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रवीश कुमार की इस बात को घर घर तक पहुंचाना जरूरी है

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रवीश कुमार (Ravish Kumar) अपने कार्यक्रमों के जरिए और सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से सरकार की नीतियों का बारीकी से विश्लेषण करते हुए जनता के सामने अपनी बात रखते हुए दिखाई देते हैं, जनता के मुद्दों को हमेशा उठाते रहते है. इसबार भी रवीश ने अपने सोशल मीडिया के माध्यम से गंभीर मुद्दा उठाया है.
रवीश कुमार (Ravish Kumar) की फेसबुक पोस्ट
आदरणीय वरिष्ठ नागरिक जी, आपके क्या हाल हैं, बैंकों में ब्याज से ख़ूब कमाई हो रही है न? वरिष्ठ नागरिक बैंकों में जमा अपने जीवन भर की पूंजी का हिसाब कर लें. पता चलेगा कि ब्याज से होने वाली जिस कमाई पर वे आश्रित हैं, वो माइनस में चली गई है. बैंकों की कमाई उधार पर मिलने वाले ब्याज से होती है.
बचतकर्ता की कमाई बैंकों में जमा पैसे पर मिलने वाले ब्याज से होती है. 2014-15 के बाद बैंकों के लाखों करोड़ रुपये के लोन डूब गए. बड़े उद्योगपतियों ने लाखों करोड़ के लोन नहीं चुकाए. बैंकों को बचाने के लिए सरकार को ही बैंकों में पैसे डालने पड़े. बैंकों को ब्याज से कमाई नहीं हुई तो ज़ाहिर है वो आपकी बचत पर ब्याज नहीं दे सकते.
बड़े उद्योगपतियों का मुनाफा कम नहीं हुआ है. उन्होंने निवेश कम कर दिया है. उन्हें पता है कि ब्याज नहीं देने पर खास कुछ होता नहीं है. बस उनकी कंपनी बैंकों के विलय वाले पंचाट के ज़रिए किसी और के हाथ में चली जाई. जिसे वही लोग नई कंपनी बनाकर ख़रीद लेंगे. जब तक आप उद्योगपतियों को मिलने वाले संरक्षण और इस खेल को नहीं समझेंगे, आप नहीं जान पाएंगे कि आप ग़रीब क्यों हो हुए जा रहे हैं.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि सेवानिवृत्त लोगों ने समाज में राजनीतिक मूर्खता और सांप्रदायिकता का प्रसार किया है. आम लोगों के बीच पढ़े-लिखे के रुप में मौजूद होने का लाभ उठाकर इन लोगों ने तमाम तरह की अनर्गल बातों का प्रसार किया. मुझे कई लोग मिलते हैं जो कहते हैं कि परिवार और वृहद परिवार के व्हाट्स एप समूह में सेवानिवृत्त रिश्तेदारों से बात करना असहनीय हो गया है. वे अनियंत्रित हो गए हैं.
सुबह शाम सांप्रदायिक और धार्मिक गौरव की बनावटी बातें भेजते रहते हैं. लेकिन अब आप उन रिश्तेदारों से पूछ सकते हैं कि ब्याज का क्या हाल है. ख़र्च कैसे चल रहा है. क्या ब्याज से होने वाली कमाई से चल पा रहा है? दूसरी एक और बात है. लाखों करोड़ों की संख्या में देश के युवा बेरोज़गार हैं. इन युवाओं का घर के वरिष्ठ नागरिकों के ब्याज से चलता है. मामूली पैसे को लेकर रोज़ घरों में तना-तनी होती होगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक नीतियों ने समाज को हर तरह से बर्बाद किया है. उनके कार्यकाल के सात साल बाद इन आर्थिक नीतियों की विफलताएं काफी गहरी हो चुकी हैं. यह उनके कार्यकाल का वस्तुनिष्ठ आर्थिक विश्लेषण है. इन असफलताओं के लक्षण शुरू से ही दिख गए थे कि इनका रास्ता क्या है. अगर इनकी राजनीति में धर्म का आवरण न हो तो कुछ नहीं बचा है. सवालों से बचने के लिए धर्म का गौरव ले आते हैं. अब तो पत्रकार भी इसकी आड़ लेने लगे हैं.
आपके लिए तय करना मुश्किल है कि न्यूज़ चैनल के सामने बैठे हैं या किसी पूजा-हवन कार्यक्रम के. हर समय धर्म का गौरव और अतीत के गौरव की बहाली में आपको भटकाया जा रहा है. आपको आनंद भी आ रहा है. अनुराग द्वारी की रिपोर्ट है कि कई लोगों ने टीके नहीं लगवाए फिर भी टीका लगने का प्रमाण पत्र मिल गया.
इस रिपोर्ट के बाद जगह जगह से लोगों के मैसेज आ रहे हैं कि उन्होंने टीका लगा लिया था फिर भी टीका लगाने का मैसेज आया है. किसी ने टीका नहीं लगाया लेकिन उनके टीका लगाने का मैसेज आ गया. तो ये है प्रधानमंत्री के कार्यक्रम की विश्वसनीयता. इनका कोई काम बिना फर्ज़ीवाड़े के नहीं होता है.
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