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क्या सच में बिहार में सत्ता परिवर्तन होने जा रहा है?

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बिहार की सत्ताधारी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए बहुत पहले से ही चुनावी तैयारियों में लग चुकी थी और लगी हुई है.
बिहार का एनडीए कुनबा एनडीए से अलग होने वाला नहीं है. चिराग पासवान सिर्फ अपने हिस्से में आने वाली सीटों की मात्रा बढ़ाने के लिए बयान बाजी कर रहे हैं, चिराग पासवान की पार्टी भाजपा से अलग होने वाली नहीं है. विपक्षी पार्टियों के समर्थक आजकल हवा में चल रही बातें सुनकर ही खुश हो लेते हैं या एनडीए में खटपट की खबर सुनकर ही अपना मनोरंजन कर लेते हैं.
उदाहरण के तौर पर एनडीए या फिर भाजपा का कोई नेता विधायक या कोई सांसद अगर अपनी ही पार्टी के खिलाफ कोई बयान दे देता है तो विपक्षी पार्टियों के समर्थक उसे आग की तरह सोशल मीडिया पर वायरल कर देते हैं विपक्षी पार्टियों के समर्थकों की खुशी देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे मोदी सरकार तुरंत गिरने वाली है या फिर मोदी सरकार लंबे समय तक चलने वाली नहीं है.
विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ता और समर्थक जितना समय भाजपा के नेताओं के छोटे-छोटे बयान वायरल करने में या फिर चिराग पासवान के बगावती तेवर बोल कर उनके बयान वायरल करने में लगाते हैं या फिर मौजूदा वक्त में अकाली दल के NDA से अलग हो जाने पर भी भाजपा की सत्ता को कोई फर्क केंद्र में नहीं पड़ने वाला है, उसके बावजूद इन खबरों को हवा देने में जितना समय विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ता लगा रहे हैं, अगर उतना समय अपनी पार्टी के नेताओं और अपनी पार्टी द्वारा पूर्व में किए गए कामों को जनता के सामने रखने में या फिर सोशल मीडिया पर रखने में व्यतीत करें तो शायद विपक्षी पार्टी के नेताओं को और विपक्षी पार्टियों को भी फायदा हो.
बिहार का एनडीए कुनबा आने वाले विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए पूरी तरीके से कमर कस चुका है. नीतीश कुमार लगातार जनता से संपर्क साधने में लगे हुए हैं. कभी वर्चुअल रैली के माध्यम से तो कभी अलग-अलग शिलान्यास और उद्घाटन के मौके पर अपनी बात रख कर अपने सरकार की उपलब्धियों को जनता तक पहुंचा रहे हैं. NDA का सबसे बड़ा चेहरा यानी मौजूदा वक्त के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए अपनी बिसात बिछा रहे हैं, चाहे वह जुमले दे या झूठ बोले. मीडिया उनकी बातों को बिहार के कोने कोने तक पहुंचा रही है.
बिहार महागठबंधन अभी आपसी लड़ाई लड़ने में ही व्यस्त है. बिहार महागठबंधन में कौन-कौन से नेता और कौन-कौन सी पार्टियां शामिल रहेंगे अभी यहीं निश्चित नहीं हो पाया है. बिहार महागठबंधन में जितनी पार्टियां शामिल थी उन सभी पार्टियों के नेता खुद को ही मुख्यमंत्री मानकर चल रहे थे, खुद को ही मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के लिए महागठबंधन के नेताओं पर दबाव बना रहे थे. चाहे जीतन राम मांझी हो या फिर कुशवाहा, यह सभी मुख्यमंत्री बनने के लिए महागठबंधन का हिस्सा बने थे.
जीतन राम मांझी महागठबंधन छोड़कर फिर से एनडीए का हिस्सा बन चुके हैं वही कुशवाहा भी महागठबंधन कभी भी छोड़ सकते है. कुशवाहा ने जब नीतीश कुमार का साथ छोड़ा था उस समय नीतीश कुमार ने कुशवाहा को काफी अपमानित किया था, उनका सामान तक फिकवा दिया था. अब ऐसी अटकलें हैं कि कुशवाहा कभी भी नीतीश कुमार का साथ फिर से पकड़ सकते है. इन सब बातों को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि राजनीति कुछ भी करवा सकती है.
जनता के साथ यह छोटी पार्टियां और इनके नेता लगातार छलावा करते हैं. यह पार्टियां सिर्फ अपने फायदे के लिए जाति के नाम पर धर्म के नाम पर जनता को आपस में बांट कर अपना उल्लू सीधा करते हैं. जहां तक बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी आरजेडी का सवाल है और उसके नेता तेजस्वी यादव का सवाल है तो तेजस्वी यादव भी हवा में है. लोकसभा चुनाव के समय भी सीट बंटवारे को लेकर देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को वह ज्यादा सीटें देने के लिए तैयार नहीं थे. हालांकि बिहार कांग्रेस के नेता खुद लंबे समय से जमीन पर पार्टी के लिए और जनता के लिए संघर्ष करते हुए नजर नहीं आए हैं.
लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों और उनके नेताओं कि चुनाव के पहले सीट बंटवारे को लेकर जो महत्वाकांक्षा है और जो हरकते हैं, उन को देखते हुए यही लगता है कि यह क्षेत्रीय पार्टियां और इनके नेता चुनाव रिजल्ट के 1 दिन पहले तक अपने आप को मुख्यमंत्री साबित करते हुए बस खुश रहना चाहते हैं. इनका ध्यान चुनावी जीत पर नहीं है यह सिर्फ और सिर्फ चुनाव के पहले तक के मुख्यमंत्री हैं. बिहार हो यह यूपी हो या फिर दूसरे प्रदेश, क्षेत्रीय दलों और क्षेत्रीय नेताओं की लड़ाई जनता के लिए नहीं है. क्षेत्रीय दलों और क्षेत्रीय नेताओं की लड़ाई सीटों की संख्या बल और सत्ता की है.
जनता की लड़ाई क्या होती है? सिर्फ सीट शेयरिंग फार्मूले पर बात करके अपने लिए अधिक से अधिक सीटें लेना ही जनता की लड़ाई होती है? या पूरे 5 साल जनता के मुद्दों पर सरकार से लगातार सवाल करना, सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करना, जरूरत पड़े तो सड़कों पर उतर कर जनता का साथ लेकर विरोध प्रदर्शन करना, सरकार को जनता के हक में फैसले लेने के लिए मजबूर करना जनता की लड़ाई होती है?
लगातार मोदी सरकार देश का खजाना लूट रही है, रक्षा संबंधित जानकारी लगातार देश से छुपा रही है. धारा 370 और अयोध्या मुद्दे पर लगातार देश के अंदर धार्मिक उन्माद फैलाकर जरूरी मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने की कोशिश कर रही है. ऐसे मुद्दों पर क्षेत्रीय दलों ने कहीं सरकार का कोई विरोध किया हो तो बताइए. जनता की लड़ाई यही तो होती है.
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