें शामिल थे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.सावरकर का 26 फरवरी 1966 को देहांत हो चुका था.

सावरकर ने अंग्रेज़ों को सौंपे अपने माफ़ीनामे में लिखा था, अगर सरकार अपनी असीम भलमनसाहत और दयालुता में मुझे रिहा करती है, मैं यक़ीन दिलाता हूं कि मैं संविधानवादी विकास का सबसे कट्टर समर्थक रहूंगा और अंग्रेज़ी सरकार के प्रति वफ़ादार रहूंगा.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू अपने एक लेख में लिखते हैं, ‘कई लोग मानते हैं कि सावरकर एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे. लेकिन सच क्या है? सच ये है ब्रिटिश राज के दौरान कई राष्ट्रवादी गिरफ्तार किए गए. जेल में ब्रिटिश अधिकारी उन्हें प्रलोभन देते थे कि या वे उनके साथ मिल जाएं या पूरी ज़िंदगी जेल में बिताएं. तब कई लोग ब्रिटिश शासन का सहयोगी बन जाने के लिए तैयार हो जाते थे. इसमें सावरकर भी शामिल हैं. जस्टिस काटजू कहते हैं, ‘दरअसल, सावरकर केवल 1910 तक राष्ट्रवादी रहे. ये वो समय था जब वे गिरफ्तार किए गए थे और उन्हें उम्र कैद की सज़ा हुई. जेल में करीब दस साल गुजारने के बाद, ब्रिटिश अधिकारियों ने उनके सामने सहयोगी बन जाने का प्रस्ताव रखा जिसे सावरकर ने स्वीकार कर लिया. जेल से बाहर आने के बाद सावरकर हिंदू सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का काम करने लगे और एक ब्रिटिश एजेंट बन गए. वह ब्रिटिश नीति ‘बांटो और राज करो’ को आगे बढ़ाने का काम करते थे.

जस्टिस काटजू लिखते हैं, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सावरकर हिंदू महासभा के अध्यक्ष थे. उन्होंने तब इस नारे को बढ़ावा दिया, ‘राजनीति को हिंदू रूप दो और हिंदुओं का सैन्यीकरण करो. इसके बाद जब कांग्रेस ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की तो सावरकर ने उसकी आलोचना की. उन्होंने हिंदुओं से ब्रिटिश सरकार की अवज्ञा न करने को कहा. साथ ही उन्होंने हिंदुओं से कहा कि वे सेना में भर्ती हों और युद्ध की कला सीखें. क्या सावरकर सम्मान के लायक हैं और उन्हें स्वतंत्रता सेनानी कहा जाना चाहिए? सावरकर के बारे में ‘वीर’ जैसी बात क्यों? वह तो 1910 के बाद ब्रिटिश एजेंट हो गए थे.

सावरकर ने अपनी दया याचिका में एक बात और लिखी थी सावरकर ने लिखा था, याचिका के अगले हिस्से में वे और भारतीयों को भी सरकार के पक्ष में लाने का वादा करते हुए लिखते हैं, ‘इससे भी बढ़कर संविधानवादी रास्ते में मेरा धर्म-परिवर्तन भारत और भारत से बाहर रह रहे उन सभी भटके हुए नौजवानों को सही रास्ते पर लाएगा, जो कभी मुझे अपने पथ-प्रदर्शक के तौर पर देखते थे. मैं भारत सरकार जैसा चाहे, उस रूप में सेवा करने के लिए तैयार हूं, क्योंकि जैसे मेरा यह रूपांतरण अंतरात्मा की पुकार है, उसी तरह से मेरा भविष्य का व्यवहार भी होगा. मुझे जेल में रखने से आपको होने वाला फ़ायदा मुझे जेल से रिहा करने से होने वाले होने वाले फ़ायदे की तुलना में कुछ भी नहीं है. जो ताक़तवर है, वही दयालु हो सकता है और एक होनहार पुत्र सरकार के दरवाज़े के अलावा और कहां लौट सकता है. आशा है, हुजूर मेरी याचनाओं पर दयालुता से विचार करेंगे.

ऐसी गतिविधियों में लिप्त और दया की मांग करता हुआ ऐसा माफ़ीनामा डालने वाले सावरकर वीर कैसे कहे जा सकते हैं, जिन्होंने सुभाष चंद्र बोस के उलट अंग्रेज़ी फ़ौज के लिए भारतीयों की भर्ती में मदद की? सावरकर का योगदान यही है कि उन्होंने भारत में हिंदुत्व की वह विचारधारा दी जो लोकतंत्र के उलट एक धर्म के वर्चस्व की वकालत करती है.

Thought of Nation राष्ट्र के विचार

The post आरोप प्रत्यारोप और अफवाहों से परे सावरकर को जानना सच में जरुरी है appeared first on Thought of Nation.

- Advertisement -
- Advertisement -
Stay Connected
16,985FansLike
2,458FollowersFollow
61,453SubscribersSubscribe
Must Read
- Advertisement -
Related News
- Advertisement -